पोलिश कवयित्री अन्ना स्विर की एक और कविता...
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हैरत : अन्ना स्विर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
इतने सालों से
देखती आ रही हूँ तुम्हें
कि बिल्कुल अदृश्य हो गए हो तुम.
मगर अभी तक एहसास नहीं था मुझे इस बात का.
कल संयोग से
किसी और के संग चुम्बनों का आदान-प्रदान किया मैंने.
और तब जाकर कहीं
यह जाना मैंने हैरत के साथ
कि लम्बे समय से
मेरे लिए एक पुरुष नहीं रह गए हो तुम.
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विजयादशमी की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसादर --
यह कविता नया रिश्ता जोड़ने पर पुराने रिश्ते स्मृति को समर्पित है.
ReplyDeleteआघातपूर्ण. कटु पहलु.
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