Thursday, October 25, 2012

अन्ना स्विर : शादी वाली सफ़ेद जूतियाँ

अन्ना स्विर की एक और कविता...   


शादी वाली सफ़ेद जूतियाँ : अन्ना स्विर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

रात में 
माँ ने एक संदूक खोली 
और अपनी 
रेशमी सफ़ेद शादी वाली जूतियाँ निकालीं. 
फिर धीरे से 
रोशनाई पोत दिया उन पर. 

सुबह-सुबह 
उन जूतियों को पहने वे 
निकल पडीं सड़क पर 
ब्रेड की कतार में खड़ी होने के लिए. 
शून्य से दस डिग्री नीचे के तापमान में 
तीन घंटे तक 
वे खड़ी रहीं सड़क पर. 

वे बाँट रहे थे 
प्रति व्यक्ति एक-चौथाई डबल रोटी. 
            :: :: :: 

10 comments:

  1. कीमती जूतियों में रोटी की खैरात लेना शर्मिंदगी की बात जो होती !
    बहुत असरदार कविता ...आभार मनोज जी !

    ReplyDelete
  2. मन को मथ देने वाली कविता, ये उस दौर का ताफ्सिरा है. शुक्रिया मनोज भाई.

    ReplyDelete
  3. मन को मथ देने वाली कविता. यह उस दौर का ताफ्सिरा है. शुक्रिया मनोज भाई.

    ReplyDelete
  4. शादी के रूमानी माहौल से हकीकत की बर्फीली धरती पर खड़े कर देने वाली अद्भुत कविता.

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...