हाल सिरोविट्ज़ की एक और कविता...
एक असंतुलन को सही करना : हाल सिरोविट्ज़
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं विज्ञापनों की कभी नहीं सुनता, पिता जी ने कहा.
उनका इरादा मुझे ऐसा कुछ बेचने की कोशिश करना होता है
जिसकी मुझे जरूरत नहीं होती. अगर मुझे उसकी जरूरत हो
तो मैं जानना चाहूँगा कि वह जरूरत मुझसे पैदा हुई है, न कि
दूसरों से. मैं नहीं चाहता कि मेरे पास ऐसा ढेर सारा कबाड़ जमा हो जाए
जिसे फेंकने के सिवा और कोई चारा न हो. इस घर की आधी चीजें
इस्तेमाल में नहीं आतीं. असल में हमें सिर्फ रोटी, कपड़ा, छत
और हाँ, एक-दूसरे की जरूरत होती है. तुम्हें मेरी जरूरत है.
है ना? तुम्हारी माँ मुझे बात करने का ज्यादा मौका नहीं देतीं.
मुझसे सिर्फ सुनने की अपेक्षा की जाती है. मैं तुमसे
बात करने में समर्थ हूँ, मगर मुझे ख़ुशी होगी
अगर कभी-कभार तुम भी बोल दिया करो कुछ.
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क्या बात है …. सीधी, सरल सच्ची बात ….शुक्रिया मनोज जी !
ReplyDeleteAptly said!
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