अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
मेरे पार्लर में क़दम रखो : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
मेरे पार्लर में क़दम रखो
मौत मुझे कहती है
उसके बदन में
मैं अपनी महबूबाओं को
बरहना देखता हूँ
उसकी रान पर बहते हुए
अपने इंज़ाल को पहचान लेता हूँ
उसको मेरी उस नज्म का हमल है
जो मैं नहीं कह सका
उसको एक जाल का हमल है
जिससे मैं एक सितारा पकड़ना चाहता था
मेरे पार्लर में क़दम रखो
मौत मुझे कहती है
और नहीं जानती
अब मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं
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बरहना : नग्न
रान : जाँघ
इंज़ाल : वीर्य
हमल : गर्भ
bohat khoob...waah
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