Monday, September 17, 2012

डोनाल्ड जस्टिस : तुम्हें संबोधित नहीं है यह कविता

अमेरिकी कवि डोनाल्ड जस्टिस की एक और कविता...   

 
कविता : डोनाल्ड जस्टिस 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम्हें संबोधित नहीं है यह कविता. 
तुम आ सकती हो इसमें थोड़ी देर के लिए, 
मगर कोई तुम्हें पाएगा नहीं यहाँ, कोई भी नहीं. 
तुम बदल गई होगी, कविता समाप्त होने के पहले. 

इस समय भी जब तुम बैठी हो यहाँ, अचल, 
अदृश्य होने लगी हो तुम. और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. 
कविता जारी रहेगी तुम्हारे बिना भी. 
झूठी तड़क-भड़क है इसके पास कुछ ख़ास रिक्तताओं की. 

सच में उदास नहीं सिर्फ खाली है यह.  
पहले कभी शायद उदास थी यह, किसी को पता नहीं क्यों. 
और अब यह कुछ भी याद नहीं रखना चाहती. 
अतीत की यादें बहुत पहले ही छील कर उतारी जा चुकी हैं इससे. 

तुम्हारे जैसी खूबसूरती की कोई जगह नहीं है यहाँ. 
अँधेरा आसमान है इस कविता के ऊपर. 
बहुत अंधेरा है यह सितारों के लिए. 
और तलाश मत करो रोशनी की एक झलक की भी. 

तुम न समझ सकती हो और न तुम्हें समझना ही चाहिए इसका मतलब. 
सुनो, यह आ रही है बिना गिटार के, 
न तो चिथड़े लपेटे और न ही किसी फैशनेबुल पहनावे में. 
और इसमें कुछ भी नहीं है तुम्हें दिलासा देने के लिए. 

बंद कर लो अपनी आँखें, उबासी लो, जल्द ही समाप्त हो जाएगी यह. 
तुम गढ़ोगी कविता को, लेकिन उससे पहले 
तुम्हें भूल चुकी होगी यह. और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. 
अपने मिटाने के कामों में बहुत खूबसूरत रही है यह. 

ओ धुंधले आईनों! डूब मरने वालों के सागरों! 
एक खामोशी बराबर नहीं होती दूसरी खामोशी के. 
और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या सोचती हो तुम. 
तुम्हें संबोधित नहीं है यह कविता. 
               :: :: :: 

5 comments:

  1. ....एक ख़ामोशी बराबर नहीं होती दूसरी ख़ामोशी के .......बहुत अच्छी कविता ! आभार मनोज जी !

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  2. बहुत कुछ कह गई बिना सम्बोधित किए हुए ही...तुम्हें सम्बोधित नहीं है यह कविता...बहुत खूब...

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  3. "खामोशियां" खामोशियां होते हुए भी एक-दूसरी से अलग तरह की खामोशियां होती हैं, यह बेहद गहरी बात कह दी है कवि ने. खामोशियां व्यक्ति-सापेक्ष दिखती हुई भी इस अर्थ में व्यक्ति-निरपेक्ष भी होती हैं कि हर ख़ामोशी अपना अक्स नहीं ढूंढ पाती वहां. अलग तरह की कविता है, और उसका अनुवाद बहुत बढिया है. बधाई.

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  4. आपके अनुवाद ... हमेशा पध्नीय होती है ...

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  5. मनोज भाई ....एक बार फिर गहरे में गोता लगा कर सुन्दरतम मोती चुन लाये है आप...!!! अगर कविता का कोई देश हो तो डोनाल्ड जस्टिस की यह कविता उस देश की स्पीकर बन सकती है....!! मैंने पढ़ी हुई कविताओं में से शुध्धतम कविता.बहुत बहुत शुक्रिया.

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