Saturday, January 5, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : मैं कुछ न कुछ बच जाता था

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   


मैं कुछ न कुछ बच जाता था : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

मुझे फ़ाक़ों से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे तौहीन से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे नाइंसाफ़ी से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे मौत से तक़्सीम किया गया 
मैं पूरा पूरा तक़्सीम हो गया 
               :: :: ::
तक़्सीम करना : भाग देना, विभाजित करना 

6 comments:

  1. वाह...
    लाजवाब...

    अनु

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  2. आखिरकार मौत ही पूरी तरह तकसीम कर पाई ...बहुत अच्छी अर्थपूर्ण कविता ,सुन्दर अनुवाद ! बधाई मनोज जी !

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  3. मौत पूरी तरह खत्म कर देती है.भूख बेइज्जती और नाइंसाफी के बावजूद कुछ बेहतरी की उम्मीद बनी रहती है.

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