Monday, February 28, 2011

येहूदा आमिखाई की दस कविताएँ



देर से शादी 
कुछ दूल्हों के साथ बैठा हूँ मैं एक वोटिंग रूम में 
मुझसे बहुत छोटे हैं वे. पुराना ज़माना रहा होता तो 
पैगम्बर करार दे दिया गया होता मुझे अब तक. लेकिन अभी इंतज़ार कर रहा हूँ चुपचाप 
अपनी महबूबा के नाम के साथ दर्ज कराने के लिए अपना नाम 
शादियों वाले मोटे से रजिस्टर में,
और उन सवालों का देने के लिए जवाब 
अब भी दे सकता हूँ जवाब जिनका. शब्दों से भर लिया है मैंने अपनी ज़िंदगी को, 
और कई मुल्कों की खुफिया सेवाओं का पेट भरने भर को 
आंकड़े जुटा लिए हैं अपनी देह में. 

भारी क़दमों से लिए चलता हूँ मैं हलके ख्याल 
जैसे अपनी जवानी में ढोया करता था नियति से भारी हुए ख्यालों को 
इतने हलके क़दमों से कि वे नाचने को हो आते थे, 
इतने उम्मीद से भरे भविष्य के चलते. 

मेरी ज़िंदगी के दबाव ने मेरी जन्मतिथि को नजदीक ला खड़ा किया है 
मेरी मौत की तारीख के, जैसे कि होता है इतिहास की किताबों में 
जहां कि इतिहास का दबाव साथ-साथ ले आता है 
किसी मृत बादशाह के नाम के आगे लिखी दो संख्याओं को 
बीच में महज एक हाइफन के साथ.

अपनी पूरी ताकत से मैं पकड़े हुए हूँ उस हाइफन को 
एक जीवनरेखा को जैसे, ज़िंदा हूँ इसी पर,
और मेरे होंठों पर वादा है अकेले न होने का,
दूल्हे की आवाज़ है और दुल्हन की आवाज़,
हँसते-चिल्लाते बच्चों की आवाज़ 
येरुशलम की गलियों 
और येहूदा के शहरों में.  
                    * *

जैसा कि यह था 
जैसा कि यह था.
जब रात को हमारा पिया हुआ पानी, बाद में 
बदल जाता था दुनिया भर की शराब में.

और दरवाजे, जिनके बारे में कभी नहीं याद आएगा मुझे ठीक-ठीक 
कि वे अन्दर को खुलते थे या बाहर को,
और तुम्हारे घर के प्रवेश द्वार पर लगी कौन सी बटन  
बत्ती की थी, घंटी की या फिर खामोशी की.  

ऐसा ही चाहते थे हम. चाहते थे क्या ?
हमारे तीन कमरों में,
खुली हुई खिडकी पर, 
तुमने भरोसा दिलाया था कि नहीं भड़केगी जंग. 

शादी की अंगूठी की बजाए,
मैंने एक घड़ी दी थी तुम्हें : गोल, ठीक समय बताने वाली,
सबसे पका हुआ फल
अनिद्रा और अनंत काल का.
                    * *



आमीन पत्थर 
मेरी मेज पर एक पत्थर है, कई पीढ़ीयों पहले नष्ट कर दिए गए एक यहूदी कब्रिस्तान से निकले पत्थर का एक तिकोना टुकड़ा, जिस पर "आमीन" लिखा हुआ है. एक बेहिसाब चाहत, एक अंतहीन लालसा से लबरेज, सैकड़ों की संख्या में दूसरे टुकड़े, इधर-उधर बेतरतीब बिखरे पड़े थे : अपने कुलनाम की तलाश में कोई नाम, मृत शख्स के जन्मस्थल की तलाश में मौत की तारीख, पिता के नाम का ठिकाना ढूंढता बेटे का नाम, शान्ति की चाह रखने वाली मृतात्मा से पुनर्मिलन की बाट जोहती पैदाइश की तारीख. और जब तक वे एक-दूसरे को पा नहीं जाते, उन्हें पूरी तरह से आराम नहीं मिलेगा. केवल यही एक पत्थर मेरी मेज पर शांतिपूर्वक पड़ा हुआ है, जो  कहता है "आमीन". लेकिन अब बड़ी प्रेममय दयालुता से इन टुकड़ों को एक उदास, शरीफ आदमी बटोर रहा है. वह उनपर से हर तरह के दाग-धब्बों को साफ़ करता है, एक एक कर उनकी तस्वीरें लेता है, बड़े हाल के फर्श पर उन्हें तरतीबवार रखता है, हर कब्र के पत्थर को फिर से सम्पूर्ण करता है, फिर से एक करता है : टुकड़ा दर टुकड़ा, जैसे किसी मृत व्यक्ति का पुनरुत्थान, कोई पच्चीकारी, कोई जिग-सा पहेली. जैसे कोई बच्चों का खेल.  
                    * *  

