अफजाल अहमद सय्यद की एक और कविता...
कौन शायर रह सकता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल)
लफ़्ज अपनी जगह से आगे निकल जाते हैं
और ज़िंदगी का निजाम तोड़ देते हैं
अपने जैसे लफ़्जों का गढ़ बना लेते हैं
और टूट जाते हैं
उनके टूटे हुए किनारों पर
नज्में मरने लगती हैं
लफ़्ज अपनी साख्त और तक़दीर में
कमजोर हो जाते हैं
मामूली शिकस्त उनको ख़त्म कर देती है
उनमें
टूट कर जुड़ जाने से मुहब्बत नहीं रह जाती
इन लफ़्जों से
बदसूरत और बेतरतीब नज्में बनने लगती हैं
सफ़्फ़ाकी से काट दिए जाने के बाद
उनकी जगह लेने को
एक और खेप आ जाती है
नज्मों को मर जाने से बचाने के लिए
हर रोज इन लफ़्जों को जुदा करना पड़ता है
और इन जैसे लफ़्जों के हमले से पहले
नए लफ़्ज पहुंचाने पड़ते हैं
जो ऐसा कर सकता है
शायर रह सकता है
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निजाम : व्यवस्था
साख्त : बनावट, गढ़ंत
सफ़्फ़ाकी से : निर्दयतापूर्वक
वाह...
ReplyDeleteबहुत खूब...
अनु