Tuesday, January 4, 2011

नाओमी शिहाब न्ये की कविता


(1952 में जन्मीं नाओमी शिहाब न्ये फिलीस्तीनी पिता और अमेरिकी माँ की संतान हैं. खुद को घुमंतू कवि मानने वाली नाओमी जार्डन, येरुशलम से होते हुए अब टेक्सास में रह रही हैं. उनकी कविताओं में अपनी जड़ों की बेचैन तलाश की झलक मिलती है. उनके लेखक और सम्पादक पिता,  अज़ीज़ शिहाब येरुशलम टाइम्स के सम्पादक रह चुके हैं. यह तस्वीर अपने पिता के कन्धों पर बैठी एक वर्षीय नाओमी शिहाब न्ये की है. - पढ़ते पढ़ते )

खून 
" एक सच्चा अरब जानता है हाथों से कैसे पकड़ते हैं मक्खी," 
कहते मेरे पिता. और साबित भी कर देते इसे, 
भिनभिनाती मक्खी को फ़ौरन बंद कर अपनी मुट्ठी में, 
जबकि मेजबान ताकता रह जाता 
हाथों में मक्खी पकड़ने का स्वाटर लिए. 

बसंत में छिलके सी छूटती थीं हमारी हथेलियाँ सांप की तरह. 
सच्चे अरब मानते थे कि फायदेमंद है तरबूज पचासों तरह से. 
मैंने बदला इसे माहौल के अनुरूप ढालने की खातिर. 

सालों पहले, दरवाज़ा खटखटाया था एक लड़की ने 
वह देखना चाहती थी एक अरब. 
मैंने जवाब दिया था कि हमारे यहाँ नहीं है कोई.
इसी के बाद बताया था मेरे पिता ने अपने बारे में, 
कि "उल्का" मतलब होता है "शिहाब" का,
आसमान से जमीन पर गिरा हुआ सितारा --
एक शानदार नाम, उधार लिया हुआ आसमान से. 
एक बार तो मैनें यह भी पूछ लिया था, "जब मर जाएंगे हम 
तो क्या वापस कर देंगे इसे आसमान को ?"
बोला था उन्होंने कि यही कहना चाहिए एक सच्चे अरब को. 

आज थक्के की तरह जम गई हैं ख़बरों की सुर्खियाँ मेरे खून में.
ट्रक के पीछे लगा फिर रहा है एक फिलिस्तीनी बच्चा फाटक पर.
बेघर लोग, असहनीय है हमारे लिए 
भयानक जड़ों वाली यह त्रासदी. 
आखिर कौन सा झंडा फहरा सकते हैं हम ?  
पत्थर और बीज का झंडा फहराती हूँ मैं,
नीले रंग के धागे से सिला गया एक मेजपोश.

अपने पिता को फोन मिलाती हूँ मैं 
और ख़बरों के बारे में बात करते हैं हम.
उनके लिए बहुत पीड़ादायी है यह सब, 
बहुत मुश्किल है इसे समझना उनके लिए 
अपनी दोनों ज़ुबानों में. 
देहात की तरफ निकल जाती हूँ मैं 
भेड़ों और गायों से मिलने के लिए
बहस करने के लिए हवा से ही : 
कि कौन सभ्य कहता है खुद को ?
कहाँ सुकून मिल सकता है एक रोते हुए दिल को ? 
आखिर क्या करे कोई सच्चा अरब अब ? 

(अनुवाद : Manoj Patel) 
Naomi Shihab Nye 

6 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता और बहुत अच्छा अनुवाद। आभार। आपका अनुवाद कार्य इसी तरह ज़ोरों पर रहे इस नये साल में भी मनोज भाई। शुभकामनाएँ।

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  2. पठनीय अनुवाद !

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  3. आपकी इस अनुदित कविता ने बहुत गहरा प्रभाव डाला है मन मष्तिस्क पर ...आपके प्रयास सराहनीय है ...हम तक अनुदित साहित्य को पहुंचाने के लिए ...आपका आभार

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  4. kavita bahut achhee lagin...kuchh alg see...aur unka achha lagna ek behtareen anuvaad ka hee nateeza hai
    badhaai manoj ji ....

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