येहूदा हालेवी (1075 -- 1141) की एक कविता...
शराब के बगैर प्याले : येहूदा हालेवी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मामूली चीज होते हैं शराब के बगैर प्याले
जैसे जमीन पर फेंका हुआ कोई बर्तन,
पर रस से छलछलाते, चमकते हैं वे
जैसे शरीर और आत्मा.
:: :: ::
शरीर और आत्मा बनाम शराब और प्याले.
ReplyDeleteवाह.....गागर में सागर....!!
ReplyDeleteशराब से ही प्यालों की सार्थकता है !
ReplyDelete