Friday, July 19, 2013

वन्दना शुक्ल : उपन्यास अंश

हाल ही में कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित वन्दना शुक्ल का यह उपन्यास आधार प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य है... 










उपन्यास अंश : वन्दना शुक्ल 
उस दिन मुहल्ले में कुछ ज्यादा ही रौनक थी पता पड़ा तीन दिन बाद वोट पड़ने वाले हैं कल सुबह इस ‘’श्रमिक निवास’’ के बाशिंदों को ले जाया जायेगा दो तीन घंटे के लिए |एक जन सभा है वहां बैठना है और गाड़ी उन्हें यहाँ से ले और छोड़ जायेगी |हर आदमी औरत को १०० रुपये और बच्चे को ५० रुपये मिलेंगे |मुहल्ले के लगभग सभी औरतें आदमी जा रहे थे |
‘’भाभी चलो ना मज़ा आयेगा...गाड़ी में बैठके जायेंगे ..बस बैठना ही तो है दो घंटे में वापस भी आ जायेंगे ‘’पड़ोस की मंजू ने कहा
अचानक मैना को घर के ज़रूरी खर्चे याद आये और पाई पाई की मोहताजी भी |हलाकि संजू को सर्दी जुकाम था थोड़ी हरारत भी लेकिन उसे गर्म कपडे पहनाकर उसने तैयार कर लिया और वो भी सुबह ठीक छः बजे अँधेरे ही राजो के सिरहाने पूड़ी सब्जी बना रखकर मुहल्ले की औरत आदमियों के साथ आकर खड़ी हो गई |औरतें ऐसे तैयार हुई थीं जैसे किसी मेले में जा रही हों |मैना ने भी आज ना जाने कितने दिनों बाद होठों पर लाली और आँखों में सुरमा लगाया था |कितने दिन बाद उसे लगा था कि वो घूमने मजे करने के लिए कहीं जा रही है नहीं तो बस चिंताएं ही चिंताएं ...पैसे सो अलग मिलेंगे |
वहां एक नीले रंग का खुला टेक्टर खडा था | सामने पार्टी का झंडा लगा हुआ था |ट्रेक्टर में कानफोडू देशभक्ति पूर्ण गीत बज रहे थे | पार्टी के दो तीन आदमी सभी को ट्रक में बैठने को कह रहे थे बच्चों को खुद गोदी में ले कर बिठा रहे थे माएं निहाल हो रही थीं |बच्चे और औरतों के चेहरे खिल रहे थे  पिकनिक पर जाने का माहौल था
‘’जल्दी बईठो भाई लोगों ...सभा का टेम हो रहा है ....|पार्टी का कार्यकर्ता जो ट्रक में इन लोगों को लेने आया था चिल्ला रहा था |खूब उत्साह से सब ट्रक में बैठ रहे थे |कोई कोई घर से चद्दर दरी भी ले आया था जो उन्होंने ट्रक में बिछाकर ‘’जगह घेर’’ ली थी किसी के हाथों में पानी की बोतलें भी दिखाई दे रही थीं |उत्सव का वातावरण था |ट्रक चल पड़ा |पार्टी कार्यकर्ता ने माता जागरण के जय घोष की तर्ज़ पर जोर से चिल्ला कर कहा ‘’भारत माता की ‘’सब बोले जय ...बच्चे तालियाँ बजा रहे थे
ट्रक चला जा रहा था सडकोचोराहों तिराहों गली मुहल्लों को पार करता इठलाता इतराता ठसक के साथ नारों की गूँज को धुंए के साथ पीछे छोडता .. |एक आदमी अपने फटे गले से दहाड़ रहा था ’’देश का नेता कैसा हो .....?.......जैसा हो ...सब कहते |.आयेगी वोटों की आंधी जीतेगी बस ....देश को बचाना है तो ..... पे मोहर लगाना है....|औरतें आदमी बिना ‘मतलब’ के जंजाल को समझे बूझे पूरी दम लगा कर चीख रहे थे उन्हें खुद नहीं पता था कि जिनके नाम ले लेकर वो पसीने पसीने हुए जा रहे हैं वो आखिर हैं कौन कहाँ हैं कैसे हैं?उन्हें तो बस सौ रुपये के हरियाले नोट दिखाई दे रहे थे ..यानी पूरे दिन की हाड़तोड़ मजूरी यानी की दिहाड़ी के अतिरिक्त कोई एक्स्ट्रा इनकम ...हर नारे के पीछे दिखता दाल भात भरपेट वो भी सब्जी शुदा ..गेहूं के आटे की गोल मटोल रोटी और मेले में खरीदारी | आस्था और विशवास का अप्रतिम उदाहरण |बच्चे व् युवा दो बिस्कुट और एक एक कचौड़ी के बदले में अपनी ऊर्जा पहले ही दांव पर लगा चुके थे |उनकी साँसें और गले की नसें धौंकनी की तरह उठती बैठतीं |वो सब इतने जोश के साथ नारेबाजी कर रहे थे मानों बस रामराज्य आने ही वाला है |मैना भी बीच बीच में चिल्ला लेती पर संजू रोने लगा था
