Tuesday, February 12, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : हमें भूल जाना चाहिए


अफजाल अहमद सय्यद की एक और कविता...   

हमें भूल जाना चाहिए : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

उस ईंट को भूल जाना चाहिए 
जिसके नीचे हमारे घर की चाभी है 
जो एक ख़्वाब में टूट गया 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस बोसे को 
जो मछली के कांटे की तरह हमारे गले में फंस गया 
और नहीं निकलता 

उस ज़र्द रंग को भूल जाना चाहिए 
जो सूरजमुखी से अलहदा कर दिया गया 
जब हम अपनी दोपहर का बयान कर रहे थे 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस आदमी को 
जो अपने फ़ाक़े पर 
लोहे की चादरें बिछाता है 

उस लड़की को भूल जाना चाहिए 
जो वक़्त को 
दवाओं की शीशियों में बंद करती है 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस मलवे से 
जिसका नाम दिल है 
किसी को ज़िंदा निकाला जा सकता है 

हमें कुछ लफ़्जों को बिल्कुल भूल जाना चाहिए 
मसलन 
बनीनौए इंसान 
            :: :: :: 

ज़र्द  :  पीला 
बनीनौए इंसान  :  मानव जाति  

7 comments:

  1. अफजाल अहमद की कवितायेँ दिल को दहला देती हैं कि और हमें देर तक एक सदमें की हालत में रखती हैं !

    बेहतरीन,सहज और स्वाभाविक अनुवाद ! बधाई मनोज जी !!

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  2. निशब्द...बस यही कर गई यह कविता...|
    बधाई...|

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  3. अफजल अहमद जी ने सरल भाषा में सहजता से कितनी गहरी मानवीय संवेदनाएं व्यक्त की हैं की वे अंतर्मन को छूती ही नहीं अपितु वहीँ घर कर जाती हैं।।।।।मनोज जी अच्छी कविता हमसे सांझा करने के लिए धन्यवाद ...मीनाक्षी जिजीविषा

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  4. अफजल अहमद जी ने सरल भाषा में सहजता से कितनी गहरी मानवीय संवेदनाएं व्यक्त की हैं की वे अंतर्मन को छूती ही नहीं अपितु वहीँ घर कर जाती हैं।।।।।मनोज जी अच्छी कविता हमसे सांझा करने के लिए धन्यवाद ...मीनाक्षी जिजीविषा

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  5. हमें भूल जाना चाहिए उस बोसे को
    जो मछली के कांटे की तरह
    फंस गया हैं गले में
    और नहीं निकलता

    फिर याद रखने को क्या बचा रहेगा .वाह भई वाह !

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  6. कविता में जिन चीजों को भूल जाने की बात की है दरअसल वे ही याद रखने लायक हैं.

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