Tuesday, July 2, 2013

राबर्तो हुआरोज़ की कविता

राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता... 

राबर्तो हुआरोज़ की कविता  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

खामोशी गिरती है पेड़ों से 
जैसे सफ़ेद फल, 
किसी दूसरी रोशनी की चमड़ी तले पके हुए. 

धीरे-धीरे खामोशी जमा होती जाती है जमीन पर 
और सड़क को मिटा देती है आखिरकार. 
खामोशी मिटा देती है सारी सड़कों को, 
उसी तरह जैसे रात मिटाती है, या बर्फ़. 

इसी तरह ओझल होते हैं आदि एवं अंत, 
आगमन एवं प्रस्थान, 
जो एकमेक हो जाते हैं एक इकलौते निशान में. 

खामोशी में 
एक जैसी होती हैं सारी अतियां. 
                  :: :: :: 

4 comments:

  1. खामोशी में एक जैसी होती है सारी अतियां.
    !

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  2. खामोशी में एक जैसी होती हैं सारी अतियां.
    ...!

    ReplyDelete
  3. ओझल होते आदि एवं अंत... एकाकार सा सबकुछ!

    वाह!

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