Thursday, November 25, 2010

नाओमी शिहाब न्ये की कविता

(नाओमी शिहाब न्ये का परिचय और उनकी कविताएँ नई बात पर आप पहले ही पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता. - Padhte Padhte)


फिलीस्तीनी कैसे रखते हैं खुद को गर्म 


एक शब्द चुनो और उचारो इसे बार-बार,
जब तक कि यह शोला न भड़का दे तुम्हारे मुंह में.
अधफेरा , जो रहता है थामे और अल्फर्द  जो रहता है अकेले,
हमारे जैसे लोगों ने ही रखे थे इन सितारों के नाम.
हर रात जमा हो जाते हैं वे 
तमाम ग्रहों के बीच के लम्बे रास्ते पर.
ऊंघते और टिमटिमाते हैं वे अपनी जर्द आँखों में 
न सही न गलत.
दिराह, छोटे से घर,
खोलकर अपनी दीवारें अन्दर ले लो हमें.

सूख चुका है मेरा कुआं,
बंद कर दिया है गाना अंगूरों ने मेरे बाबा के.
मैं भड़का रही हूँ कोयला, रो रहे हैं मेरे बच्चे.
कैसे बताऊंगी उन्हें कि सितारों से है उनका नाता ?
किले बनाए उन्होंने सफ़ेद पत्थरों के और कहा कि, "यह है मेरा."
कैसे सिखाऊंगी उन्हें मैं प्यार करना मिजार, वील  और क्लोक  से,
कि इनके पीछे है शोलों को हवा करता हमारा एक पुरखा ?
वही ताजा करता है हमारी साँसों की सियाह हवा को.
वही बताता है कि उगेगा वील  जरूर
जब तक कि देख न लें वे हमें 
खुशकिस्मत पहाड़ों पर 
चमकते और फैलते अंगारों की तरह.

अच्छा तो बहुत बनाई मैनें बातें.
ठीक ठीक कुछ पता नहीं मुझे मिजार  के बारे में.
बस इतना जानती हूँ कि 
गर्म रखने की जरूरत होती है हमें खुद को यहाँ धरती पर   
और अगर दुशाला तुम्हारा हो मेरे जितना ही पतला,
सुनाने ही लगोगे कहानियां. 

(अनुवाद : Manoj Patel) 
 Naomi Shihab Nye

3 comments:

  1. अद्भुत कविता और जबर्दस्त अनुवाद

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  2. सूझ नहीं रहा कि इससे धारदार और क्या हो सकता है... राहत यह है कि बड़ी सटीक जगह सटीक बात सटीक सन्दर्भ में कही गयी है.

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