खुदा आते-जाते रहते हैं, दुआएं रहती हैं हमेशा 
गर्मियों की एक शाम, रास्ते में देखा मैनें 
एक ताला जड़े लकड़ी के दरवाजे पर 
कागज़ फैलाकर कुछ शब्द लिखते हुए एक स्त्री को,
उसने मोड़कर उसे भीतर सरका दिया, दरवाजे और चौखट के बीच से 
और चली गई. 

न तो उसका चेहरा देख पाया मैं, और न ही उस आदमी का 
जो शब्दों को नहीं, लिखावट को पढ़ेगा.

एक पत्थर पड़ा रहता है मेरी मेज पर "आमीन" लिखा हुआ, 
किसी कब्र के पत्थर का एक टुकड़ा, अवशेष एक यहूदी कब्रिस्तान का 
जो हजारों साल पहले नष्ट हो गया था, मेरी पैदाइश के शहर में. 

एक शब्द, "आमीन" गहरा खुदा हुआ पत्थर में,
सख्त और आखिरी आमीन, उस सबको जो था, और नहीं आएगा वापस,
एक मुलायम आमीन : गाते हुए किसी भजन की तरह,
आमीन, आमीन, इंशाल्लाह.

टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं कब्र के पत्थर, शब्द आते हैं-जाते हैं, शब्द भुला दिए जाते हैं, 
उन्हें उचारने वाले होंठ, मिल जाते हैं मिट्टी में,   
जुबानें भी ख़त्म हो जाती हैं लोगों की तरह, दूसरी जुबानें लेती हैं जन्म, 
बदल जाते हैं आसमान के देवता, आते-जाते रहते हैं खुदा, 
दुआएं रहती हैं हमेशा. 
                    * *  
देहवजह है प्रेम की 
देह, वजह है प्रेम की 
उसके बाद, इसे सुरक्षित रखने वाला एक किला ; 
उसके बाद, प्रेम की कैद है यह.
मगर जब ख़त्म हो जाती है देह, आज़ाद हो जाता है प्रेम  
बेहिसाब और  बे-रोकटोक,
जैसे खराब हो जाए, सिक्के डालने वाली जुए की कोई मशीन 
और तेज खनखनाहट के साथ उगल दे बाहर 
सारे सिक्कों को एक साथ 
किस्मत की सारी पीढ़ियों को.  
                    * *

न्यू. वि. वि. 
विश्विद्यालय फाटक के सामने वाले चौड़े फुटपाथ पर 
व्हीलचेयर पर बैठी रहती है एक बूढ़ी महिला.
डाक्टर की सलाह पर बैठती है वह यहाँ 
ताकि बहा ले जाए उसे नौजवानों की धारा 
हर रोज, जैसे स्पा का आरोग्यकर पानी. 
                    * *

एक व्यक्ति की आत्मा  
एक व्यक्ति की आत्मा 
किसी रेलगाड़ी की समयसारिणी की तरह होती है
एक सुस्पष्ट और ब्योरेवार समयसारिणी 
ऎसी रेलगाड़ियों की जो अब कभी नहीं चलेंगी. 
                    * *

