Wednesday, October 17, 2012

महमूद दरवेश : एयरपोर्ट पर


महमूद दरवेश की तीसरी और आखिरी गद्य पुस्तक 'इन द प्रजेंस आफ एब्सेंस' के अनुवाद के लिए इराकी कवि, कथाकार और अनुवादक सिनान अन्तून को हाल ही में अमेरिकन लिटरेरी ट्रांसलेटर्स एसोसिएशन द्वारा राष्ट्रीय अनुवाद पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. इस किताब से एक अंश आप पहले भी यहाँ पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है एक और अंश...  










एयरपोर्ट पर : महमूद दरवेश 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

किसी इंसान के एयरपोर्ट पर रहने का क्या मतलब होता है? तुम सोचते हो: अगर मैं, मैं होता तो मैंने एयरपोर्ट पर अपनी आजादी की तारीफ़ में कुछ लिखा होता: मैं और मक्खी आज़ाद हैं. मक्खी, मेरी बहन नर्मदिल है. वह मेरे कन्धों और हाथों पर बैठ जाती है. मुझे लिखने की याद दिलाकर उड़ जाती है और मैं एक पंक्ति लिख लेता हूँ. जैसे एयरपोर्ट उन लोगों का वतन हो जिनका कोई वतन नहीं. कुछ देर बाद मक्खी फिर आ जाती है. एकरसता को तोड़कर वह फिर उड़ जाती है. मैं किसी से बात नहीं कर पाता. मेरी बहन, वह मक्खी कहाँ है? मैं कहाँ हूँ आखिर?   

तुम खुद को एक फिल्म में देखते हो जिसमें तुम कैफेटेरिया में सामने बैठी एक स्त्री को घूर रहे हो. जब वह तुम्हें निहारते हुए देख लेती है, तुम अपनी कमीज पर गिर आई शराब की एक बूँद को पोछने का बहाना करने लगते हो, वह बूँद जो उन बातों में से एक भगोड़े शब्द जैसी है जिसे तुमने उससे कहा होता गर वह तुम्हारे साथ होती: मेरे लिए आपकी खूबसूरती आसमान की तरह बहुत ज्यादा है, इसलिए बराएमेहरबानी आसमान को थोड़ा सा उठा लीजिए ताकि मैं बात कर सकूं. तुम भाप छोड़ते सूप के कटोरे से अपनी निगाहें उठाते हो और पाते हो कि वह तुम्हें देख रही है. मगर वह अपने खाने पर एक ऐसे हाथ से नमक छिड़कने में मशगूल होने का बहाना करने लगती है जिस पर रोशनी कांपती रहती है. तुम चुपचाप उससे बातें करते हो: मेरी तरह अगर तुम भी कहीं जाने से प्रतिबंधित होती, अगर तुम भी होती मेरी तरह! तुम्हें लगता है कि तुमने उसे शर्मिन्दा कर दिया है इसलिए तुम वेटर से बात करने का दिखावा करने लगते हो: नहीं, सॉरी. उसकी गर्दन पर पसीने का एक मोती झिलमिलाने लगता है और जैसे तारीफ़ के लिए बढ़ने लगता है. तुम चुपके से उसे बताते हो: अगर मैं तुम्हारे साथ होता तो पसीने की उस बूँद को चाट जाता. हसरत उतनी ही जाहिर और नुमायाँ हो गई है जितना कि प्लेट, काँटा, चम्मच, छुरी, पानी की बोतल, मेजपोश और मेज के पाए. हवा में खुश्बू है. दो निगाहें मिलती हैं, लजाती हैं और जुदा हो जाती हैं. वह शराब के प्याले से एक घूँट भरती है, जिसमें वह मोती भी घुल चुका है. तुम्हें महसूस होता है कि वह किसी गहरे समंदर में व्हेल का रूदन सुन चुकी है. नहीं तो इस गाढ़ी खामोशी में उसे क्या डुबो रहा होता? तुम चोरी से उसे बताते हो: अगर वे यह एलान करें कि एयरपोर्ट पर एक बम फटने वाला है तो इस बात का भरोसा मत करना! यह अफवाह मैं ही फैला रहा हूँ, तुम तक पहुँचने के लिए और तुमसे यह कहने के लिए कि कोई और नहीं मैं ही हूँ इस अफवाह को फैलाने वाला. तुम्हें लगता है कि वह आश्वस्त हो गई है, और जैसे ही वह तुम्हारी तंदरुस्ती के नाम अपना जाम उठाती है, उसकी उँगलियों के पोरों से हसरत का एक धागा फिसल जाता है और तुम्हारी रीढ़ की हड्डी में बिजली का करंट दौड़ा जाता है. एक सिहरन तुम्हें हिला देती है. मंत्रमुग्ध होकर तुम गहरी साँसे लेने लगते हो. हवा में लटकते एक पोशीदा पलंग से आम की महक तैरती हुई आती है. कहीं दूर ग़मज़दा वायलिनें विलाप करती हैं, चरम पर पहुँचने के बाद उनके तार शांत हो जाते हैं.     

तुम उस पर निगाह नहीं डालते क्योंकि तुम्हें पता है कि उसकी निगाहें तुम पर हैं, फिर भी वह तुम्हें देख नहीं रही है. तुम्हारी मेज को धुंध ने ढँक लिया है जो अब उन तमाम व्याख्यात्मक औजारों के नीचे दबी ऊंघ रही है जिन्हें तुमने उस पर जमा कर रखा है और उन सफ़ेद कागजों के नीचे दबी हुई भी जिन्हें बीस लेखक मिलकर भी शब्दों की बाजीगरी से भर नहीं सकते. यह वेटर नहीं, वह थी जिसने तुम्हारी मूर्छा तोड़कर तुमसे पूछा था: खाना ठीक था? तुमने उससे पूछा: और तुम्हारा? उसने कहा: तुमसे मिलकर खुशी हुई... क्या तुम्हें मेरी याद है? तुमने कहा: एयरपोर्टों पर किसी की याददाश्त जा भी सकती है. उसने कहा: खुदाहाफिज़! तुमने उसे जाते हुए नहीं देखा, क्योंकि तुम नहीं चाहते थे कि पूजाघरों के संगमरमर पर दो ऊंची हीलों को देखकर हसरत फिर सर उठाने लगे और वायलिनों की सूरत में जुदाई के लिए कोई लालसा भड़कने लगे. लेकिन तुमने उसे याद किया जब नींद घिर आई, तुम्हारी देह पर शराब के सुन्न कर देने वाले असर की तरह जो घुटनों से उस हिस्से की तरफ बढ़ता रहता है जिसे बदन के जंगल में तुम याद नहीं रख पाते. और जहां तक उसके नाम की बात है, उसे शायद तुम कल जान सको, किसी और मेज पर, किसी और एयरपोर्ट पर. 
                                                                :: :: :: 
(शीर्षक हिन्दी अनुवादक की ओर से)

1 comment:

  1. वाह! बहुत सुंदर और मनभावन गद्य! "मैं और मक्खी आजाद हैं. मक्खी, मेरी बहन..." रस-सिक्त अनुवाद!

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