Wednesday, April 17, 2013

राबर्तो हुआरोज़ की कविता

राबर्तो हुआरोज़ की 'वर्टिकल पोएट्री' से एक और कविता... 

राबर्तो हुआरोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

चीजें नक़ल उतारती हैं हमारी. 
हवा की गिरफ़्त में आया एक कागज़ 
पेश आता है किसी गिरते-पड़ते इंसान की तरह. 
आवाजें सीख जाती हैं बतियाना हमारे समान. 
हमारा आकार ग्रहण कर लेते हैं कपड़े. 

चीजें नक़ल उतारती हैं हमारी 
मगर हमारा अंत होगा 
उनकी नक़ल उतारते हुए. 
                :: :: :: 
राबर्तो ख़्वारोज़ राबर्तो ख्वारोज़ 

3 comments:

  1. मगर हमारा अंत होगा उनकी नक़ल उतारते हुए .....

    बहुत बढ़िया ,अर्थपूर्ण कविता ...सुन्दर अनुवाद ।

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  2. वाह....
    बहुत बढ़िया
    too good!!!
    anu

    ReplyDelete
  3. वाह बहुत सुन्दर रचना | बेहतरीन अनुवाद |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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