अफजाल अहमद सय्यद की एक और कविता...
हमें भूल जाना चाहिए : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
उस ईंट को भूल जाना चाहिए
जिसके नीचे हमारे घर की चाभी है
जो एक ख़्वाब में टूट गया
हमें भूल जाना चाहिए
उस बोसे को
जो मछली के कांटे की तरह हमारे गले में फंस गया
और नहीं निकलता
उस ज़र्द रंग को भूल जाना चाहिए
जो सूरजमुखी से अलहदा कर दिया गया
जब हम अपनी दोपहर का बयान कर रहे थे
हमें भूल जाना चाहिए
उस आदमी को
जो अपने फ़ाक़े पर
लोहे की चादरें बिछाता है
उस लड़की को भूल जाना चाहिए
जो वक़्त को
दवाओं की शीशियों में बंद करती है
हमें भूल जाना चाहिए
उस मलवे से
जिसका नाम दिल है
किसी को ज़िंदा निकाला जा सकता है
हमें कुछ लफ़्जों को बिल्कुल भूल जाना चाहिए
मसलन
बनीनौए इंसान
:: :: ::
ज़र्द : पीला
बनीनौए इंसान : मानव जाति
अफजाल अहमद की कवितायेँ दिल को दहला देती हैं कि और हमें देर तक एक सदमें की हालत में रखती हैं !
ReplyDeleteबेहतरीन,सहज और स्वाभाविक अनुवाद ! बधाई मनोज जी !!
निशब्द...बस यही कर गई यह कविता...|
ReplyDeleteबधाई...|
bahut sundar, nishabd
ReplyDeleteअफजल अहमद जी ने सरल भाषा में सहजता से कितनी गहरी मानवीय संवेदनाएं व्यक्त की हैं की वे अंतर्मन को छूती ही नहीं अपितु वहीँ घर कर जाती हैं।।।।।मनोज जी अच्छी कविता हमसे सांझा करने के लिए धन्यवाद ...मीनाक्षी जिजीविषा
ReplyDeleteअफजल अहमद जी ने सरल भाषा में सहजता से कितनी गहरी मानवीय संवेदनाएं व्यक्त की हैं की वे अंतर्मन को छूती ही नहीं अपितु वहीँ घर कर जाती हैं।।।।।मनोज जी अच्छी कविता हमसे सांझा करने के लिए धन्यवाद ...मीनाक्षी जिजीविषा
ReplyDeleteहमें भूल जाना चाहिए उस बोसे को
ReplyDeleteजो मछली के कांटे की तरह
फंस गया हैं गले में
और नहीं निकलता
फिर याद रखने को क्या बचा रहेगा .वाह भई वाह !
कविता में जिन चीजों को भूल जाने की बात की है दरअसल वे ही याद रखने लायक हैं.
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