थॉमस बर्न्हार्ड (1931 -- 1989) की एक लघुकथा...
पागलपन : थॉमस बर्न्हार्ड
(अनुवाद : मनोज पटेल)
लेंड शहर में एक डाकिये को इसलिए मुअत्तल कर दिया गया क्योंकि वह न तो ऐसी चिट्ठियों को बांटता था जिनमें उसे लगता था कि बुरी ख़बरें होंगी और न ही अपने हाथ लगने वाले किसी शोक-संदेश पत्र को ही, बल्कि ऎसी सारी चिट्ठियों को वह अपने घर ला कर जला दिया करता था. आखिरकार डाकखाने ने उसे शेरेन्बर्ग के पागलखाने में भर्ती करा दिया जहां वह डाकिये की वर्दी पहने घूमा करता है और पागलखाने की एक दीवाल पर खासतौर से लगवाई गई एक डाक-पेटी में वहां के प्रशासन द्वारा डाली गई उन चिट्ठियों को बांटा करता है जो उसके साथी मरीजों के नाम आई होती हैं. ख़बरों के मुताबिक़ डाकिये ने शेरेन्बर्ग के उस पागलखाने में आते ही अपनी वर्दी की मांग की कि कहीं वह पागल न हो जाए.
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सटीक टिप्पणी है माहौल पर।
ReplyDeleteवाह. मंटो की कहानी 'टोबा टेकसिंह' याद दिला दी-
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