1954 में जन्मे ईयावगेनी बनीमोविच मास्को में रहते हैं. कविताएँ लिखने के अतिरिक्त वे एक स्तंभकार और राजनीतिक भी हैं तथा मास्को सिटी डूमा के सदस्य रह चुके हैं. यहाँ प्रस्तुत है उनकी एक कविता...
बहाना और सफाई : ईयावगेनी बनीमोविच
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं कोई कवि नहीं हूँ,
जीते-जागते कवि जैसी कोई चीज सच में होती है क्या
मैं एक स्कूल टीचर हूँ
गणित पढ़ाता हूँ,
कम्प्यूटर साइंस,
नैतिक शास्त्र और गृहस्थ जीवन का मनोविज्ञान भी
इस सबसे बढ़कर रोज लौट आता हूँ घर
अपनी बीवी के पास
जैसा कि रूमानी झुकाव वाले एक पायलट ने कभी कहा था,
प्रेम तब नहीं होता जब दो लोग एक-दूसरे को देखते रहें
बल्कि तब होता है जब वे दोनों देखा करें एक ही दिशा में
यह हमारे बारे में ही है
दस बरसों से मैं और मेरी बीवी
एक ही दिशा में देखते रहे हैं
टेलीविजन की तरफ
आठ सालों से हमारा बेटा भी उसी तरफ देख रहा है
मैं कोई कवि नहीं हूँ,
ऊपर बताए गए
चौबीसों घंटे के पक्के सबूत में कोई सुराख तो नहीं है न
गलतफहमियों और संयोगों का मेल,
जो यदा-कदा पत्र-पत्रिकाओं में
मेरी कविताओं के प्रकाशन में फलित होता है,
मुझे अपना गुनाह क़ुबूल करने के लिए मजबूर करता है
मैं कविता तभी लिखता हूँ जब वह अपरिहार्य हो जाए
जब मैं निगरानी करता होता हूँ कक्षा की आंतरिक परीक्षाओं की
तमाम पब्लिक स्कूल सुधारों के बावजूद
कुछ विद्यार्थी अब भी करते हैं नक़ल
इसे रोकने के लिए
मुझे मजबूरन बैठना होता है गर्दन उचका कर
आँखें फैलाए और सतर्क
निर्निमेष निगाहें, फर्श के ठीक ऊपर किसी जगह पर टिकी हुईं
यह मुद्रा अनिवार्य रूप से
ले जाती है कविता रचने की ओर
जो कोई भी चाहे जांच सकता है इसे
मेरी कविताएँ छोटी होती हैं
क्योंकि 45 मिनट से अधिक की नहीं होतीं कक्षा की आंतरिक परीक्षाएं
मैं कोई कवि नहीं हूँ,
और शायद
इसीलिए दिलचस्प हूँ मैं
:: :: ::
व्लादिमिर मायकोवस्की की आत्मकथा 'आई माइसेल्फ़' में एक वाक्य आता है "मैं एक कवि हूँ और इसीलिए मैं दिलचस्प हूँ."
कवि दिलचस्प नहीं होते...कवितायें होती हैं दिलचस्प!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया......
अनु
दिलचस्प कविता...
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबनीमोविच जब कहेते है की नक़ल करते हुए छात्र के लिए उन्हें चोकन्ना रहना पड़ता है और इन के परिचय में आप[मनोज भाई] बताते हो की वे राजनितिक है तब यह 'पब्लिक स्कुल- आंतरिक परीक्षाएं-' इत्यादि शब्द एक अलग अर्थविश्व उजागर करते है.बहुत शुक्रिया मनोज भाई .
ReplyDeleteप्रभावी,
ReplyDeleteशुभकामना,
जारी रहें !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज)
दिलचस्प है वाक़ई !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteविद्यालय में अलग अलग विषय होता होता है .हर विषय का अलग प्रश्न औए उत्तर होता है परन्तु वास्तविक जीवन के प्रश्न में इतिहास गणित मनोविज्ञान सब मिला रहता है.इसे हल करना ही वास्तविक शिक्षा है.
ReplyDeleteNew post: अहँकार
वाकई एक दिलचस्प कविता ……अनुवाद और प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
ReplyDelete