एमिली डिकिन्सन की एक और कविता...
तुम बुझा नहीं सकते हो आग को : एमिली डिकिन्सन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुम बुझा नहीं सकते आग को
जला सकने वाली कोई चीज
बुझ सकती है खुद से ही, बिना किसी पंखे के
सबसे धीमी रात को भी.
ज्वार को लपेट कर
तुम रख नहीं सकते किसी दराज में
क्योंकि हवाओं को पता चल जाएगा उसका
और वे बता देंगी तुम्हारे देवदार फर्श को.
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'जला सकने वाली कोई चीज़
ReplyDeleteबुझ सकती है खुद से ही'
सत्य... सुन्दर!
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteअच्छा अनुवाद .. छोटी से कविता .. सत्य कहती हुई
ReplyDeleteगहरे अर्थ लिए हुए
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