Monday, March 18, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : शायर का दिल


अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...    

शायर का दिल : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

जहां मोहब्बत की हुदूद पर ख़त्म लिख दिया गया 
वहाँ बंद दरवाज़े के ऊपर 
मैंने पूरा चाँद देखकर 
नए चाँद के देखने पर मांगी जाने वाली दुआ मांग ली 

तुमने मेरे दिल को ज़ंजीर से बाँध दिया 
और मैंने भौंकना शुरू कर दिया 

अगर तुम चाहो 
तो इतनी नाज़ुक ज़ंजीर से 
एक टूटी हुई शाख 
एक निशान लगे दरख़्त से बाँध सकती हो 
जिसको ठेकेदार 
इस मौसम में काट ले जाएगा 

ज़ंजीर से बंधे हुए दिल ने 
तुम्हारे क़दमों को चाटना शुरू कर दिया 
और तुमने कहा 
यह कुत्ता पागल हो गया है 
जैसा कि एक कहानी में 
एक अंधे आदमी ने अपनी बीनाई पाने के बाद 
अपने कुत्ते को दुत्कार दिया था 

अगर तुम चाहो 
तो मैं तुम्हें एक नज्म सुनाऊँ 
जो मैंने उस वक़्त पढ़ी थी 
जब मैं बातें किया करता था 
और नहीं जानता था 
मेरे दांत पीसने की आवाज़ 
कितने दरवाज़े पार कर सकती है 

शायर ने कहा था : 
"मेरा दिल एक शिकारी कुत्ता है 
जिसे मैं तुम्हारे कपड़ों की बू सुंघा रहा हूँ 
तुम मुझसे बेवफ़ाई करके 
एक और मर्द के साथ भाग गई हो 
मेरा दिल उस मर्द के तनासुल के आज़ा झिंझोड़ डालेगा 
और तुम्हें 
तुम्हारी पिंडलियों में दांत गाड़कर 
मेरे पास घसीट लाएगा"  

शायर का दिल शिकारी कुत्ता होता है 
और ज़ंजीर में बंधे हुए आदमी का दिल 
ज़ंजीर में बंधा हुआ कुत्ता 

यह कुत्ता पागल हो गया है 
इसने अपनी ज़ंजीर निगल ली है 
और शायद तुम्हारी उंगलियाँ भी 
जो लोहे की तरह संगदिल हैं 
और उस ज़ंजीर की तरह बेवफ़ा  
जिससे कोई भी कुत्ता बाँधा जा सकता है 

तुमने जानवरों का इलाज करने वाले को बुलाया 
और उसकी आँखों में मुस्कराकर 
मेरी क़िस्मत का फैसला कर दिया 

शायद मोहब्बत की हुदूद पर ख़त्म 
तुमने नहीं 
किसी और ने लिखा था 
जिसका तर्ज़े तहरीर 
उस राज़ की तरह 
मेरे दिल में महफ़ूज है 
जिस पर मैंने पहली बार 
भौंकना सीखा था  
                :: :: :: 

हुदूद  :  सीमाएँ, हद का बहुवचन  
बीनाई  :  आँखों की रोशनी, दृष्टि 
तनासुल के आज़ा  :  संतानोत्पत्ति के अंग 
तर्ज़े तहरीर  :  लेखन शैली, लिखने का ढंग  
महफ़ूज  :  सुरक्षित 

2 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण कविता,आभार.

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