Sunday, July 28, 2013

अभिषेक गोस्वामी की कहानी : मॉर्निंग वॉक

जयपुर में जन्मे अभिषेक गोस्वामी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की थिएटर इन एजुकेशन कं में अध्यापन और आज़ाद थिएटर निर्देशक एवं सलाहकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं. उनका अपना थिएटर समूह ब्रीदिंग स्पेस चर्चा में रहा है और वे भारत के अलावा ओमान तथा चीन में भी रंगमंचीय प्रदर्शन कर चुके हैं. फोटोग्राफी और कविता का भी शौक. सम्प्रति अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में रंगमंच विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत. कहीं भी प्रकाशित होने वाली यह पहली कहानी...  













मॉर्निंग वाक : अभिषेक गोस्वामी 
र्मा जी को टी वी देखने की बहुत बुरी लत लग चुकी थी। घर मेंअधिकतर समय रिमोट उनके कब्जे में ही रहता। एक दिन सुबह जब वे पायजामा पहन कर 'मॉर्निंग वॉकके लिए घर से निकलकर शहर के सेंट्रल पार्क में पहुंचे और जेब में हाथ डाला तो पाया कि आज टी वी का रिमोट उनकी जेब में ही रह गया है।
आज उनका पार्क के जॉगिंग ट्रेक पर चक्कर लगाने का इरादा नहीं था। अतः वे अपने बाएँ हाथ की बैसाखी को वहीं बेंच के सहारे टिकादायें हाथ मे रिमोट लेकर बैठ गए और हाथ से आदतन 'चैनलबदलने जैसी हरकतें करने लगे। उन्हें उनके सामने से जॉगिंग ट्रेक पर ताज़ा हवा में दौड़ लगाते बच्चेपुरुषमहिलाएं एवं बालिकाएँ कभी खबर लगते तो कभी सीरियलकभी धार्मिक चैनल तो कभी छुप छुप कर देखे जाने वाले चैनल
शर्मा जी सेंट्रल पार्क में हरे रंग की जिस बेंच पर आकर बैठे थे वह एक ऐसी जगह रखी थीजहां से न केवल पार्क के जॉगिंग ट्रेक की गोलाई को देखा जा सकता था बल्कि, उस ट्रेक पर दौड़ते उछलते हुये लोगों को कम से कम एक बार उस बेंच के ठीक सामने करीब से होकर गुजरते हुये भी देखा जा सकता था।
शर्मा जी की उम्र का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगले माह वे सरकारी सेवा से निवृत्त होने वाले थे। देश, समाज, राजनीतिखेल, धर्म कर्म एवं इतिहास आदि के टी वी प्रसारणों में शर्मा जी की रुचि बहुत कम थी। पर विज्ञापन वे खूब मन लगाकर देखतेविशेषकर सौन्दर्य प्रसाधनों के विज्ञापन।
देर रातजब न्यूज़ चैनल वालों के पास खबरें खतम हो जातीलगभग उसी दौरान अन्य चैनल थोड़े थोड़े अंतराल में शक्तिवर्धक 'पावरप्राश' का विज्ञापन प्रसारित करते है। यह शर्मा जी का पसंदीदा विज्ञापन था जिसे देखने का शगल वे बेनागा, प्रतिबद्धता के साथ पूरा करने की कोशिश करते।
मगर चैनल वाले किसी के सगे नहीं होते। उन्हें अपने उपभोक्ता की जरूरतों से क्या सरोकारवे तो उन्हीं कंपनियों के विज्ञापन प्रसारित करते हैं जो तुलनात्मक रूप से अधिक मुनाफा करवा रही हो।
इसी वजह से पावरप्राश के विज्ञापन की तलाश में शर्मा जी को कई रात तो चैनल चैनल भटकते हुये स्टील के बर्तनों का विज्ञापन भी कई कई बार देखना पड़ता। लिहाजा इस प्रक्रिया में उन्हें देर रात तक जागना पड़ता इसलिए वे सुबह जल्दी उठ नहीं पाते और जब उठते तो मॉर्निंग वॉक पर जाने का वक्त निकल चुका होता ।
गनीमत है, और भला हो स्टार मूवीस का कि उस रात शर्मा जी को ठीक समय पर पावरप्राश के विज्ञापन का समुचित विकल्प मिल गया। वे सभ्य समय पर सो गए और सुबह सभ्य समय पर उठकर मॉर्निंग वॉक के लिए सेंट्रल पार्क में आ गए और पार्क की हरी बेंच पर बैठ कर खुली और ताज़ी हवा में सांस लेने का लुत्फ उठाने लगे। उनके दायें हाथ में रिमोट था जो गलती से उनके साथ यहाँ तक चला आया था।