अगर अब अपनी ज़िंदगी के बीचोबीच 
अगर अब, अपनी ज़िंदगी के बीचोबीच, मैं 
मौत के बारे में सोचूँ, तो मैं ऐसा इस आत्मविश्वास के तहत करूंगा 
कि मौत के बीचोबीच मैं अचानक ज़िंदगी के बारे में सोचने लगूंगा,
उसी तसल्लीबख्श अतीत की ललक के साथ 
और उन लोगों की दूर ताकती निगाहों के साए में 
जिन्हें मालूम है कि उनकी भविष्यवाणियाँ सच साबित होंगी.   
                    * *

अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था मैं 
और नदारद थी उसके क़दमों की आहट 
अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था मैं, और नदारद थी उसके क़दमों की आहट. 
मगर एक गोली की आवाज़ सुनी मैनें. -- फ़ौजी 
कवायद कर रहे थे जंग की. 
फ़ौजी हमेशा कवायद कर रहे होते हैं किसी न किसी जंग के लिए.   

फिर मैंने खोल दिए अपनी कमीज के कालर 
और मेरे कालरों के दोनों सिरे 
तन गए दो अलग-अलग दिशाओं में,
और मेरी गर्दन उठी हुई उनके दरमियान -- और इस पर 
मेरे निश्चल सर का शिखर 
फल के जैसी, मेरी आँखों समेत.  

और नीचे, मेरी गर्म जेब में, मेरी चाभियों की खनखनाहट ने 
कुछ सुरक्षा का एहसास कराया मुझे 
उन सभी चीजों का जिसे आप, अभी भी 
रख सकते हैं ताले में सुरक्षित. 

और अभी भी गलियों में टहलती है मेरी प्रेमिका,
जेवरात पहने हुए मौत के 
और भयानक खतरों की माला 
लपेटे हुए अपने गले में.  
                    * *

मेरी माँ पूरी दुनिया पकाती थीं मेरे लिए 
मेरी माँ पूरी दुनिया पकाती थीं मेरे लिए 
मीठे-मीठे केकों के भीतर.
मेरी प्रेमिका भर देती थी मेरी खिड़की 
सितारों की किसमिस से.
और मेरी चाहतें बंद हुआ करती थीं मेरे भीतर 
जैसे बुलबुले बंद रहते हैं किसी पावरोटी में.   
मैं शांत, चिकना और भूरा हूँ बाहर से.
पूरी दुनिया करती है मुझसे प्रेम. 
लेकिन उदास हैं मेरे बाल, जैसे नरकट उदास होती है 
किसी सूखते हुए दलदल की -- 
सुन्दर पंखों वाले सभी निराले पक्षी 
दूर रहते हैं मुझसे. 
                    * *

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Yehuda Amichai Hindi Anuvad 
Padhte Padhte Manoj Patel

Friday, February 25, 2011

दून्या मिखाइल की कविताएँ


1965 में जन्मी निर्वासित इराकी कवियत्री दून्या मिखाइल 2001 से अमेरिका में रह रही हैं. उनकी कविताओं का मुख्य विषय युद्ध है. उनकी किताब The War Works Hard को पेन"स ट्रांसलेशन अवार्ड मिल चुका है. यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ कवितायेँ. 










कलाकार बच्चा
 -मैं आसमान की तस्वीर बनाना चाहता हूँ. 
- बनाओ, मेरे बच्चे
.मैनें बना लिया.
- और तुमने इस तरह 
रंगों को फैला क्यूं दिया ?
- क्यूंकि आसमान का 
कोई छोर ही नहीं है. 
...
- मैं पृथ्वी की तस्वीर बनाना चाहता हूँ. 
बनाओ, मेरे बच्चे.
- मैनें बना लिया.
- और यह कौन है ?
- वह मेरी दोस्त है.
- और पृथ्वी कहाँ है ?
- उसके हैण्डबैग में. 
...
- मैं चंद्रमा की तस्वीर बनाना चाहता हूँ. 
बनाओ, मेरे बच्चे.
- नहीं बना पा रहा हूँ मैं.
- क्यों ?
- लहरें चूर-चूर कर दे रही हैं इसे 
बार-बार. 
... 
- मैं स्वर्ग की तस्वीर बनाना चाहता हूँ. 
बनाओ, मेरे बच्चे.
- मैनें बना लिया. 
- लेकिन इसमें तो कोई रंग ही नहीं दिख रहा मुझे.
- रंगहीन है यह. 
...
- मैं युद्ध की तस्वीर बनाना चाहता हूँ.
बनाओ, मेरे बच्चे.
- मैनें बना लिया.
- और यह गोल-गोल क्या है ?
- अंदाजा लगाओ.
- खून की बूँद ?
- नहीं.
- कोई गोली ?
- नहीं.
- फिर क्या ?
- बटन 
जिससे बत्ती बुझाई जाती है. 

