माइकल आगस्तीन (1953) की एक लघुनाटिका...
इंटरसिटी : माइकल आगस्तीन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
समय : 20 मिनट विलम्ब से
स्थान : बाज़िल और फ्रैंकफर्ट के बीच
ट्रेन के एक डिब्बे में दो महानुभाव बैठे हुए हैं. कम उम्र वाला शख्स एक किताब में डूबा हुआ है. अधिक उम्र वाला व्यक्ति खिड़की के बाहर देखता है
अधिक उम्र वाला काश तुम्हें पता होता कि तुम कितना कुछ गँवा रहे हो!
कम उम्र वाला खलल से खीझते हुए क्या मतलब है आपका?
अधिक उम्र वाला वह सब जो तुम गँवा रहे हो! अगर तुम्हें एहसास होता!
कम उम्र वाला मैं पढ़ रहा हूँ.
अधिक उम्र वाला बिल्कुल ठीक! और साथ ही साथ तुम वास्तविकता का बहुत कुछ गँवा भी रहे हो.
कम उम्र वाला बकवास!
अधिक उम्र वाला उकसाता हुआ तुम्हारी किताब में ऐसा क्या ख़ास है, ज़रा बताओ तो?
कम उम्र वाला यह ट्रेन के एक डिब्बे में बैठे दो लोगों की कहानी है जिनमें से एक नौजवान है और दूसरा बुजुर्ग. नौजवान आदमी एक किताब पढ़ता होता है कि तभी खिड़की से बाहर देखता अधिक उम्र वाला व्यक्ति यह दावा करता है कि वह वास्तविकता का बहुत कुछ गँवा रहा है. इस पर कम उम्र वाला किताब की कहानी को संक्षेप में बुजुर्गवार को सुनाता है जो क्रोधित होकर चिल्लाते हैं: तुमने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या!
अधिक उम्र वाला क्रोधित होकर तुमने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या!
कम उम्र वाला बिना विचलित हुए एक मिनट, एक मिनट -- उसके बाद इसमें लिखा हुआ है कि इसके पहले कि कम उम्र वाला अपनी किताब फिर से पढ़ना शुरू कर पाता, अचानक पर्दा गिरता है...
अचानक
पर्दा गिरता है
:: :: ::
waah .
ReplyDeleteरोचक!
ReplyDeleteदो पीढ़ियों के अंतर की दिलचस्प लघुनाटिका. नसीहत देने वाला बुजुर्ग युवक से परास्त हो जाता है.
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