इधर पार्क में हरी बेंच पर बैठे शर्मा जी की बेचैन उँगलियाँ आदतन रिमोट से चैनल बदलने जैसी हरकत कर रही थी और उधरजॉगिंग ट्रेक पर लोग एक के बाद एक चक्कर लगा रहे थे। अपने सामने जॉगिंग ट्रेक पर चक्कर लगाते हुये लोगों का बदलना शर्मा जी को चैनल बदलने जैसा अनुभव दे रहा था।  पर अभी तक उन्हें अपने मन माफिक चैनल नहीं मिल पाया था। जहां वे कुछ देर ठहरकर पावरप्राश के विज्ञापन जैसा आनंद ले सकें।
कुछ देर की जद्दोजहद के बाद उनके रिमोट वाले दायें हाथ की उँगलियों की हरकत अचानक थम गयी और रिमोट कब हाथ से फिसला शर्मा जी को पता नहीं।
दरअसल, उनके ठीक सामने, जॉगिंग ट्रेक पर, एक खूबसूरत लड़की आकर रुकी थी।
उम्र लगभग 20 वर्ष। कानों में ईयर फोन जिसका तार कहीं ट्रेक पैंट की जेब के भीतर जाकर खत्म हो रहा था।
ब्रांडेड जॉगिंग शूज और सफ़ेद रंग की पट्टियों वाला गुलाबी रंग का टाइट होज़री ट्रेक सूट ज़ाहिर कर रहा था कि वह लड़की अपनी शरीरिक लोचशीलता के प्रति शायद अपनी किशोरावस्था से ही सजग रही है। उसके माथे का पसीना बता रहा था कि उसने इस विशाल जॉगिंग ट्रेक के कम से कम दो या तीन चक्कर लगा लिए हैं। और अब थोड़ा सांस लेने के लिए रुकी है।
शर्मा जी ने अपनी आँखों के कैमरे को पहले लड़की के ठीक पीछे वाले बरगद पर फोकस करते हुये सामने देखा और धीरे धीरे पैन डाउन करते हुये लड़की के पैरों की तरफ ले गएक्षण भर वहाँ रुके, फिर धीरे धीरे आँखों के कैमरे को टिल्ट अप करते हुये लड़की के चेहरे पर ले गए और लंबे समय के लिए  टिका दिया।
लड़की की यह उपस्थिति उनके लिए अविश्वसनीय थी। पहले पहल तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ पर लड़की के चेहरे पर जो तिल था उसे क्लोज़ अप करके देखने पर ख्याल पुख्ता हो पाया कि यह वही लड़की है जिसे उन्होने दो दिन पहले, देर रात, किसी चैनल पर पावरप्राश के नए विज्ञापन में देखा था।
उन्हें अच्छी तरह याद आया कि उन्होने उस वक्त न्यूज़ चैनल पर बलात्कार के खिलाफ इंडिया गेट पर कैंडल मार्च वाली खबर के अति दोहराव से बोर होकर चैनल बदला था और पावरप्राश के नए विज्ञापन में इसी लड़की को देखकर रिमोट अपने बिस्तर पर फेंक दिया था।
इस बीच उस लड़की ने अपनी ट्रेक पेंट में रखे बड़े से मोबाइल को निकालकर संगीत का ट्रेक बदला और रस्सी कूदने लगी। शर्मा जी भी अब इस लड़की के पावरप्राश वाली लड़की होने के पक्ष में तमाम प्रमाण जुटाने के बाद अपने चश्मे के मोटे शीशों को अपने सफ़ेद कुर्ते के कोने से साफ करके लड़की की उछल कूद को देखने में तल्लीनता से जुट गए थे।
शर्मा जी की गणना के अनुसार लड़की लगभग पाँच सौ बार रस्सी के बीच से उछली कूदी थी। शर्मा जी के लिए दर्शक के तौर पर यह सारा उपक्रम ठीक वैसा ही रहा था जैसे लान टैनिस के मैदान में बैठे दर्शकों को अपनी आँखों को इधर से उधर आती जाती गेंद पर टिकाये रखने के लिए करने होते हैं।
गतिमान वस्तु को लगातार देखने से शर्मा जी को चक्कर आने लगते थे। ऐसा ही उन्हें अब भी महसूस होने लगा था।
लड़की उछल कूद करने के बाद अपने माथे के पसीने को पोंछ ही रही थी कि उसका फोन बजा। जेब से फोन बिना निकाले ही उसने ईयर फोन के स्पीकर को मुंह के करीब लाकर जवाब में कहा-
ओह माइ गॉड।
इट्स रिएलि सेवेन थर्टी?
सोर्री मम्मा।
एक्चुअल्ली आई टुक वन राउंड एक्सट्रा टूड़े। जस्ट कमिंग बैक।
