अमेरिकी कवयित्री डोरोथी पार्कर (1893 -- 1967) की एक कविता...
सामाजिक टिप्पणी : डोरोथी पार्कर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मोहतरमा, यदि आप मिलें किसी से
बहुत चौकस हों जिसके तौर-तरीके,
जो बड़बड़ाता रहता हो कि उसकी बीवी
ध्रुवतारा है उसकी ज़िंदगी की,
जो भरोसा दिलाता रहे आपको
कि उसने कभी नहीं की बेवफाई,
कि किसी और से कभी नहीं किया प्यार...
मोहतरमा, भाग लीजिए उसके पास से!
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वाह .....ताज़रुबे की बात ! जोरदार कविता ! शुक्रिया प्रस्तुति के लिए !
ReplyDeleteमनोज जी, आप इतने अच्छे रचनाकारों से मिलवा देते हैं, भावनाएं कभी आंसू बनकर , कभी बेचारगी, कभी रोमांचित करती हुई, किन किन रास्तों से होकर निकाल ले जाती हैं। बस आपके ब्लॉग पर आकर लगता है, अब आज का नेट का सफ़र मुकम्मल हुआ। ऐसे ही हम जैसे औसत बुदधि पाठकों को दिमागी खुराक उपलब्ध कराते रहिये।
ReplyDeleteमनोज जी, आप इतने अच्छे रचनाकारों से मिलवा देते हैं, भावनाएं कभी आंसू बनकर , कभी बेचारगी, कभी रोमांचित करती हुई, किन किन रास्तों से होकर निकाल ले जाती हैं। बस आपके ब्लॉग पर आकर लगता है, अब आज का नेट का सफ़र मुकम्मल हुआ। ऐसे ही हम जैसे औसत बुदधि पाठकों को दिमागी खुराक उपलब्ध कराते रहिये।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...कविता
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