ट्रेवल एजेंसी 
सैलानियों का ढेर लगा है मेज पर.
कल उड़ान भरेंगे उनके हवाई जहाज 
एक रुपहली बिंदी लगाएंगे आसमान में 
और शहरों पर उतरेंगे सांझ की तरह.
 श्रीमान जार्ज का कहना है कि उनकी प्रेमिका 
अब मुस्कराती नहीं उन्हें देखकर. 
वह सीधे रोम तक का सफ़र तय करना चाहते हैं 
वहां, उसकी मुस्कराहट जैसी एक कब्र खोदने के लिए. 
"लेकिन सारी सड़कें रोम तक नहीं जातीं," मैं उन्हें याद दिलाती हूँ,
और उन्हें एक टिकट सौंपती हूँ. 
वह खिड़की के पास बैठना चाहते हैं 
आश्वस्त होने के लिए 
कि एक ही जैसा है आसमान 
हर जगह. 

सांता क्लाज 
अपनी युद्ध जैसी लम्बी दाढ़ी 
और इतिहास जैसा लाल लबादा पहने 
सांता, मुस्कराते हुए ठिठके 
और मुझसे कुछ पसंद करने के लिए कहा.
तुम एक अच्छी बच्ची हो, उन्होंने कहा, 
इसलिए एक खिलौने के लायक हो तुम.
फिर उन्होंने मुझे कविता की तरह का कुछ दिया,
और क्यूंकि हिचकिचा रही थी मैं, 
आश्वस्त किया उन्होंने मुझे : डरो मत, छुटकी  
मैं सांता क्लाज हूँ. 
बच्चों को अच्छे-अच्छे खिलौने बांटता हूँ. 
क्या तुमने मुझे पहले कभी नहीं देखा ? 
मैनें जवाब दिया : लेकिन जिस सांता क्लाज को मैं जानती हूँ 
फ़ौजी वर्दी पहने होता है वह तो, 
और हर साल वह बांटता है 
लाल तलवारें, 
यतीमों के लिए गुड़िया,
कृत्रिम अंग,
और दीवारों पर लटकाने के लिए 
गुमशुदा लोगों की तस्वीरें. 

कुछ सर्वनाम 
वह रेलगाड़ी बनता है.
वह बनती है सीटी.
वे चल पड़ते हैं.

वह रस्सी बनता है. 
वह बनती है पेड़.
वे झूला झूलने लगते हैं. 

वह सपना बनता है.
वह बनती है पंख. 
वे उड़ जाते हैं.  

वह जनरल बनता है.
वह बनती है जनता. 
वे कर देते हैं, एलाने जंग. 

