माइकल आगस्तीन के कुछ हाइकू...
माइकल आगस्तीन के कुछ हाइकू
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हाइकू पुलिस. मैं जो हूँ
सो हूँ, कहता है हाइकू.
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बेस्टसेलिंग लेखक
टहल रहा है जंगल में.
रोको उसे--पेड़ों को बचाओ!
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बहुत सुबह जागकर
ईर्ष्यापूर्वक मैं देखता हूँ
खर्राटे मार रही अपनी तकिया को
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हमेशा के लिए मिट चुके हैं
दोनों टावर -- मगर गिद्ध
अब भी मंडराते हैं उनके इर्द-गिर्द.
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डालियों में
अटक जाने की वजह से, सूरज को
चमकना पड़ा सारी रात.
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सोफे पर अलसाया बैठा
वह कहता है अपने जूतों से
थोड़ा टहल आने के लिए.
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वाह ! वाह ! काश जूते ही टहल आते और दुबले लोग हो जाते..
ReplyDeleteहा हा हा हा | बेहद उम्दा हाइकु | मेरे भी टहलने का समय हो गया चलता हूँ वरना कहीं जूते खुद ही न निकल जाएँ और दुबले हो जाएँ | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
कवि बहुत ही दृष्टि सम्पन्न हैं . दोबारा पढ़ा , आस पास उजाला सा लगा . आभार .
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाएं-- बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteमारक और गागर में सागर भरे हाइकू.
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