मार्क स्ट्रैंड की एक और कविता...
ओस्लो में हवा नहीं है : मार्क स्ट्रैंड
(अनुवाद : मनोज पटेल)
"क्या बताऊँ यार," सैलानी ने युवती से कहा, "ज़िंदगी मेरे प्रति मेहरबान नहीं रही है; मैं अलास्का के प्रसिद्ध ठिगने कुत्ते को देखने के लिए उत्तर की तरफ गया मगर एक भी नहीं देख पाया; मैं लंबी पूंछ वाले नीले-हरे अफ्रीकी गैंडे को देखने के लिए दक्षिण की ओर गया और फिर से नाकामयाब रहा. दुखी होकर मैंने खुद को महान कविताओं के उदास वैभव के प्रति समर्पित कर दिया और यहाँ आ पहुंचा, तेज हवाओं वाले इस शहर की सबसे तूफानी जगह पर." "ओस्लो चले जाओ," युवती ने कहा, "ओस्लो में हवा नहीं है."
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बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteअनु
Wonderful poem..........worth translation.
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteoslo chale jao ,bahan haba nahi hai
ReplyDeleteachchi kavita hai
oslo chale jaao baha hava nahi hai ,achchi kavita hai
ReplyDeleteअदभुत...!!
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