कुछ गैर-फ़ौजी बयान 
1
हाँ, अपने ख़त में लिखा था मैनें 
कि हमेशा इंतज़ार करती रहूंगी तुम्हारा. 
लेकिन ठीक-ठीक "हमेशा," मतलब नहीं था मेरा 
बस तुक मिलाने के लिए जोड़ दिया था मैनें इसे. 
2
नहीं, वह उन लोगों के बीच नहीं था.
कितने सारे लोग थे वहां !
अपनी पूरी ज़िंदगी, किसी भी टेलीविजन के परदे पर 
मेरे द्वारा देखे गए लोगों से भी ज्यादा.  
और फिर भी वह, उन लोगों के बीच नहीं था. 
कोई नक्काशी नहीं है इसमें 
या हत्थे. 
यह वहीं पड़ी रहती है हमेशा 
टेलीविजन के सामने 
यह खाली कुर्सी. 
जादू की एक छड़ी का सपना देखती हूँ मैं 
जो मेरे चुम्बनों को बदल दे सितारों में.
रात में आप देख सकें उन्हें 
और जान जाएं कि असंख्य हैं वे. 
उन सभी को शुक्रिया, जिनसे प्रेम नहीं मुझे.  
वे मेरे दुःख का कारण नहीं बनते ;
वे मुझसे नहीं लिखवाते लम्बे-लम्बे ख़त ;
वे नहीं परेशान करते मेरे ख़्वाबों को. 
मैं उनका इंतज़ार नहीं करती बेचैनी से ;
नहीं पढ़ती पत्रिकाओं में उनका राशिफल ;
नहीं मिलाती उनके नंबर ;
मैं नहीं सोचती उनके बारे में. 
बहुत शुक्रगुजार हूँ उन सबकी. 
वे उलट-पुलट नहीं देते मेरी ज़िंदगी. 
एक दरवाज़ा चित्रित किया मैनें 
उसके पीछे बैठने के लिए, 
दरवाज़ा खोलने के वास्ते तैयार 
जैसे ही तुम आओ.  

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Dunya Mikhail Poems
Hindi Anuvad

Monday, February 21, 2011

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविताएँ


अर्थार्थ और समझदारी का अगर कोई ग्राफ है तो उसके सर्वाधिक निचले बिन्दु पर टिकी हुई मानसिकता, जीवन और कला को एक दूसरे का समरूप या प्रतिबिम्ब मान बैठती है. यह (कु)तर्क इस कदर व्यापक हो चुका है कि जब कोई रचनाकार, अपनी रचना के माध्यम से, जीवन और कला के सम्बन्धों को सटीक पारिभाषित कर देता है तो हमें आश्चर्य होने लगता है. वास्तव में यह सम्बन्ध परस्परच्छेद ( intersection ) का होता है ; जीवन से कोई प्रसंग उठाकर उसे जीवनानुमूल्यानुसार परंतु कला की कसौटियों पर कसा जाता है. कला के सत्य उसे अपने मानी देते हैं. अफ़ज़ाल अहमद की ‘रॉबर्ट क्लाईव’ शीर्षक कविता में जीवन और कला के इस सम्बन्ध को बखूबी दर्शाया गया है. भारतीय उपमहाद्वीप को गुलाम बनाने में जितनी भूमिका ब्रितानी नीतियों की रही उतनी ही बड़ा किरदार कुछ ब्रितानी सेनानायकों ने अपने पराक्रम और चातुर्य से निभाया. फिर इतिहास गवाह है कि क्या हुआ, क्या-क्या हुआ? रचनाकारों ने अपने तईं कई-कई ब्योरे पेश किए परंतु यह पहली बार देखने में मिला है कि अंग्रेजी सेनानायक के पराक्रम को, उसकी मुश्किलों को, तटस्थ भाव से समझने की कोशिश एक ऐसे कवि ने की है जो इसी महाद्वीप से ताल्लुक रखता है. यह विदित तथ्य है, रॉबर्ट क्लाईव भारत में ‘जीते गए युद्धों’ से इस कदर परेशान था कि जब उसके पराक्रम के चौंध में ब्रितानी सरकार ने उसे उत्तरी अमेरिका में मौजूद समूची ब्रितानी सेना की कमान सौंपी तो यह प्रस्ताव उसने ठुकरा दिया था. अफज़ाल शानदार ढंग से हमें उस व्यक्ति का दु:ख बता देते हैं, जिसे लेकर हम भारतीयों के मन में सहानुभूति तक नही उपजती है.
स्त्री विमर्श के नाम पर अनेकानेक काम होते रहे हैं पर अफ़ज़ाल साहब ने जिस तरह पुरुष मानसिकता को बेपर्द किया है, वह मानीखेज है. यह जो तीसरी दुनिया है इसकी तमाम खासयितों मे एक यह भी है कि इस आबाद दुनिया के पुरुष स्त्रियों से बहुत डरते हैं. वो कबूतरों की आजादी और स्त्रियों की पराधीनता को एक समान रूप से पसन्द करते हैं. यह सत्य है. इस तथाकथित पुरुष की आत्मकेन्द्रियता का आलम है कि यह पुरुष, स्त्री के जीवन के सबसे बड़े सत्यों में से एक, उसके गर्भधारण की खबर को, कहानी की तरह भी नहीं सुनना चाहता है. वह स्त्री के परास्त कर देने वाले सौन्दर्य से भी डरता है. “मुझे एक कहानी सुनाओ” कविता को पढ़ते हुए आप पायेंगे पुरुष, स्त्री के सौन्दर्य से इस तरह बिंधा हुआ है कि उस स्त्री के मन से भी उसके सुन्दरता की यह बात मिटा देना चाहता है. उससे बाकयदा कहता है कि आईने मे नजर आने वाली हर शै खूबसूरत होती है और खूबसूरती आईने की देन है. कहानी सुनने की दिलचस्पी रखने वाला यह पुरुष अपनी प्रेमिका / पत्नी पर ऐसे अन्देशे जताता है जिनका कोई अंत नहीं. पहली नजर में यह पुरुष अपने विराट होने के दावे इतिहास के पहिये के बारे मे बातें करते हुए पेश करता है, पर जैसे ही आप कविता की परतों को खुरचेंगे आप पायेंगे कि इतिहास में उसकी पैठ समय के किसी भी दायरे से परे है और वह गोल मोल बाते करता है, जैसे शहजादियाँ और उनके हमल. और इस तरह इतिहास के पाए से लग कर वो पूरी स्त्री जाति के हमल ठहरने की प्रक्रिया को अवैध ठहरा कर अपने आरोपों की पुष्टि करना चाहता है.  यही वह शख्स है जिसके लिए, आगे चलकर ( वह शख्स जिसे लड़कियों की जिल्द पसन्द थी ), स्त्री सिर्फ तवचा तक सीमित हो जाती है. और हद तो यह कि स्त्रियों की त्वचा छूना उसे पसन्द है.
 
