Friday, February 11, 2011

वेरा पावलोवा की दस कविताएँ


( वेरा पावलोवा की कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं. आज उनकी दस और कविताएँ - Padhte Padhte )
                  
जब सबसे आखिरी दुःख भी 
मार चुका होगा हमारा दर्द सब,
मैं चली आऊंगी तुम्हारे पीछे-पीछे 
ठीक अगली रेलगाड़ी से,
इसलिए नहीं कि ताकत की कमी है मुझमें 
आखिरी नतीजे को विचारने के लिए,
बल्कि शायद भूल गए होओ तुम ले जाना 
दवाएं, टाई, रेजर ब्लेड...   

                    
अपने दांत चमका लिए हैं मैनें 
आज का दिन और मैं बराबरी पर हैं अब. 

                    
मातृभूमि है एक स्त्री के लिए कोई पुरुष.
पुरुष के लिए स्त्री एक रास्ता है सिर्फ. 
कितना रास्ता तय कर चुके तुम !
थोड़ा आराम कर लो प्रिय :
यह रही एक छाती, टिका लो अपना सर ;
यह रहा एक दिल, डाल लो डेरा इसमें ;
और बराबर-बराबर बाँट लेंगे हम 
दुःख के कठोर अवशेष.

                    
चले जा रही हूँ एक तनी हुई रस्सी पर.
दोनों हाथों में एक-एक बच्चा 
संतुलन के लिए.  

                    
उतारे जाना
और गिरना 
इतनी 
ऊंचाईयों से 
इतनी 
देर तक   
कि 
शायद 
काफी वक़्त 
होगा मेरे पास 
 उड़ना 
सीखने के लिए 

                    6
आवाज़. हस्तलिपि. चाल. 
और शायद महक मेरे बालों की.
बस यही है. आगे बढ़ो, 
पुनर्जीवित करो मुझे. 

                    7
प्रेम करने के बाद 
की बेतरतीबी में :
"देखो,
सितारों से ढँक गई है 
छत सारी !"
"और क्या पता 
जीवन हो मौजूद 
उनमें से किसी में..." 

                    
विचारों की सतह : शब्द.
शब्दों की सतह : भाव.
भाव की सतह : त्वचा.
त्वचा की सतह : सिहरन.   

                    
काश कि भाग सकती मैं 
तुम्हारे साथ साझा करने के लिए छत और रास्ता !
लेकिन इससे ज्यादा आसान है मोड़ना आकाश गंगा को,
इन्द्रधनुष को सीधा करना,
समाप्त करना चेचेन युद्ध को,
और गीतों से पेट भरना भूखे मर रहे बच्चों का. 
क्या बंद कर दूं तुम्हें प्रेम करना ? काश कर सकती मैं ऐसा !
मगर इससे तो आसान है एक घर बनाना लहरों पर. 

                   10
एक कामचलाऊ बायोडाटा :
जुगनू पकड़े,
पढ़ती रही सुबह तलक,
अजीब लोगों से किया प्यार,
घड़ों आंसू बहाए 
न जाने किन वजहों से,
जन्म दिया दो बेटियों को 
सात मर्दों से. 
  
(अनुवाद : Manoj Patel) 
Vera Pavlova Translated Poems in Hindi 
 
 
Вера Анатольевна Павлова

4 comments:

  1. आगे बढ़ो पुनर्जीवित करो मुझे ..
    सुन्दर और भाव पूर्ण अनुवाद के लिए बधाई मनोज भाई .
    शानदार चयन .

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  2. बड़ी गूढ़ रचनाएँ हैं ,कुछ समझ सका कुछ नहीं ,
    इनके अर्थ को पकड़ना -
    पानी में डूब कर किसी मछली को पकड़ने जैसा है ,
    जब की सांस लेने के लिए बीच-बीच बाहर भी
    आना पड़े ! फिर भी पढ़ने पर लगा कि अच्छी ही होंगी !
    धन्यवाद आपको !

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  3. वाह! स्तब्ध हूँ पढ़कर... अनुवाद और कविताओं
    के कमाल के बारे में कुछः कहते नहीं बन रहा...

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  4. वेरा पावलोवा की कविताएँ एक जादू की तरह दिमाग पर छा जाती है. उनके प्रभाव से निकलना मुश्किल हो जाता है. इतनी सुन्दर कविताओं को हम तक पहुँचाने के लिए आभार मनोज जी.

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