बा बाय।
फोन काटकर लड़की ने ईयर फोन को कान से निकाला और मोबाइल जेब से निकालकर, ईयर फोन के तारों को उसके चारों तरफ लपेटकर वापस जेब में रख लिया। यह उसके पार्क से जाने का पल था।
जैसे ही लड़की पार्क के मुख्य दरवाजे की तरफ चलने लगी पीछे से एक आवाज़ आई –बेटी ए बबली
लड़की ने पीछे मुड़कर देखा तो शर्मा जी अपने बाएँ हाथ में बैसाखी लिए पार्क की उस हरी बेंच से उठकर चलने की नाकाम कोशिश करते हुये प्रतीत हो रहे थे। उनकी सम्पूर्ण उपस्थिति लाचार सी दिख रही थी। लड़की ने उन्हें हिंदीभाषी भाँपते हुये कहा-
कहिए अंकल, मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ?
शर्मा जी की डूबती नैया को जैसे सहारा मिलालहराती सी आवाज़ में बोले-
बेटा बबली’ लगता है ब्लड प्रैशर लो हो रहा है। चक्कर से आ रहे हैं मुझे ज़रा सहारा देकर मेन गेट तक छोड़ दोगी? वहाँ से मैं रिक्शा पकड़ लूँगा।
शर्मा जी की गुहार काम कर गयी थी। लड़की नेशारीरिक रूप से अस्वस्थ, बहुत सारे लोगों को पार्क में आते जाते देखा थाइसलिए, उसे शर्मा जी की पीड़ा पर यकीन हो गया। स्वभाव से वह मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थी, विशेषकर बुज़ुर्गों के लिए। उसने आगे बढ़कर शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई थाम ली और कहा-
आइये, धीरे धीरे गेट की तरफ चलते हैं।‘ और वे दोनों धीरे धीरे जॉगिंग ट्रेक से होते हुये पार्क के मुख्य द्वार की तरफ बढ्ने लगे।
नगरीय विकास प्राधिकरण अपने नगर नियोजन में पार्क का प्रावधान तो रखते हैं किन्तु समुचित रखरखाव की व्यवस्था न कर पाने से आमजन के लिए काफी अव्यवस्थाओं और असुविधाओं को जन्म देते हैं। शहर की मुख्य सड़कों की भांति इस पार्क के जॉगिंग ट्रेक में भी पिछली बारिश के बाद काफी सारे बड़े बड़े गड्ढे हो गए थे। जिस पर प्रशासन की नज़र नहीं पड़ी थी।
यह प्रशासन की ही अनदेखी का नतीजा था कि शर्मा जी की बैसाखी, जिसे उन्होने अपने बाएँ हाथ में ढीला सा पकड़ रखा था वह ऐसे ही किसी एक गड्ढे में अटक गयी और वे गिरते गिरते बचे। भला हो शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई पर उस लड़की के बाएँ हाथ की मजबूत पकड़ का वरना शायद शर्मा जी ज़मीन पर चित्त पड़े होते।
पार्क के मुख्य द्वार की राह में घटी इस दुर्घटना के लघु प्रारूप ने शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई पर पर लड़की के बाएँ हाथ की हथेली से बनी पकड़ को और मजबूत कर दिया था। जिससे शर्मा जी का हौसला बढ़ा। वे इस वक्त ठीक वैसी ही ऊर्जा और ताकत महसूस कर रहे थे। जैसा कि पावरप्राश के विज्ञापन में पावरप्राश का सेवन करने के बाद मिली ऊर्जा और ताकत के बारे में उसमें भाग लेने वाले (राष्ट्रीय नाट्य/अभिनय संस्थानों से अभिनय में विशेषज्ञता हासिल कर चुके) स्त्री पुरुष बता रहे होते हैं।
पार्क का मुख्य द्वार अभी भी दूर था। शर्मा जी ने लड़की को गिरने से बचाने के लिए धन्यवाद कहने के बाद जब मुख्य द्वार की ओर जाने वाले रास्ते की तरफ देखा, तो उन्हें आगे एक गड्ढा दिखाई दिया जो अपेक्षाकृत उस गड्ढे से ज़्यादा बड़ा था। जिसमें वे गिरते गिरते बचे थे।
उस बड़े गड्ढे के पास पहुँचते ही इस दफा शर्मा जी ने जान बूझ कर अपनी बैसाखी को गड्ढे में डाला और गिरने का अभिनय करते हुये पहले लड़की के हाथ की पकड़ को छुड़ाया और झूठ मूट अपने आप को संभालते संभालते अपने दोनों हाथों से लड़की को गुलाबी ट्रेक सूट में टी शर्ट और ट्रेक पेंट के बीच रिक्त रह गए स्थान यानि कि उसकी कमर से कस कर पकड़ लिया।