अफज़ाल अहमद सैयद (افضال احمد سيد) अपनी कविताओं के जरिये सामाजिक मूल्यों और ऐतिहासिक परिस्थितियों के पुनर्मूल्यांकन के नए पैमाने रचते हैं, नई दृष्टि देते हैं. यहाँ प्रस्तुत कविताएँ उनके संग्रह 'रोकोको और दूसरी दुनियाएं' (روکوکو اور دوسری دنيائيں : نظميں) से ली गयी हैं.
 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि तुम मुझसे हामिला हो गयी हो 
इसके अलावा कि तुम उस लड़की से ज्यादा खूबसूरत हो 
जो मुझे छोड़कर चली गई है 
इसके अलावा कि तुम हमेशा सफ़ेद ब्लाउज के नीचे 
सफ़ेद ब्रेजियर पहनती हो 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि आईने ने सबसे खूबसूरत किसे बताया था 
इसके अलावा कि आईने में नजर आने वाली हर शै खूबसूरत होती है 
इसके अलावा कि गुलाम लड़कियों के हाथों से 
शहजादियों के आईने कैसे गिर जाते थे 
इसके अलावा कि शहजादियों के हमल कैसे गिर जाते थे 
इसके अलावा कि शहर कैसे गिर जाते थे 
और फसील, 
और इल्म, 
और मुकाबला करते हुए लोग 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि डेटलाइन से गुजरते हुए 
तुम कप्तान के केबिन में नहीं सोईं 
इसके अलावा कि तुमने कभी समंदर नहीं देखा 
इसके अलावा कि डूबने वालों की फेहरिस्त में कुछ नाम 
हमेशा दर्ज होने से रह जाते हैं 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि बिछड़ी हुई जुड़वा बहनें ब्राथल में 
एक दूसरे से कैसे मिलीं 
इसके अलावा कि कौन सा फूल किस शख्स के आंसुओं से उगा 
इसके अलावा कि कोई जलते हुए तंदूर से रोटियाँ नहीं चुराता 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि सुलहनामे की मेज अजायबघर से कैसे गायब हो गई 
इसके अलावा कि एक बर्रेआज़म को गलत नाम से पुकारा जाता है 

