Saturday, March 26, 2011

निज़ार कब्बानी : बल्कीस के जूड़े के लिए बारह गुलाब

पढ़ते-पढ़ते के दोस्तों के लिए आज निजार कब्बानी की यह कविता. इस सन्दर्भ के साथ कि निजार कब्बानी की दूसरी पत्नी का नाम बल्कीस अल रवी था, जिनसे उनकी मुलाक़ात बग़दाद के एक कवि सम्मलेन में हुई थी. बल्कीस की असामयिक मृत्यु बेरुत में एक आतंकवादी हमले में हुई थी. अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद निजार कब्बानी ने अपना दुःख इस कविता के माध्यम से व्यक्त किया था. उन्होंने फिर शादी नहीं की. 
















बल्कीस के जूड़े के लिए बारह गुलाब 

 1. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
और वह जानती थी कि मारा जाऊंगा मैं भी 
सच साबित हुईं दोनों भविष्यवाणियाँ 
किसी तितली की तरह दब गई वह 
अज्ञानता के युग के मलबे के नीचे 
और मैं दबोचा गया..... एक ऐसे समय के क्रूर पंजों में  
जो निगल जाता था कविताएँ 
स्त्रियों की आँखें 
और गुलाब आजादी के 

2. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
एक भद्दे समय में थी वह खूबसूरत 
शुद्ध थी वह एक दूषित समय में 
मतान्ध लोगों के समय में थी वह शरीफ 
एक दुर्लभ मोती सी थी वह 
बनावटी मोतियों के ढेर के बीच 
एक अनूठी स्त्री 
बनावटी स्त्रियों के झुण्ड में 

3. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
क्योंकि शफ्फाक थीं उसकी आँखें जवाहरात की दो नदियों की तरह 
और बग़दाद के मव्वल अलाप सी लम्बी थीं जुल्फें उसकी 
इस वतन का धीरज 
बर्दाश्त नहीं कर पाया हरियाली की सघनता 
नहीं सह पाया बल्कीस की आँखों में जुटे 
ताड़ के लाखों पेड़ों का नजारा 

4. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
क्योंकि इस प्रायद्वीप के घेरे से भी बड़ा था 
उसके स्वाभिमान का घेरा 
गंवारा नहीं था उसकी धरोहर को 
रहना इस पतनोन्मुख समय में 
उसका चमकीला स्वभाव नहीं देता था उसे इजाज़त 
रहने को अंधेरों में 

5. 
अपने स्वाभिमान की प्रबलता में 
उसे लगा कि बहुत छोटी है यह पृथ्वी उसके लिए 
तो उसने बांधा अपना सामान 
और चली गई दबे पाँव 
बिना बताए किसी को.......

6. 
यह डर नहीं था उसे कि उसका वतन मार डालेगा उसे 
वह तो डरती थी कि खुद को मार डालेगा वतन उसका

7. 
कविता से भरे एक बादल की तरह 
मेरी नोटबुक पर बरसाया उसने 
शराब....शहद..... और गौरैयों को 
बरसाए सुर्ख माणिक 
और मेरे जज्बातों पर छिड़के 
समुद्री सफ़र.... और परिंदे 
और चाँद चमेली के 
उसके जाने के बाद ही 
शुरूआत हुई प्यास के युग की 
ख़त्म हो आया युग पानी का 

8. 
हमेशा लगता था मुझे कि विदा हो रही है वह 
उसकी आँखों में हमेशा मौजूद होते थे जलयान 
   बने हुए रवाना होने के लिए 
उसकी बरौनियों पे दुबके हवाईजहाज  
तैयार रहा करते थे उड़ान भरने के वास्ते.
उसके हैंडबैग में - तभी से जबसे शादी की मैनें उससे -
एक पासपोर्ट हुआ करता था....... और टिकट एक हवाईजहाज का 
और वीजा ऐसे देशों का जहां कभी नहीं गई वह 
जब पूछा करता था उससे मैं :
कि क्यों अपने हैंडबैग में रखती हो ये कागजात सब ?
तो जवाब होता था उसका :
क्योंकि इन्द्रधनुष से तय है मुलाक़ात मेरी 

9. 
जब सौंपा उन्होंने उसका हैंडबैग मुझे 
जो मिला था उन्हें मलबे में से 
और देखा मैनें उसका पासपोर्ट 
टिकट हवाईजहाज का 
और प्रवेश वीजा 
जान गया कि बल्कीस अल रवी से नहीं 
शादी की थी मैनें 
एक इन्द्रधनुष से......

10. 
जब गुजर जाती है कोई खूबसूरत स्त्री 
पृथ्वी खो देती है संतुलन अपना 
सौ साल के मातम का एलान करता है चंद्रमा 
और बेरोजगार हो जाती है कविता 

11. 
बल्कीस अल-रवी
बल्कीस अल-रवी
बल्कीस अल-रवी
उसके नाम के इस आरोह-अवरोह को किया करता था मैं प्यार 
संभाले रखता था इसकी झंकार 
डरता था इससे जोड़ने में अपना नाम 
कि कहीं मटमैला न कर दूँ झील का पानी 
और बिगड़ न जाए तराने की लय-ताल कहीं 

12. 
इस स्त्री को नहीं बदा था रहना कुछ दिन और 
न ही वह चाहती ही थी कुछ दिन और रहना ज़िंदा 
सगी रही वह शमाओं और लालटेनों की 
और किसी कवितामय क्षण की तरह 
भक से उड़ जाना था उसे अंतिम पंक्ति से पहले.....

