अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
आख़िरी दलील : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
तुम्हारी मोहब्बत
अब पहले से ज्यादा इंसाफ़ चाहती है
सुबह बारिश हो रही थी
जो तुम्हें उदास कर देती है
उस मंजर को लाज़वाल बनने का हक़ था
उस खिड़की को सब्ज़े की तरफ खोलते हुए
तुम्हें एक मुहासरे में आए दिल की याद नहीं आई
एक गुमनाम पुल पर
तुमने अपने आप से मजबूत लहजे में कहा
मुझे अकेले रहना है
मोहब्बत को तुमने
हैरतज़दा कर देने वाली ख़ुशक़िस्मती नहीं समझा
मेरी क़िस्मत जहाज़रानी के कारखाने में नहीं बनी
फिर भी मैंने समंदर के फ़ासले तय किए
पुरइसरार तौर पर ख़ुद को ज़िंदा रखा
और बेरहमी से शायरी की
मेरे पास एक मोहब्बत करने वाले की
तमाम ख़ामियाँ
और आख़िरी दलील है
:: :: ::
मंजर : दृश्य
लाज़वाल : अमर, अनश्वर
मुहासरे में : घेरेबंदी में, कैद में
सब्ज़े : हरियाली
हैरतज़दा : अचंभित
साधू-साधू
ReplyDeleteमोहब्बत करने वाले की नाकामी की मार्मिक कविता.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अनुवाद है मनोज भाई.
ReplyDeleteसुन्दर.
:)
मुहब्बत को तुमने हैरतज़दा कर देने वाली खुशकिस्मती नहीं समझा ......
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद ,प्रभावी कविता !
मुहब्बत को तुमने हैरतज़दा कर देने वाली खुशकिस्मती नहीं समझा ......
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद ,प्रभावी कविता !