वेरा पावलोवा की कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं. आज उनकी तीन और कविताएँ...
शादी के इकरारनामे का एक मसौदा
1
...अगर जरूरत पड़ी तो, किताबें इस तरह बांटी जाएंगी :
तुम्हें मिलेंगे विषम, और मैं पाऊंगी सम पन्ने ;
"किताबों" का मतलब उन किताबों से होगा जिन्हें हम
साथ-साथ
जोर से बोलकर पढ़ा करते थे,
जब एक चुम्बन के लिए बीच में रोक देते थे अपना यह पढ़ना,
और आधे घंटे बाद उठाते थे फिर से किताब...
* *
2
एक वजन मेरी पीठ पर,
एक रोशनी मेरी कोख में.
कुछ और ठहरो मेरे भीतर,
जमा लो जड़ें.
जब तुम सवार होते हो मेरे ऊपर,
विजयी और गर्वित महसूस करती हूँ,
जैसे बचाए ले चल रही होऊँ तुम्हें
चौतरफा घिरे एक शहर से बाहर.
* *
3
एक नाजुक सतह पर बहुत कोमलता से
लिखी हुई हैं मेरी सबसे सुन्दर पंक्तियाँ :
मेरी जीभ की नोक से तुम्हारे तालू पर,
तुम्हारी छाती पर बहुत छोटे अक्षरों में,
तुम्हारे पेट पर...
लेकिन, प्रिय, मैनें लिखा है उन्हें, बहुत
आहिस्ता-आहिस्ता !
क्या अपने होठों से मिटा सकती हूँ मैं
तुम्हारा विस्मयादिबोधक चिन्ह ?
* *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Vera Pavlova poems in Hindi translation
बहुत ख़ूब। फिर से अच्छे अनुवाद के लिए बधाई मनोज भाई।
ReplyDelete* बहुत बढ़िया। वेरा को पढ़ना सुखद है। आप[अके अनुवादों से राह मिलती है मुझे!
ReplyDelete* मेरे ब्लॉग 'कर्मनाशा' पर वेरा के अनुवाद हैं मेरे द्वारा किए।आप देखें उन्हें, यदि समय हो!
* और हाँ, 'कर्मनाशा' पर 'पढ़ते- पढ़ते' का लिंक भी है।
अच्छे अनुवाद के लिए बधाई मनोज जी...चयन भी अच्छा है...
ReplyDeleteये शक मुझे हमेशा बना रहेगा की मुझे कवितायेँ समझ आती हैं या नहीं :)
ReplyDeleteबहरहाल इन्हें पढ़ते समय मुझे नॉटिंग हिल फिल्म के दृश्य याद आये
कुछ लिखने वाले कागजो में कितने बेलौस होते है ......दूसरी वाली सबसे ज्यादा पसंद आई .....
ReplyDeleteek ek pankti me samvedansheel kalpana kisi titli ki tarah ud rahi hai! sachmuch bahut sunder anuvaad!
ReplyDeleteएक बार फ़िर...बहुत अच्छा लगा.....शुक्रिया
ReplyDeletebebak aur belaus sundar kavitaye!
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद और चयन के लिए बधाई .
ReplyDeleteआप हम सब के लिए विश्व कविता की जो खिड़कियाँ खोल दे रहे है उसके लिए कोई भी धन्यवाद और आभार कम ही पड़ेगा .
जिस गति से आप अनुवाद कर रहे हैं वह भी चमत्कारिक मालूम पड़ता है . आपके मिशन को सलाम .
सच..अभिभूत हूं आप के द्वारा अनुवादित कविताओं को पढ़ कर.
ReplyDeleteहर बार लगता है कि इस शब्द "अभिभूत’ के नये मायने महसूस होते हैं कविताओं को पढ़ कर..बधाई!!
मनोज भाई एक बात बताइए... कितना पढ़ते हैं आप गुरू...और अनुवाद भी एक-से-एक... विश्व कविता के भिन्न -भिन्न रंग। मैं तो आपका कायल हो गया.... आभार बहुत छोटा शब्द होगा... तो गले लगा लूं....
ReplyDeletenice
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