पकड़ की जगह शायद जकड़ शब्द ज़्यादा उपयुक्त हो इस क्रिया के लिए।
इस जकड़ के अर्थ को लड़की ने तुरंत समझ लिया और प्रतिक्रिया में ज़ोर से शर्मा जी के दोनों हाथों को लगभग धक्का देते हुये हटाया, आधा कदम पीछे हटी, और अपने दायें हाथ के उल्टे हिस्से का एक वजनदार तमाचा शर्मा जी के गाल पर जड़ दिया।
शर्मा जी झन्ना गए। उनका मोटे शीशे वाला चश्मा नीचे गिर गया था। उन्हें अपनी बैसाखी का इतिहास याद आ गया।
लड़की बहुत गुस्से में थी। पार्क में आते जाते लोगों को सुनाई न दे और शर्मा जी की बुज़ुर्गीयत की इज्ज़त बनी रहे इसलिए दाँत और अपने हाथों की मुट्ठियाँ भींचकर तीखे शब्दों में बोली-
यू ओल्डमेन
बुड्ढे’ ‘बास्टर्ड
अगर मेरी बाप की उम्र का न होता तो मालूम है क्या हश्र करती?
जानता है, मैं कौन हूँ ? विशाखा गुप्ता, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर की बेटी और शहर की रेपुटेड मॉडल।
इतना कहकर वह लड़की अपनी काली लंबी कार की तरफ बढ़ गयीतेज़ी से कार का दरवाजा खोला, झटके से बंद किया, गाड़ी स्टार्ट की और वायुयान की गति से वहाँ से चली गयी।
शर्मा जी का अस्तित्व हिल गया था।
बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभालालड़की के वहाँ से जाने के लगभग दस मिनट बाद ज़मीन पर पड़े हुये चश्मे पर उनकी नज़र पड़ीउठाकर उसे नियत स्थान पर लगाया, अपने बाएँ हाथ से बैसाखी का सहारा लेकर खड़े हुये। आस पास देखा वहाँ कोई रिक्शे वाला नहीं था अतः पैदल ही घर की तरफ चल पड़े।
पार्क से घर के पैदल रास्ते में शर्मा जी ने पूरे रास्ते आस पास सर उठाकर कुछ भी नहीं देखा। मानो अभी चंद मिनटों पहले जो कुछ उनके साथ घटा वह अखबार में मुख पृष्ठ की मुख्य खबर बनकर छप गयी हो, जिसे सब लोगों ने पढ़ लिया हो और वे सब उन्हीं की तरफ देख कर थू थू कर रहे हैं।
किसी तरह घर पहुंचे तो देखा घर का दरवाजा बंद था। जब जब शर्मा जी मॉर्निंग वॉक के लिए निकलते थे तो उनके जाने के बादपीछे सेयह दरवाजा सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक रूप से बंद कर लिया जाता था।
घर के बंद दरवाजे के भीतर से मंदिर की घंटी बजने की आवाज़ आ रही थी। यह पुष्पा यानि कि उनकी पत्नी का ईश्वर की आराधना का समय था और इस समय वे घर के भीतर एक कोने में रखे छोटे से लकड़ी के मंदिर के पास आँखें बंद कर आसान पर बैठी मंत्र जाप कर रही होती थी।
शर्मा जी ने दो दफा दरवाजा खटखटाया लेकिन शायद अंदर किसी को खटखटाहट सुनाई नहीं दी थी। इस पर शर्मा जी ने एक बार फिर से दरवाजे को पाँच छह बार ज़ोर ज़ोर से खटखटाया।
कुछ देर इंतज़ार के बाद भीतर से जब दरवाजे की चटकनी खोलने की आवाज़ आई तो शर्मा जी अपनी नज़रों को झुकाये दरवाजे पर ही रखे जूट के पायदान से कीचड़ में लिथड़ गई अपनी चप्पलों को साफ करने में लग गए। पार्क वाली लड़की के तमाचे का झन्नाटा वे अभी भी महसूस कर रहे थे।
दरवाजा खुला तो शर्मा जी ने देखा कि उसी पायदान के सामने वाले छोर पर दो पैर हैंजिन्होने नए ब्रांडेड केनवास शूज पहने हुये हैं। ये जूते और आधे मोज़े बिलकुल वैसे ही हैं जैसे पार्क वाली लड़की ने पहन रखे थे। वे सामने खड़ी उस लड़की को नीचे से ऊपर तक देखने से रोक नहीं पाये। वही उम्र, बिलकुल वैसा ही सफ़ेद धारियों वाला गुलाबी रंग का ट्रेक सूट। वैसा ही बदन। कानों में बिलकुल उसी तरह लगाया हुआ सफ़ेद ईयर फोन।
