Monday, March 28, 2011

यासूनारी कावाबाता की दो "अंजुलि भर कहानियां"


( यासूनारी कावाबाता का जन्म 1899 में जापान के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक परिवार में हुआ था. चार वर्ष की उम्र में वह अनाथ हो गए जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने किया. पंद्रह वर्ष की उम्र तक वे अपने सभी नजदीकी रिश्तेदार खो चुके थे. 1924 में स्नातक होने के पूर्व ही विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी रचनाओं ने लोगों का ध्यान खींचा. कावाबाता ने स्वीकार किया है कि उनके लेखन पर अल्पायु में ही अनाथ हो जाने और दूसरे विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा असर रहा है. अपने उपन्यास Snow Country के लिए मशहूर कावाबाता को 1968 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला. यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले जापानी लेखक बने. 1972 में इस महान लेखक ने आत्महत्या कर लिया. उनकी एक अन्य कहानी छाता का मेरा अनुवाद आप नई बात पर पढ़ चुके हैं. )


तस्वीर 

हालांकि ऐसा कहना बहुत खराब है, लेकिन यकीनन अपनी बदसूरती की वजह से ही वह एक कवि बन गया था. इस कवि ने मुझे यह बताया :

"मुझे तस्वीरों से नफरत है और शायद ही कभी मैनें तस्वीर उतरवाने के बारे में सोचा हो. कोई चार-पांच साल पहले एक लड़की के साथ अपनी मंगनी के समय ऐसा मौक़ा आया था. वह मुझे बहुत प्रिय थी ; मुझे भरोसा नहीं कि ऎसी कोई औरत फिर से मेरी ज़िंदगी में आए. अब तो वे तस्वीरें मेरे लिए एक खूबसूरत याद बन कर रह गई हैं. 

"खैर, पिछले साल एक पत्रिका मेरी तस्वीर छापना चाहती थी. मैनें अपनी मंगेतर और उसकी बहन के साथ की अपनी एक तस्वीर में से अपनी तस्वीर काटकर उस पत्रिका को भेज दिया. अभी हाल में किसी अखबार का एक पत्रकार मेरी तस्वीर मांगने आया. मैंने एक पल को सोचा और आखिरकार अपनी मंगेतर के साथ की अपनी तस्वीर को आधी काटकर उसे दे दिया. मैनें उससे हर हालत में तस्वीर लौटाने को कहा लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं फिर कभी उसे वापस पाऊंगा. बहरहाल यह कोई मुद्दा नहीं है. 

"मैं भले ही कह रहा हूँ कि यह कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन फिर भी जब मैनें इस आधी तस्वीर को, जिसमें मेरी मंगेतर अकेली रह गई है, देखा तो चौंक गया. क्या यह वही लड़की थी ? मैं तुम्हें उसके बारे में बताता हूँ.    

"इस तस्वीर में दिख रही लड़की खूबसूरत और हंसमुख थी. उस वक़्त वह सत्रह की थी और मुहब्बत में गिरफ्तार भी. लेकिन जब मैनें अपने हाथ में पकड़ी इस तस्वीर को देखा तो वही लड़की मुझे खुद से कटी-कटी सी नजर आई. मैनें महसूस किया कि वह कितनी नीरस थी. और इस क्षण के पहले तक यही तस्वीर मुझे अब तक देखी सभी तस्वीरों में सबसे अच्छी लगा करती थी...... मानो एक पल में मैं एक लम्बे ख्वाब से जाग उठा. मेरा बेशकीमती खजाना लुट गया. और इसलिए..... "

कवि अब और धीमी आवाज़ में बोल रहा था. 

"अगर वह अखबार में मेरी तस्वीर देखेगी तो यकीनन उसे भी ऐसा ही लगेगा. उसे शर्म आएगी कि उसने मेरे जैसे किसी शख्स से कैसे एक पल के लिए भी प्यार किया. 

"बहरहाल यही है कुल किस्सा. 

