आज फिर से दो लघुकथाएं...
दो लघुकथाएं
(अनुवाद : मनोज पटेल)
गड्ढा : बाब जैकब्स
तस्वीरों में क्रिस्टी दिखाई नहीं पड़ती. जहां उसे होना चाहिए वहां पृष्ठभूमि नजर आती है. इस बारे में सोचते हुए मैं रात-रात भर जागा करता हूँ जबकि क्रिस्टी अँधेरे में मेरे बगल सो रही होती है. भोर होते ही वह बिस्तर छोड़ निकल जाएगी. मैं करवट बदलूंगा और ताजुब्ब करूंगा कि उसके तकिये पर कोई गड्ढा क्यों नहीं है.
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घर में बुक क्लब : एम जे इयुप्पा
वे बूढ़े हैं और कमरे में अपनी कुर्सी तक जाने के लिए भी छड़ी लेकर चलते हैं. उन्हें पता है कि वे यहाँ पहले भी आ चुके हैं. कोई नहीं जानता कि जो किताबें वे पढ़ते हैं, उन्हें कौन चुनता है. उनका कहना है कि यह उनके हाथ में नहीं है. वे हर समय पढ़ते ही रहते हैं लेकिन न तो कथानक समझ पाते हैं, न ही यह कि किसने किसके साथ क्या किया. वे कहते हैं कि यही ज़िंदगी है, और फिर उसे अपने दिमाग से निकाल देते हैं.
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बहुत उम्दा कहानियाँ है दोनों ! सुदर अनुवाद !बधाई मनोज जी !
ReplyDeletebahut badhiya,hum pahle idhar kaise nahin aaye!!!?
ReplyDeleteअसहायता के दो सुरेख चित्र.बहुत बहुत आभार मनोज भाई.
ReplyDeleteमृतकों की स्मृति को समर्पित मूडपीस.
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