Wednesday, October 3, 2012

बिली कालिंस : खामोशी

अमेरिकी कवि बिली कालिंस की एक और कविता...   


खामोशी : बिली कालिंस 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

एक अचानक उग आई खामोशी होती है भीड़ की 
उस खिलाड़ी पर जो बेहरकत खड़ा हो मैदान में, 
और खामोशी होती है आर्किड की. 

फर्श से टकराने के पहले 
खामोशी गिरते हुए गुलदान की, 
और बेल्ट की खामोशी, जब वह पड़ न रही हो बच्चे पर. 

निःशब्दता कप और उसमें भरे हुए पानी की, 
चंद्रमा की खामोशी 
और सूरज की भभक से परे दिन की शान्ति. 

खामोशी जब मैं तुम्हें लगाए होता हूँ अपनी छाती से, 
हमारे ऊपर के रोशनदान की खामोशी, 
और खामोशी जब तुम उठती हो और चली जाती हो दूर. 

और खामोशी इस सुबह की 
जिसे भंग कर दिया है मैंने अपनी कलम से, 
खामोशी जो जमा होती रही है रात भर 

घर के अँधेरे में होती हुई बर्फबारी की मानिंद -- 
मेरे कोई शब्द लिखने के पहले की खामोशी 
व और भी घटिया खामोशी इस वक़्त की. 
                 :: :: :: 

8 comments:

  1. तूफ़ान से पहले और बाद की ख़ामोशी को समय की घटिया ख़ामोशी तक ले जाने वाली गहरी कविता.

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  2. ''...और खामोशी इस सुबह की
    जिसे भंग कर दिया है मैंने अपनी कलम से
    खामोशी, जो जमा होती रही है रात भर
    .........
    मेरे कोई शब्द लिखने के पहले की खामोशी
    और...
    और भी खामोशी इस घटिया वक्त की....!''

    एक तरफ असहायता, अलग और अकेले पड़ जाने का, दूसरी ओर शब्दों का ऐसा आसरा.....इतना अद्भुत शरण्य, तब जब हर तरफ हिंस्र और पतित हो चुकी सत्ताओं का साम्राज्य हो...!
    मनोज , आप ऐसा काम कर रहे हैं, जिसे ज़माना याद करेगा.
    आपके अनुवाद...और आपका चयन हमारी आत्मा में चुपचाप दाखिल होता रहता है. (सोचा था, कुछ भी टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि 'हिन्दी' का जो पर्यावरण है, उसमें किसी के सृजनात्मक उत्कर्ष की की गयी निर्व्याज प्रशंसा भी अपमानित होने के लिए अभिशप्त है....लेकिन फिर लगा ..कि शायद यह हमें ताकत भी तो देता है ..रघुवीर सहाय की एक कविता थी, ठीक से याद तो नहीं, पर कुछ इस तरह थी, ''हम हारे हैं इस बार भी, हर बार की तरह, लेकिन यह हारना भी हमें ताकत देता है ...)
    Congratulations....

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  3. वाह.......
    और दिलो दिमाग में फ़ैली खामोशी.....जो भीतर ही भीतर कोलाहल सी है.

    अनु

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  4. बहुतही सुंदर अप्रतिम.

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  5. very good.

    ભારત કી સરલ આસાન લિપિ મેં હિન્દી લિખને કી કોશિશ કરો……………….ક્ષૈતિજ લાઇનોં કો અલવિદા !…..યદિ આપ અંગ્રેજી મેં હિન્દી લિખ સકતે હો તો ક્યોં નહીં ગુજરાતી મેં?ગુજરાતી લિપિ વો લિપિ હૈં જિસમેં હિંદી આસાની સે ક્ષૈતિજ લાઇનોં કે બિના લિખી જાતી હૈં! વો હિંદી કા સરલ રૂપ હૈં ઔર લિખ ને મૈં આસન હૈં !

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  6. शब्द तो लिखने के बाद भी खामोश ही रहते है...हमी कुछ ना कुछ बोलते रहते है...जब हम खामोश भी होते है...

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  7. उदय प्रकाशजी ने जो लिखा है, उसके साथ मेरे भी दस्तखत.....

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