Wednesday, March 30, 2011

माइआ अंजालो : जब सोचती हूँ अपने बारे में


नस्ली भेद-भाव और उनसे संघर्ष, प्रसिद्द अश्वेत अमेरिकी कवियत्री माइआ अंजालो (Maya Angelou) के लेखन का प्रमुख विषय रहा है. उनका कहना है कि मैं एक अश्वेत स्त्री होने की वजह से ही लिखती हूँ, एक ऎसी अश्वेत स्त्री जो अपने लोगों की बातें गौर से सुनती है. 











जब सोचती हूँ अपने बारे में : माइआ अंजालो

जब सोचती हूँ अपने बारे में,
तो तकरीबन मर ही जाती हूँ हँसते-हँसते,
कितना बड़ा मजाक रही है मेरी ज़िंदगी,
जैसे ऐसा नृत्य जिसमें सिर्फ कदमताल ही की गयी, 
या कोई गाना जिसे बस बोल दिया गया हो सपाट, 
इतना अधिक हंसती हूँ मैं, कि साँसे रुकने लगती हैं मेरी 
जब सोचती हूँ अपने बारे में. 

साठ साल इन लोगों की दुनिया में, और 
लड़की कहकर पुकारती है मुझे वह बच्ची जिसके लिए काम करती हूँ मैं,  
और मैं " जी मैम - जी मैम " कहा करती हूँ नौकरी की खातिर.
इतनी स्वाभिमानी कि झुकना मुश्किल,
इतनी गरीब कि तोड़ना मुश्किल, 
हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं मेरे,
जब सोचती हूँ अपने बारे में.  

मेरे लोग मुझे अलग कर सकते हैं अपनी तरफ से, 
इतना अधिक हँसी मैं कि मर ही गयी तकरीबन,
झूठी लगती हैं कहानियां जो सुनाते हैं वे,
फल उगाए उन्होंने,
लेकिन खाए सिर्फ छिलके,
हंसती हूँ जब तक कि रोने न लगूँ मैं,
जब सोचती हूँ अपने लोगों के बारे में. 

(अनुवाद : मनोज पटेल) 
Maya Angelou Poems in Hindi Translation   

11 comments:

  1. ये हँसना दर्द मे जा कर ठहर जाता है, रोने में, माएला अन्जालो की इस कविता का दर्द भी आपने अपने अनुवाद से खूब उतारा है मनोज जी... उत्कृष्ट रचना

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  2. इतनी स्वाभिमानी कि झुकना मुश्किल,
    इतनी गरीब कि तोड़ना मुश्किल,

    हंसती हूँ जब तक कि रोने न लगूँ मैं,
    जब सोचती हूँ अपने लोगों के बारे में.

    बढ़िया अनुवाद और उत्कृष्ट चयन की बधाई .

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  3. बहुत दिनों बाद माइआ एंजलो की हिंदी में वापासी हुई. उनकी और भी कविताओं के ऐसे ही अच्छे अनुवाद का इंतजार रहेगा.
    एक सार्थक प्रस्तुती के लिये बधाई.

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  4. हंसी मै दर्द को चित्रित करती हुई एक अनूठी रचना ....कितना विचित्र होता है नारी का ह्रदय दर्द को सहेज कर भी मुस्कराती है

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  5. बहुत दिनों बाद माइआ एंजलो की हिंदी में वापासी हुई. उनकी और भी कविताओं के ऐसे ही अच्छे अनुवाद का इंतजार रहेगा.
    एक सार्थक प्रस्तुति के लिये बधाई.

    ReplyDelete
  6. जब सोचती हूँ अपने बारे में,
    तो तकरीबन मर ही जाती हूँ हँसते-हँसते,
    कितना बड़ा मजाक रही है मेरी ज़िंदगी,
    जैसे ऐसा नृत्य जिसमें सिर्फ कदमताल ही की गयी,
    या कोई गाना जिसे बस बोल दिया गया हो सपाट,
    ...इतना अधिक हंसती हूँ मैं, कि साँसे रुकने लगती हैं मेरी
    जब सोचती हूँ अपने बारे में.

    manoj , hamesha ki trah ye anuwad bhi sahaj aur marmik..

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  7. कितनी भयंकर और दर्दनाक है अन्जालो की हँसी ,
    मुझे डर लगता है इस हँसी से ! जो खुद पे हँस सकता है ,
    वो तो किसी पे भी हँस सकता है ,मुझ पे भी !

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  8. हँसाती हूँ जब तक की रोने ना लगूँ मैं
    जब सोचती हूँ अपने लोगो के बारे में !!
    जिंदगी की कढवी सचाइयों की खनकती आवाज हैं ये कविता

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  9. आपने "माइआ अंजालो" को हमारी संवेदनाओं के बहुत करीब ला दिया है. एक थरथराता और खरज भरा एहसास दे जाती हैं वे! इसका सेतु आपका जीवंत पुनर्सृजन है! अनुवाद कहते हुए मन मसोसना पडता है......

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  10. आभार....मनोज जी

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