लड़की ने शर्मा जी को देखकर कानों के भीतर चल रहे संगीत से ज़्यादा आवाज़ बढ़ाकर कहा 
क्या आप भी? रिमोट कहाँ रखकर चले जाते हो? सोचा था आज से टी वी पर फ़िटनेस मंत्रा देखूँगी हर सुबह। और उसके साथ साथ योगा करूंगी।
रिमोट शब्द सुनते ही शर्मा जी को वह सब फिर से याद आने लगाजिसे पार्क से घर तक के सफर में भूलने की कोशिश करते आ रहे थे। उन्हें यह भी याद आया कि टी वी का रिमोट तो वे सेंट्रल पार्क में ही भूल आए हैं। बौखलाहट में आकर कहने लगे –
....... वो वो वो ...... पार्क में.......
कान में ईयर फोन लगे होने के कारणलड़की को शर्मा जी की बात कुछ भी नहीं सुनाई पड़ रही थी। वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाये थे,कि उस लड़की ने शर्मा जी को परेशान सा देखकर ऊंचे स्वर में कहा-
अब कोई बात नहीं। कल से कर लूँगी योगा, ‘फ़िटनेस मंत्रा के साथ। आप मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले बता तो दिया कीजिये कि रिमोट घर में कहाँ रखा है। ...... बाय। अभी मैं जा रही हूँ सेंट्रल पार्क। ताकि तेज़ धूप निकलने से पहले घर वापस आ सकूँ।
इतना कहकर लड़की दौड़ने को थी कि उसकी जूतों के लेस खुल गए और वो झुककर हड़बड़ी में उन्हें बांधने लगी।
शर्मा जी चुपचाप यह सब देख रहे थे। और इस बार उन्होने गौर किया कि ब्रांडेड केनवास शूज, आधे सफ़ेद मोज़ों और ईयर फोन के अलावा सफ़ेद धारियों वाले गुलाबी ट्रेक सूट पहने इस लड़की की टी शर्ट और ट्रेक पेंट के बीच का रिक्त स्थान भी ठीक वैसा ही है जैसा उस पार्क वाली लड़की का।
लड़की जूतों की लेस बांध कर जल्दबाज़ी में भागती हुयी गली की तरफ चली गयी।
यह उनकी मँझली बेटी थी। जिसे वे प्यार से बबली’ कहा करते थे।  
शर्मा जी गली से होकर पार्क की तरफ मॉर्निंग वॉक के लिए भागती हुयी अपनी बेटी को दूर तक देखते रहे। वे घर के दरवाजे को पकड़ कर जूट के पायदान पर अपनी कीचड़ से सनी चप्पल पहन कर खड़े थे। और अब घर के अंदर मंदिर की घंटी के स्वर और तेज़ होने लगे थे। 
                                      :: :: ::   
(संपर्क : abhishek.goswami@azimpremjifoundation.org) 

8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [29.07.2013]
    चर्चामंच 1321 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. कुछ बूढ़ो में गरिमा के बजाय ऐसा ही काइयांपन आ समाता है -आजकल और भी अधिक !

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  4. बहुत अच्‍छी कहानी है, अभिषेक को इस पहली कहानी पर हार्दिक बधाई। उनके पास जो नाटक के अनुभव हैं, वे इस कहानी को महत्‍वपूर्ण बनाते हैं और एक नया रंग देते हैं।

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  5. अच्‍छी कहानी है..अभिषेक भाई..बधाई। पर कहानी यदि लड़की जूतों के लेस बांधते हुए...पर समाप्‍त‍ होती तो ज्‍यादा प्रभावशाली होती।

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    1. राजेश भाई, आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं..... दुविधा में कहानी थोड़ी आगे तक चली गयी...... :)

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  6. kahani kehne ka dhang theek thaak..par vishya puraana.pehli kahani mei koi nai baat saamne aati toh maza aata..

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