Tuesday, September 11, 2012

नाओमी शिहाब न्ये : ट्रे

नाओमी शिहाब न्ये की एक और कविता...   

 
ट्रे : नाओमी शिहाब न्ये 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

किसी ग़मी वाले दिन भी 
भाप छोड़ती गर्मागर्म चाय से भरी 
बिना हत्थे वाली छोटी सफ़ेद प्यालियाँ 
पेश हो जाती थीं 
ट्रे पर एक वृत्त में, 
और हम कुछ बोल पाएं   
या न बोल पाएं,    
ट्रे आगे बढ़ाई जाती रहती थी, 
चुस्कियां लिया करते थे हम 
खामोशी से, 
यह एक और तरीका था  
होंठों के साथ-साथ बोलने का,   
प्याली की गरम कोर पर खुलते 
और सुड़कते हुए एक सुर में. 
               :: :: :: 

3 comments:

  1. आखिरी चार पंक्तियां कह जाती हैं, सब कुछ, जो कहने लायक़ था इस मौक़े पर.

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