अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
आग लगने के वक़्त : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
हर रात एक आदमी
तुम्हारे बिस्तर और तुम्हारे हाफ़िजे से चला जाता है
जब दरवाजे पर शोर होता है
मेरी तलाश में
मुझे क़त्ल करने के लिए
गिरे हुए बोसों को उठाकर
तुम अपने ख़्वाब से बाहर चली जाती हो
मैं ज़मीन पर चाक से निशान लगाता हूँ
तुम्हारे ख़्वाब में आए हुए आदमी को
इस निशान में ले जाता हूँ
जब आधा दरवाजा कट चुका होता है
तुम लौटकर आ जाती हो
अपनी एड़ी से
चाक के निशान
और ख़्वाब में आए हुए आदमी को
मिटाने के लिए
मैं आखिरी मंज़िल पर था
जब तुम्हारे मकान को आग लग गई
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हाफ़िजे : याददाश्त, स्मृति
बोसों : चुम्बनों
बढ़िया रचना
ReplyDeleterecent post
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waah bahut khoob
ReplyDeleteप्रेम और बर्बादी का मिला जुला मंजर दिखाती कविता.
ReplyDeleteप्रेम की अनुभूति हमेशा सुखद कहाँ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...उत्कृष्ट अनुवाद..
शुक्रिया मनोज जी.
अनु