अन्ना स्विर की एक और कविता...
शादी वाली सफ़ेद जूतियाँ : अन्ना स्विर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
रात में
माँ ने एक संदूक खोली
और अपनी
रेशमी सफ़ेद शादी वाली जूतियाँ निकालीं.
फिर धीरे से
रोशनाई पोत दिया उन पर.
सुबह-सुबह
उन जूतियों को पहने वे
निकल पडीं सड़क पर
ब्रेड की कतार में खड़ी होने के लिए.
शून्य से दस डिग्री नीचे के तापमान में
तीन घंटे तक
वे खड़ी रहीं सड़क पर.
वे बाँट रहे थे
प्रति व्यक्ति एक-चौथाई डबल रोटी.
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wow
ReplyDeleteआह......
ReplyDeleteअनु
Bahut badhiya
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteकीमती जूतियों में रोटी की खैरात लेना शर्मिंदगी की बात जो होती !
ReplyDeleteबहुत असरदार कविता ...आभार मनोज जी !
मन को मथ देने वाली कविता, ये उस दौर का ताफ्सिरा है. शुक्रिया मनोज भाई.
ReplyDeleteमन को मथ देने वाली कविता. यह उस दौर का ताफ्सिरा है. शुक्रिया मनोज भाई.
ReplyDeleteuff...kitni peeda hai kavita me ..
ReplyDeleteअतिकरुण.
ReplyDeleteशादी के रूमानी माहौल से हकीकत की बर्फीली धरती पर खड़े कर देने वाली अद्भुत कविता.
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