Wednesday, October 24, 2012

अन्ना स्विर : हैरत

पोलिश कवयित्री अन्ना स्विर की एक और कविता...  


हैरत : अन्ना स्विर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

इतने सालों से 
देखती आ रही हूँ तुम्हें 
कि बिल्कुल अदृश्य हो गए हो तुम. 
मगर अभी तक एहसास नहीं था मुझे इस बात का. 

कल संयोग से 
किसी और के संग चुम्बनों का आदान-प्रदान किया मैंने. 
और तब जाकर कहीं 
यह जाना मैंने हैरत के साथ 
कि लम्बे समय से 
मेरे लिए एक पुरुष नहीं रह गए हो तुम. 
               :: :: :: 

3 comments:

  1. विजयादशमी की शुभकामनाएं |
    सादर --

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  2. यह कविता नया रिश्ता जोड़ने पर पुराने रिश्ते स्मृति को समर्पित है.

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  3. आघातपूर्ण. कटु पहलु.

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