महमूद दरवेश की कविताओं और गद्य के मेरे अनुवाद आप इस ब्लॉग के साथ-साथ, समालोचन पर भी पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता...
वह तुम्हें प्यार नहीं करती : महमूद दरवेश
तुम्हारे रूपक रोमांचित करते हैं उसे.
प्रिय कवि हो तुम उसके.
लेकिन बस इतना ही.
नदी की लयबद्ध उछालें,
रोमांच से भर देती हैं उसे.
इसलिए नदी बन जाओ उसे रोमांचित करने के लिए !
रोमांच से भर देता है उसे
तुम्हारे छंदों में
बिजली और उसकी गड़गड़ाहट का संयोग...
चू पड़ते हैं उसके वक्ष
एक अक्षर पर.
इसलिए पहला अक्षर बन जाओ वर्णमाला का
उसे उत्तेजित करने के लिए !
वह उत्तेजित हो उठती है चीजों की उन्नति से,
किसी भी चीज से रोशनी तक,
रोशनी से घंटियों की टिन-टिन तक,
घंटियों की टिन-टिन से एहसास तक.
इसलिए उसका कोई एहसास बन जाओ, उसे उत्तेजित करने के लिए.
वह उत्तेजित हो उठती है
अपनी रात और अपने वक्षों के बीच संघर्ष से.
(प्रिय, तुमने मुझे बहुत कष्ट दिए हैं.
ऐ नदी, उड़ेलती हुई मेरे कमरे के बाहर
अपनी उग्र कामुकता.
प्रिय, मैं मार डालूंगी तुम्हें,
अगर तुमने मुझे नहीं दिया लालसा का वरदान.)
एक फ़रिश्ते बनो,
उसे अपने रूपकों से प्रभावित करने के लिए नहीं,
बल्कि इसलिए कि वह तुम्हें क़त्ल कर सके
अपने स्त्रीत्व के प्रतिशोध में
और बच निकल सके तुम्हारे रूपकों के जाल से.
शायद वह तुम्हें प्रेम करने के लिए ही आयी है
क्योंकि तुमने उसे बिठा दिया ऊपर आसमान में,
जबकि तुम कोई और ही इंसान बन बैठे,
उसके आसमान में सबसे ऊंचा सिंहासन हथियाते हुए.
और वहां, नक्षत्रों में
चीजें सब गड़बड़ा गयीं,
मीन और कन्या राशियों के बीच.
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Mahmoud Darwish Poems in Hindi
thank you manoj patel .....
ReplyDeletehttp://rajneeshj.blogspot.com/
ReplyDeletebejod sir ji,
ReplyDeletewah !
ReplyDeleteadbhut prastuti! kavita ka anuvad aasan nhi hai aisa hme pdhaya gya tha. lekin aapke dwara anoodit in kavitaon ki sahjta se aisa lgta hai jaise hm apni bhasha kee rachna pdh rhe hon. aap kavita bhi likhte hain? maf kijiega ye islie poochha ki hme ye bhi btaya gya ki ek kvi hi kavita ka achha anuvad kar skta hai. aapke anuvad kary se hindi kavita samriddh ho rhi hai isme koi do rai nhi.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है और अनुवाद और भी सुन्दर !
ReplyDeleteएक फ़रिश्ते बनो,
ReplyDeleteउसे अपने रूपकों से प्रभावित करने के लिए नहीं,
बल्कि इसलिए कि वह तुम्हें क़त्ल कर सके
अपने स्त्रीत्व के प्रतिशोध में
और बच निकल सके तुम्हारे रूपकों के जाल से.
--- एक जबरदस्त कविता का शानदार अनुवाद. शुक्रिया और बधाई.
bahut achchi kavita hai .
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