अब ट्रक में से सब उतर रहे थे |वो एक बड़ा मैदान था जहाँ मंच बना हुआ था कुर्सियों परझक्क सफ़ेद कलफ नील लगा कुर्ता धोती पहने कुछ नेता गण बैठे थेजिनके आसमान के हिस्से में गुलाबी रंग का तम्बू तना हुआ था |उनके सर पर गांधी टोपियाँ मुकुट की तरह सजी हुई थीं | बाकी कार्यकर्ता दौड दौड कर इंतजामों में लगे थे |धूप सुलगने लगी थी |मैदान के सिरों पर खाने पीने खिलौनों आदि के ठेले थे |ट्रक में भरकर आये बच्चो का पूरा ध्यान वहीं लगा था ,माएं उनका ध्यान वहां से हटाने की कोशिश कर रही थीं पर बच्चे जिद्दीयाये बैठे थे |एकाध ने तंग आकर अपने बच्चे को आइसक्रीम वगेरह दिला दी थी |अब वो ‘विजेता’ गर्व-भाव से अन्य बच्चों को दिखा कर चिढाता हुआ सा आइसक्रीम को मज़े ले लेकर चूस रहा था असफल बच्चे और ज़ोर ज़ोर से चीख रहे थे,कुछ माएं खीझकर अपने जिद्दीयाते बच्चों के गालों पर तमाचे जड़ रही थीं तडाक ....तड़ाक.... |
‘’भारात माता की?....जय’’एक ‘टेक की टेक ले अगला वाक्य माइक में से उछला ‘...भाइयों बहनों बस नेताजी आने ही वाले है आप लोगों से विनती है सांति बनाये रखें ‘’लाउडस्पीकर चीख रहा था |उधर बच्चे और उनके माँ बाप लाउडस्पीकर और आइसक्रीम के बीच फंसे हुए थे
दो घंटे तक नारेबाजी, बैठने के इंतजामात होने और नेतागणों के आने के बाद भाषण शुरू हुए |
‘’देश की जनता भूखी है....उन्हें दो जून की रोटी चाहिए | भारत माता अन्यायियों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों जैसे दरिंदों और भूखे लोगों पर अत्याचार से आजिज़ आ चुकी है गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हुई है वो भाइयों बहनों उसे गुलामी की उन बेड़ियों से हम और आप मुक्त कराएँगे चलिए आज ये सौगंध खाएं हम |(तालियाँ )गरीबी की रेखा के नीचे हजारों लाखों तडप रहे हैं नर्क भोग रहे हैं ....हमारी पार्टी उन गरीबों के हाथ बनेगी काम देगी उन्हें...उनका भोजन और कपड़ा उपलब्ध करायेगी....उनके बच्चों को शिक्षा और रुजगार देगी ये हम आपसे वादा करते हैं आज इस मंच पर खड़े हो...आप हज़ारों लोग जो इस बखत यहाँ मौजूद हैं गवाह हैं हम पर विस्वास के , हम पर भरोसा किये हैं आप लोग ,इस भरोसे को भाइयों किसी भी कीमत पर तोड़ने नहीं देंगे चाहे हमें इस धरती माता पर अपने प्राण ही क्यूँ ना निछावर करने पड़ें ..’’भारात माता की ..नेताजी के बगल मे खड़े कार्यकर्ता ने माईक पर दहाड़ लगाईं ...जय ..मैदान गूंज उठा | ‘’जब जब देश गुमराह हुआ है उस पर विपत्ति का पहाड़ टूटा है हमारी पार्टी ने ही उसे उबारा है ...आज हम आपको बता नहीं सकते कि हमें कितनी प्रसन्नता हो रही है कि इतनी विशाल संख्या में आप लोग हमें सहयोग देने एकत्रित हुए हैं ...विशेषतौर पर माँ बहने जो अपने नन्हें नन्हें बच्चों को लेकर यहाँ आई हैं और उत्साह से नारे लगा रही हैं ...अब इस देश को उन्नति के रास्ते से कोई नहीं भटका सकता ........
अचानक औरतों वाले हिस्से में झूमा झटकी और गाली गलौंच की आवाजें उठने लगीं | औरतें लड़ रही थीं किसी बात पर अब उन्होंने एक दूसरे के झोंटे पकड लिए थे | उनके तरफ दारों में भी खींचा तानी होने लगी थी |छोटे बच्चे रो रहे थे बाकी लोग भाषण छोड़ उन्हें देखने लगे थे ...तमाशे में तमाशा ...| कुछ पुलिस के ठुल्ले अपनी बेंत घुमाए दौड पड़े घटना स्थल पर |कार्यकर्ता दौडकर बीच बचाव कर रहे थे |एक आदमी मंच से माईक पर शांति बनाये रखने की गुहार कर रहा था |
