महमूद दरवेश के गद्य 'एक मामूली दुःख का रोजनामचा' के बाद आज दरवेश की यह महत्वपूर्ण कविता. इस कविता में आयी पंक्ति 'तुमने घोड़े को अकेला क्यों छोड़ दिया ?', महमूद दरवेश के एक कविता संग्रह का नाम भी है.
नागफनी की शाश्वतता : महमूद दरवेश
- आप मुझे कहाँ ले चल रहे हैं, अब्बू ?
- जहां हवा बह रही है, मेरे बेटे.
और उस मैदान से विदा लेते हुए, जहां अक्का की पुरानी दीवारों पर निगाह रखने के लिए
बोनापार्ट की फौजों ने एक पहाड़ी खड़ी कर दी थी, -
पिता अपने बेटे से कहता है : डरो मत.
गोलियों की तड़तड़ाहट से मत डरो !
ज़िंदा बचे रहने के लिए जमीन से चिपक जाओ !
हमें कुछ नहीं होगा, और हम उत्तर की तरफ किसी पहाड़ी की चोटी पर पहुँच जाएंगे,
और तभी लौटेंगे जब फ़ौजी, दूर देश, अपने परिवारों के पास वापस चले जाएंगे.
- और वहां, हमारे घर में कौन रहेगा, अब्बू ?
- वह ऐसे ही पड़ा रहेगा, मेरे बेटे.
उन्होंने घर की चाभियों को टटोला मानो वे अपने अंगों को टटोल रहे हों,
और कुछ चैन मिला उन्हें. और उन्होंने कांटेदार झाड़ी की बाड़ पार करते हुए कहा :
याद रखना मेरे बेटे, यहाँ नागफनी की कांटेदार झाड़ियों पर, अंग्रेजों ने दो रातों तक
सूली पर चढ़ाए रखा था तुम्हारे अब्बू को, लेकिन उन्होंने कुछ भी कबूल नहीं किया था.
तुम बड़े हो जाओगे मेरे बेटे, और बताना उन्हें, जो राइफलों की विरासत के हकदार बनें,
उनके लोहे पर हमारे खून की दास्ताँ.
- तुमने घोड़े को अकेला क्यों छोड़ दिया ?
- घर को सोहबत देने के लिए, मेरे बेटे,
क्योंकि घर मर जाते हैं, अगर उनके बाशिंदे कहीं और चले जाएं.
शाश्वतता दूर से ही अपने फाटक खोल देती है
रात की सवारियों के लिए. जंगल से भेड़िए गुर्राते हैं
दहशतजदा चन्द्रमा पर, और एक पिता अपने बेटे से कहता है :
हिम्मती बनो अपने बाबा की तरह !
और बलूत से ढंकी इस आखिरी पहाड़ी पर मेरे साथ चढो.
ध्यान रखना, मेरे बेटे : यहाँ अपने घोड़े से गिर पड़ा था आखिरी योद्धा
इसलिए हिम्मत से रहना मेरे साथ, जब तक हम घर वापस न पहुँच जाएं.
- हम घर कब लौटेंगे, अब्बू ?
- कल, शायद दो दिनों में.
यह एक बेठिकाना कल था, उनके पीछे सर्दी की लम्बी रातों में
हवा को कुतरता हुआ.
उनके घर के पत्थरों से अपना किला बना लिया जोशुआ की सेना ने.
जबकि वे दोनों, काना को जाने वाली सड़क पर खड़े हुए, उखड़ी हुई साँसों के साथ :
यहाँ से कभी गुजरा था हमारा खुदा.
यहाँ उसने पानी को बदल दिया था शराब में.
यहाँ उसने बहुत से उपदेश दिए थे प्रेम के बारे में.
मेरे बेटे, याद रखना आने वाले कल को.
याद रखना जिहादियों के किलों को
जिन्हें निगल लेगी अप्रैल की घास
फौजियों के चले जाने के बाद.
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Mahmoud Darwish Hindi Translation
अच्छी कविता का सुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteये कविता तो नहीं है...मुझे कहानी ही लगती है...ये...
ReplyDeleteadbhut kavita.
ReplyDeletebahut achcha anuvad hai,kavita ka chayan bhi achcha hai.shukriya manoj ji
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteSunder kwita ka behtareen anuwad...
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