अमेरिकी लेखक ई. बी. व्हाईट (1899 -- 1985) ने कहा है, "एक बार आप मकड़ों को देखना शुरू कर दें तो आपके पास कुछ और करने के लिए समय नहीं रह जाता". यहाँ प्रस्तुत कविता उन्होंने 1929 में अपनी शादी के कुछ हफ़्तों बाद टोरंटो के किंग एडवर्ड्स होटल से अपनी पत्नी को भेजी थी.
प्राकृतिक इतिहास : ई बी व्हाईट
(अनुवाद : मनोज पटेल)
टहनी से गिरता हुआ मकड़ा
एक डोर खोलता जाता है अपनी हिकमत की;
एक महीन, जाना-समझा औजार
चढ़ाई में इस्तेमाल करने के लिए.
और अधर से होती
शांत उतराई की इस पूरी यात्रा में
सच्चे दिल से वह बना डालता है एक सीढ़ी
सफ़र की शुरूआत की जगह तक.
इसी तरह मैं निकला बाहर, जैसे निकलते हैं मकड़े
एक सच निरखता हुआ मकड़े के जाले में
तुमसे जोड़े रहा एक रेशमी धागा
अपने लौटने के लिए.
:: :: ::
यह कविता आदमी की नियति कहती है.मकड़े की तरह हम उम्मीद के रेशमी धागों में लिपते रहते हैं.
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर ,
ReplyDeleteतुम से जोड़े रहा एक रेशमी धागा
अपने लौटने के लिए !
बधाई मनोज जी !
बढ़िया है
ReplyDeleteGood one
ReplyDelete