माइकल आगस्तीन (1953) की दो कविताएँ...
माइकल आगस्तीन की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
शहर का बाहरी हिस्सा, शाम लगभग 7:00 बजे
शादीशुदा जोड़े
सिटकिनी लगाकर बंद कर लेते हैं
अपने अलग-थलग खड़े घरों को.
बाहर
धुंधलाई शाम में
घात लगाए बैठे हैं तलाक के वकील.
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समुद्र में समाधि
हवा के एक झोंके ने
पलट दिया है नाव को.
डूब गया है
मातम करने वालों का पूरा झुण्ड.
सिर्फ अस्थिकलश
तैर रहा है.
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"बाहर
ReplyDeleteधुंधलाई शाम में
घात लगाए बैठे हैं तलाक़ के वकील"
"सिर्फ़ अस्थिकलश
तैर रहा है."
स्थितियों पर अच्छा व्यंग्य है.
Kya baat hai!
ReplyDeleteअलगाव. मृत्यु और भयावह सच्चाई मिलकर तनाव का माहौल बना देते हैं.
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