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Nizar Qabbani Poem for his wife  

35 comments:

  1. jabardast kavita.
    ap itna anuvad kaise kar lete hai. bahut ahsan hai apka.

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  2. manoj, behad sundar anuwad .. ise kai baar padha . baar-baar padha . anirvachniy sukh deti kavitaen ..

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  3. manoj, bahut sundar anuwad. kai baar padha. baar-baar padha. anirvachniy sukh deti rachanen!

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  4. Prem ka svachchh nirmal mahaktaa hua saundary...aaha ...aunadr anuvaad Manoj ...

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  5. सभी बहुत सार्थक है किस- किस के बारे में क्या- क्या कहूँ ...आपका आभार

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  6. निश्चित रूप से यह एक बड़ी कविता के अनुवाद का बड़ा काम है, सचमुच महत्वपूर्ण और यादगार।

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  7. सुन्दर ...अति सुन्दर . बधाई मनोजजी .

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  8. क्योंकी इन्द्रधनुष से मुलाकात तय है मेरी ...

    सुंदर कविता , भावपूर्ण अनुवाद .
    मनोज भाई आपको बधाई और शुभकामनाएं .

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  9. एक भद्दे समय में थी वह खूबसूरत
    शुद्ध थी वह एक दूषित समय में
    मतान्ध लोगों के समय में थी वह शरीफ ............
    कविताओ के लिए भी इस से बेहतर क्या कहें.....! मनोज जी ... इतनी बेहतरीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने के लिए शुक्रिया आपका ।

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  10. kayi kayi baar padhi...prem ki saarthak rachnayein...sundar anuvaad...hum tak pahuchaney ke liye shukriya!

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  11. kamal ki kavita hai Manoj ji...
    kaya kahun.... nishabd hun....
    kash ki ise maine likha hota...
    ...

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  12. अरसे बाद इतनी खूबसूरत प्रेम कविता पढ़ी,निस्संदेह सुन्दर अनुवाद की बदौलत...बहुत शुक्रिया मनोज जी शुभकामनाओं सहित...

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  13. बहुत ही बेहतरीन...

    शेषनाथ

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  14. निज़ार कब्बानी की ही किसी कविता में आई एक पंक्ति याद आ रही है - "प्यार मुझे छीलता है संतरे की तरह" - अपने प्रिय को उसके गुजर जाने के बाद इस तरह याद करना भी खुद को ’छीलना’ नहीं है तो क्या है..
    "उसके जाने के बाद ही
    शुरूआत हुई प्यास के युग की
    ख़त्म हो आया युग पानी का"
    -- साझा करने के लिये आभार.

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  15. बहुत ही मार्मिक भावानुभूतियां हैं

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  16. आह...........
    क्या कवितायेँ हैं ?
    बस कमाल ही कमाल........

    ......बिल्कीस -अल-रवी ,
    तुम्हें मार कर
    यह मुल्क भी मर गया
    तुमसे भी पहले ..........

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  17. bahut sundar kavitaon se do chaar karwane ke liye abhaar aap ka.bilkis mari nahi ji gayi hai in kavitaon mein.kya abhivyakti hai nijar ki.

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  18. वाह!प्रेम के गुलाब कितने खूबसूरत हैं! शुक्रिया मनोज जी!

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  19. सचमुच कमाल की कवितायें हैं, शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिये, शुक्रिया और बधाई !

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  20. बहुत बढ़िया मनोज जी

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  21. बहुत बड़ी विडम्बना है कि प्रेयसी पत्नी की मौत की कल्पना में कविता लिखने वाले की असमय मृत्यु हो गयी.दरअसल कविता में पत्नी की मौत के बहाने पतनोन्मुख देश की तरफ संकेत किया गया है जो औरतों की आज़ादी को बर्दाश्त नहीं करता है.

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  22. sabhi sundar... aapne nirantar anuvad karke kvita ki duniya ko smriddh kiya hai manoj ji .. abhaar.

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  23. कितनी बार इस कविता को हम पढ़ें ? .....दस बार, सौ बार, हज़ार बार या तब तक, जब तक यह वतन हमें या खुद को मार न डाले ......? यह कहने की हिम्मत दे मुझे मेरे औलिया कि ऐसी कविता मेरी भाषा में भी कभी मुमकिन हो.....!
    लेकिन मेरी भाषा में क्या कोई कवि और उस कवि का प्यार इतना असुरक्षित है?

    मै शेयर कर रहा हूँ , बिना इजाजत !

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  24. 27 टिप्‍पणियों के बाद क्‍या बचता है ,पर मुझे भी अद्भुत ही कहना है ।अद्भुत कविताएं हैं मनोज जी ।

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  25. manoj bhai alfaaz mayasser hoNge to likh sunga.

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  26. बेहद खूबसूरत कविता

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  27. भक् से उड़ जाना अंतिम पंक्ति के पहले ...!

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  28. बेहतरीन ! इससे जुडा कोई सन्दर्भ भी है क्या ? है तो वो भी साझा करें हमसे.

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  29. बेहद असरदार . एक बार फिर बधाई !क्या इससे जुडा कोई सन्दर्भ भी है, यदि है तो वो भी साझा करें हमसे .

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