अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...
हमें हमारे ख़्वाबों में मार दिया जाता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल)
हमें हमारे ख़्वाबों में मार दिया जाता है
पहले बारिश होती है
फिर कीचड़ फैल जाती है
फिर हमें मार दिया जाता है
उन अस्लहों से
जिनका निशाना
ताज़ीरात की किताब में
हमेशा के लिए दुरुस्त बना दिया गया है
हम अपने ख़्वाब में लैंप रूम की तरफ जाते हैं
जिसमें बैठे हुए चोर
अपने दांतों से कुतरी हुई रात का टुकड़ा
हमारे आगे फेंक देते हैं
जिसे हम चबाते हैं
और जाग जाते हैं
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
उस दरख़्त को पानी दो
उसमें तुम्हारी रात है
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
उस समंदर में उतर जाओ
उसकी तह में एक जहाज़ डूब गया है
जिसमें तुम्हारी रात सफ़र कर रही थी
हमारी रात चोरी हो गई है
सय्यारों के किसी और निजाम के लिए
फूलों की नुमाइश के दरवाज़े पर खड़ी हुई लड़की पूछती है
तुम्हारी रात कहाँ है?
और बारिश होने लगती है
समंदर उलट पलट हो जाता है
और मुझे खींचकर चांदमारी के मैदान की तरफ ले जाया जाता है
बग्घी में जाती हुई लड़की गर्दन बाहर निकालकर मुझे देखती है
और बारिश में भीग जाती है
अगर मेरे दोनों हाथ
मेरी पुश्त पर बंधे हुए न होते
तो मैं उसे अलविदा कहता
कल मैंने ख़्वाब में उस लड़की का बोसा लिया था
सिर्फ़ एक बोसा
और बारिश होने लगती है
बारिश होने लगती है
यहाँ तक कि चांदमारी की आधी दीवार पानी में डूब जाती है
भीगी हुई रस्सी
हमारे हाथों को और सख्त़ी से जकड़ देती है
हम बारिश में नंगे पाँव
इस तरह चलते हैं
जैसे ज़मीन नंगे पाँव चलने वालों के लिए बनी हो
बारिश हो रही है
हम भीग रहे हैं
अब हम यह कपड़े कभी नहीं बदलेंगे
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
तुम्हारे पास दूसरा जोड़ा तो होगा
दूसरे जोड़े के लिए
अपने घर
या किसी और के घर नक़ब लगानी होगी
और हमारे दोनों हाथ पीछे बंधे हुए हैं
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
तुमने बरसाती क्यों नहीं खरीदी
अब
जब चांदमारी की दीवार सामने नज़र आने लगी है
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
तुमने बरसाती क्यों नहीं खरीदी
हम अपने ख़्वाबों से कहते हैं
अब बारिश बहुत तेज हो गई है
जाओ
और जाकर
बरसातियों की दूकान के सायबान में सो रहो
बरसाती में मलबूस एक शख्स
भीगे हुए रजिस्टर में मेरा नाम पुकारता है
कोई मुझे धक्का देकर आगे कर देता है
अब मुझे मार दिया जाएगा
इतनी बारिश में
मुझे मार दिया जाएगा
मैं उतनी देर में कोई ख़्वाब देखना चाहता हूँ
आतिशदान के पास बैठी हुई लड़की से
कोई कहता है
तुमने बग्घी की खिड़कियाँ बंद रखी होतीं
मैं उतनी देर में कोई ख़्वाब देखना चाहता हूँ
कोई उसे
ख़ूबसूरत सी शाल में लपेटकर कहता है
तुम्हें इतनी बारिश में बाहर नहीं निकलना चाहिए था
:: :: ::
सय्यारों : सितारों
नक़ब : सेंध
पुश्त : पीठ
सायबान : छज्जा, आड़
प्रेम करने वालों को ख्वाबों भरी एक रात भी नसीब नहीं ,ज़माने की बारिश उस भी धो डालना चाहती है ...मार्मिक कविता ! अनुवाद बेहद खूबसूरत किया है आपने मनोज जी ! बधाई इसके लिए !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअब मुझे मार दिया जाएगा ...
ReplyDeleteमैं उतनी देर में कोई ख़्वाब देखना चाहता हूँ ........... वाह !
हो सकता है नियमित रूप से न पढ़ने और बहुत कम पढ़ने की ख़राब आदत के चलते मैं बहुत कुछ मिस कर जाता होऊँ, पर निश्चित रूप से यह यादगार कविता है।
ReplyDeleteख्वाब सभी अभावों का प्रतीक है. मरने से पहले कुछ सुंदर कल्पना कर लेना बेहद मार्मिक और रूमानी है.
ReplyDeleteहमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
ReplyDeleteउस समंदर में उतर जाओ
उसकी तह में एक जहाज़ डूब गया है
जिसमें तुम्हारी रात सफ़र कर रही थी
बहुत बढ़िया
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं
ReplyDeleteउस समंदर में उतर जाओ
उसकी तह में एक जहाज़ डूब गया है
जिसमें तुम्हारी रात सफ़र कर रही थी
बहुत बढ़िया