‘’साथी हाथ बढ़ाना ...एक अकेला थक जाएगा ......‘’गाना चीखने लगा था और महिलाओं की गालियों, अपशब्दों चीखों चिल्लाहटों का शोर उसमे दबने लगा |अब दूसरे नेता भाषण के लिए खड़े हो रहे थे |मैदान ज्यादातर ऐसे ही लोगों से भरा हुआ था जो ट्रकों में भरकर लाए गए थे |किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मंच पर क्या चल रहा है ?दोपहर के बारह बज गए थे |बच्चे रोने लगे थे धूप भी तेज हो गई थी |पैसे थे नहीं कि बच्चों को खोमचे से कुछ दिलवा दें | एकाध आदमी ने अपने बिलखते बच्चे को देखकर सकुचाते हुए कार्यकर्ता से सौ रुपये मांगे थे जो उन्होंने यहाँ आने के एवज में देने का वायदा किया था पर कार्यकर्ता ने बुरी तरह हडका दिया |संजू रो रोकर बेहाल हो रहा था उसका बदन और भी तपने लगा था |मैना ने दो एक कार्यकर्ताओं से बात करनी भी चाही जो उन्हें यहाँ तक लेकर आये थे और  सुबह आते बखत बहुत अच्छी तरह से बोल रहे थे |उन्होंने बात सुनी ही नहीं और काम काज में व्यस्त रहे |मैना को समझ में नहीं आ रहा था क्या करे?कहा गया था कि दो घंटे में ट्रक घर पर छोड़ जायेगा और १०० रूपये मिलेंगे सो अलग  ...अब तो राजो भी भूखा होगा चाय भी नहीं दी उसको इधर संजू का रो रोकर बुरा हाल |दोपहर के दो बजे तक सभी की हालत बुरी हो गई |सभा खत्म हो चुकी थी पर जो कार्यकर्त्ता उन्हें लेकर आये थे वो कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे |ट्रकों का भी कोई आता पता नहीं था |लोगों में अफरा तफरी सी मची हुई थी |एक भीड़ के रेले के साथ मैना रोते हुए संजू को गोद में लिए सभा स्थल के द्वार तक पहुँच गयी |
‘’ए लड़की रुक ....उसे लगा कोई आवाज़ दे रहा है |मैना ने पीछे मुड़कर देखा |एक बड़े नेता मंच से सीढ़ियों पर से उतर रहे थे उनके साथ भीड़ का एक जत्था था उन्हीं में से एक कार्यकर्ता उसे आवाज़ दे रहा था |मैना ठिठक कर खड़ी हो गई अब वो लोग पास आ गए |चारों तरफ कैमरे पत्रकारों और फोटोग्राफरों की भीड़ ने उसे घेर लिया
‘’अरे इस छोटे से बच्चे को लेकर आई है बेटी....कहाँ रहती है?नेताजी ने मिश्री घुले स्वर में संजू के गाल पर थपकी देते हुए कहा |
उद्योग नगर में मैना ने डरते सहमते हुए उत्तर दिया
अच्छा अच्छा ...हम एक दफे गए थे उद्योग नगर में भी प्रचार के वास्ते ...नेताजी ने अपने बगल में खड़े कार्यकर्ता से कहा |उसने ‘’धन्य हो जाने’’ की मुद्रा से हाथ जोड़कर प्रणाम किया
देखो हमारी पार्टी तुम जैसी महिलाओं के लिए कई नई योजनाएं शुरू कर रही है |घर बैठे तुम उद्योग कर सकती हो ...नेता जी ने पुनः मैना की और मुखातिब होते हुए कहा
मैना उनकी ओर सहमी सी देख रही थी |
कैमरे के लेंस में भीड़,नेताजी,मैना और सुबकते हुए संजू की तस्वीरें धडाधड कैद हो रही थीं जिन्हें कुछ देर बाद दूरदर्शन की स्क्रीन पर चमकना था और कल सुबह  अखबार की सुर्खियाँ बनना था ,मैना जैसे लोग ये सब नहीं जानते
कभी आयेंगे बेटी तुम्हारे नगर में ...जानती हो ना ठप्पा कहाँ लगाना है?
‘’हमारा नेता कैसा हो .....जोर से आवाज़ उठी ....
नेताजी हाथ जोड़कर चमचों में घिरे गायब हो गए |कैमरों का मुहं उधर मुड गया |मैना भीड़ से घिरी अकेली खड़ी थी अब |तेज़ रोशनी के गायब होते ही आँखों की अंधियारी बढ़ गई थी |बगल में खड़ी दो फैशनेबल औरतें मैना को देख रही थीं एक ने कहा ..’’लकी वूमन ..देखो तो ‘’सर’ कितनी आत्मीयता से बात कर रहे थे इससे हमारी तरफ देखा भी नहीं उन्होंने ...बाई दि वे हूँ इज दिस ..|अरे कोई नहीं ऐसे ही जनता है...दूसरी ने कहा ...|
                                   :: :: :: 

(सम्पर्क : shuklavandana46@gmail.com

2 comments:

  1. कोई नहीं ऐसे ही जनता है...जनता तो वाकई ऐसे ही है...काम के तो बस नेता हैं...

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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