जर्मन कवि माइकल आगस्तीन (1953) रेडियो रेमेन के लिए एक पाक्षिक कविता कार्यक्रम की मेजबानी और साप्ताहिक रेडियो डाक्यूमेंट्री का सम्पादन करते हैं. उनकी कविताएँ तथा रेखाचित्र दुनिया भर की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और कई कविता संग्रहों के साथ-साथ उनकी कई आडियो बुक्स भी प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी किताबों के अनुवाद अर्जेंटीना, पोलैंड, आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड, इटली और ग्रीस में प्रकाशित हो चुके हैं. वे खुद भी कविताओं तथा नाटकों के अनुवाद में सक्रिय रहे हैं तथा कई अंतर्राष्ट्रीय कविता महोत्सवों में कविता पाठ कर चुके हैं. 1984 में आयोवा विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम के सदस्य रहे आगस्तीन को कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है. फिलहाल वे रेमेन में अपनी पत्नी सुजाता भट्ट और पुत्री जेनी के साथ रहते हैं. उनकी कवयित्री पत्नी सुजाता भट्ट भारतीय मूल की हैं और उनकी कविताओं, लघु कथाओं तथा लघु नाटिकाओं का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने ही किया है जो 'Mickle makes Muckle' के नाम से प्रकाशित है.
आगस्तीन की कविता, 'कविताओं के बारे में कुछ सवाल' से कुछ अंश आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है इनकी दूसरी क़िस्त. आपसे यह बताते हुए भी बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि कवि आगस्तीन ने इस नाचीज को अपनी कविताओं, लघुकथाओं तथा लघु नाटिकाओं के अनुवाद की अनुमति प्रदान कर दी है.
कविताओं के बारे में कुछ सवाल : माइकल आगस्तीन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कौन से शब्द
आज तक
नजर नहीं आए हैं
किसी कविता में?
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अगर
कोई कविता-संग्रह
रखा जाए तराजू पर
और वह वजन बताए 300 ग्राम,
तो यह वजन
कागज़ का होगा
या कविताओं का?
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क्या उड़ जाती हैं कविताएँ
अगर खुली छोड़ दी जाए किताब
लंबे समय तक?
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क्या कविताएँ इन्कार कर सकती हैं
गवाही देने से?
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कौन सी चीज याद रखती हैं
यादगार कविताएँ?
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क्या डूबते हुए लोगों को
फेंक कर पकड़ानी चाहिए कविताएँ?
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तैनात किया जाना चाहिए
कविताओं को?
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सच ही कविताओं को न तोला जा सकता है न किसी और काम में लाया जा सकता है..सिवाय इसके कि उन्हें लिख-पढ़ के दिल को सुकून दे सकें..
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