अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
मैं कुछ न कुछ बच जाता था : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल)
मुझे फ़ाक़ों से तक़्सीम किया गया
मैं कुछ न कुछ बच गया
मुझे तौहीन से तक़्सीम किया गया
मैं कुछ न कुछ बच गया
मुझे नाइंसाफ़ी से तक़्सीम किया गया
मैं कुछ न कुछ बच गया
मुझे मौत से तक़्सीम किया गया
मैं पूरा पूरा तक़्सीम हो गया
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तक़्सीम करना : भाग देना, विभाजित करना
वाह...
ReplyDeleteलाजवाब...
अनु
आखिरकार मौत ही पूरी तरह तकसीम कर पाई ...बहुत अच्छी अर्थपूर्ण कविता ,सुन्दर अनुवाद ! बधाई मनोज जी !
ReplyDeleteमौत पूरी तरह खत्म कर देती है.भूख बेइज्जती और नाइंसाफी के बावजूद कुछ बेहतरी की उम्मीद बनी रहती है.
ReplyDeleteखूबसूरत-
ReplyDeleteMukammal Maut...
ReplyDeletewaah
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