Thursday, March 14, 2013

माइकल आगस्तीन के कुछ हाइकू


माइकल आगस्तीन के कुछ हाइकू... 

माइकल आगस्तीन के कुछ हाइकू  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम हाइकू नहीं हो! कहती है 
हाइकू पुलिस. मैं जो हूँ 
सो हूँ, कहता है हाइकू. 
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बेस्टसेलिंग लेखक 
टहल रहा है जंगल में. 
रोको उसे--पेड़ों को बचाओ! 
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बहुत सुबह जागकर 
ईर्ष्यापूर्वक मैं देखता हूँ 
खर्राटे मार रही अपनी तकिया को 
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हमेशा के लिए मिट चुके हैं 
दोनों टावर -- मगर गिद्ध 
अब भी मंडराते हैं उनके इर्द-गिर्द. 
:: :: :: 

डालियों में 
अटक जाने की वजह से, सूरज को 
चमकना पड़ा सारी रात. 
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सोफे पर अलसाया बैठा 
वह कहता है अपने जूतों से 
थोड़ा टहल आने के लिए. 
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5 comments:

  1. वाह ! वाह ! काश जूते ही टहल आते और दुबले लोग हो जाते..

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  2. हा हा हा हा | बेहद उम्दा हाइकु | मेरे भी टहलने का समय हो गया चलता हूँ वरना कहीं जूते खुद ही न निकल जाएँ और दुबले हो जाएँ | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. कवि बहुत ही दृष्टि सम्पन्न हैं . दोबारा पढ़ा , आस पास उजाला सा लगा . आभार .

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  4. बहुत ही सुंदर रचनाएं-- बहुत बहुत आभार.

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  5. मारक और गागर में सागर भरे हाइकू.

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