"मगर फिर यह भी सोचता हूँ कि अगर अखबार साथ-साथ हम दोनों की तस्वीर छापता, जैसी कि वह थी, तो क्या यह सोचकर कि मैं कितना भला आदमी था वह दौड़ती हुई मेरे पास वापस चली आती ?" 


समुद्रतटीय कस्बा 

यह समुद्रतटीय कस्बा भी बड़ा दिलचस्प है.

इज्जतदार गृहणियां और लड़कियाँ सराय में आती हैं और जब तक कोई मेहमान वहां ठहरता है उनमें से एक औरत रात भर उसके साथ रहती है. सुबह उठने से लेकर दोपहर के खाने और घूमने तक वह उसके साथ ही रहती है. वे उसी तरह रहते हैं गोया कोई जोड़ा हनीमून पर आया हो. 

फिर भी यदि वह यह कहे कि वह उसे गरम पानी के सोते वाली पास की दूसरी सराय में ले चलना चाहता है, औरत अपना सर इन्कार में हिलाते हुए सोचने लगेगी. बहरहाल अगर वह यह भी कहने पर आ गया कि वह इसी कस्बे में एक मकान किराए पर ले लेगा, वह, यदि वह एक जवान औरत हुई, खुशी-खुशी भरसक यही कहेगी कि, "मैं तुम्हारी बीवी बनने के लिए तैयार हूँ अगरचे यह ज्यादा वक़्त के लिए न हो. यह साल या छः महीने लंबा खिंचने वाला न हो." 

उस सुबह वह आदमी नाव से अपनी रवानगी की तैयारी में जल्दी-जल्दी अपना सामान बाँध रहा था. अचानक इस काम में उसकी मदद कर रही औरत ने कहा, "क्या तुम मेरे लिए एक ख़त नहीं लिख दोगे ?"

"क्या ? अब ?"

"हाँ अब मैं तुम्हारी बीवी नहीं रही इसलिए इसमें कोई हर्ज नहीं. तुम जितने दिन यहाँ रहे मैं तुम्हारे साथ-साथ रही. नहीं क्या ? मैनें कुछ गलत नहीं किया. मगर अब तो मैं तुम्हारी बीवी नहीं रही."

"ऎसी बात है-ऎसी बात है क्या ?" उसने उसके लिए किसी मर्द के नाम ख़त लिखा. जाहिर तौर पर वह उसी की तरह कोई और आदमी था जिसने इस औरत के साथ सराय में आधा महीना बिताया था. 

"क्या तुम मुझे भी ख़त नहीं भेजोगी ? ऎसी ही किसी सुबह जब कोई और आदमी इसी तरह नाव पकड़ने जा रहा होगा ? जब तुम उसकी भी बीवी नहीं रह जाओगी ?"

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Yasunari Kawabata story in Hindi

7 comments:

  1. मगर फिर भी सोचता हूँ की अगर अख़बार एक साथ हम दोनों की तस्वीर छापता...जेसे की वह थी तो क्या यहाँ सोच कर की में कितना भला आदमी था ..वह दोड़ती हुई मेंरे पास चली आती ??वाह जीवन में कही न कही तो कुछ बचा ही रहता है अपनी अच्छाईयां/बुराईयों के पिटारों का खजाना ...अपने किये पर या हसरतों का बाकि रहना भी कही कही तो शायद ??????दोनों अच्छी अभिव्यक्ति ...शुक्रिया जी !!!!!nirmal paneri

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  2. आपकी खोज केलिए बधाई दी जाए या अनुवाद के लिए शुक्रिया कहा जाए ..
    बस यही कि मनोज भाई मिशन चालू रहे !

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  3. पेशे की मजबूरियों और दिल की चाहतों के बीच उलझे समीकरणों
    को बड़ी खूबसूरती से उकेरती हैं ये कहानियाँ ! धन्यवाद मनोज जी !

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  4. सचमुच दूसरी कहानी का अंत बड़ा मर्मस्पर्शी है। धन्यवाद मनोज भाई। इन कहानियों को उपलब्ध कराने के लिए

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  5. बहुत ही अच्छी कहानियां |

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  6. बेहद खूबसूरत कहानियां...

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