मुझे एक कहानी सुनाओ 
इसके अलावा कि तुम्हें होंठों पर बोसा देना अच्छा नहीं लगता 
इसके अलावा कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी में पहला मर्द नहीं था 
इसके अलावा कि उस दिन बारिश नहीं हो रही थी 

हामिला  =  गर्भवती 
हमल  =  गर्भ 
फसील  =  नगर या किले को घेरने वाली चारो ओर की दीवार 
इल्म  =  ज्ञान 
ब्राथल  =  वेश्यालय, brothel 
बर्रे आज़म  =  महाद्वीप 
                    * *

राबर्ट क्लाइव  
" मेरी सारी नेकनामी रहने दो 
मेरी सारी दौलत छीन लो "

उसके साथ ऐसा ही किया गया 

उसने दर्द कम करने के लिए अफ्यून का इस्तेमाल ख़त्म कर दिया था 
ओमीचंद का भूत अब उसके सामने परेड नहीं करता था 
उसे मालूम था 
सच और खुशनसीबी पर उसकी इजारेदारी ख़त्म हो चुकी है 

अब किसी बारिश में 
दुश्मन का गोला बारूद नहीं भीग सकेगा 
कोई हुक्मरान 
उसके क़दमों में खड़े होकर 
उसे सुलह के दस्तावेज नहीं पेश करेगा 

फिर भी वह वही था 
जिसने तारीख की एक अहम जंग 
सिर्फ चौदह सिपाहियों के नुकसान पर जीती थी 

वह एक मुश्किल दुनिया का बाशिन्दा था 
हम उसकी खुदकशी पर अफ़सोस कर सकते हैं 
                    * *

सिर्फ गैर अहम शायर 
सिर्फ गैर अहम शायर 
याद रखते हैं 
बचपन की फिरोजी और सफ़ेद फूलों वाली तामचीनी की प्लेट 
जिसमें रोटी मिलती थी 

सिर्फ गैर अहम शायर 
बेशर्मी से लिख देते हैं 
अपनी नज्मों में 
अपनी महबूबा का नाम 

सिर्फ गैर अहम शायर 
याद रखते हैं 
बदतमीजी से तलाशी लिया हुआ एक कमरा 
बाग़ में खड़ी हुई एक लड़की की तस्वीर 
जो फिर कभी नहीं मिली.  
                    * *

वह आदमी जिसे लड़कियों की जिल्द पसंद थी 
वह आदमी जिसे लड़कियों की जिल्द पसंद थी 
अपनी पोर्नोग्राफी की किताब पर मढ़ने के लिए 

उसने फ़ौज के एक भगोड़े को 
एक महकूम लड़की की ज़िंदा खिंची हुई खाल 
हासिल करने की तरगीब दी 

मज्कूरा भगोड़ा 
सिंध से दो बार गुजरा 

हमें पोर्नोग्राफी की किताबों को 
एहतियात से छूना चाहिए 

महकूम  =  गुलाम 
तरगीब  =  प्रलोभन, प्रेरणा 
मज्कूरा = जिसका जिक्र हुआ (उपरोक्त)
                    * *

खेल 
सदरे मम्लिकत 
आँखों पर पट्टी बांधकर फन फेयर में बोर्ड पर बने गधे के खाके में 
उसकी दुम पिन से लगाने की कोशिश कर रहे हैं 
तीन लड़कियां खिलखिला कर हंस रही हैं 
उनमें से एक 
बहुत खूबसूरत है 

एक अहम शख्स की महबूबा 
उसके कमरे में दबे पाँव आने के बाद 
उसकी आँखें मूँदकर 
उसे गेस करने को कहती है 
उस वक़्त उसकी अंगुली में उसकी दी हुई अंगूठी नहीं है 

वजीरे आजम 
आँखों पर पट्टी बांधकर 
अपने बच्चों के साथ सरसब्ज लान पर 
ब्लाइंड मैन बफ खेल रही हैं 

हम लोगों को 
आँखों पर पट्टियां बांधकर 
कैदियों की गाड़ियों में धकेला जा रहा है 

सदरे मम्लिकत  =  राष्ट्रपति 
वजीरे आजम  =  प्रधानमंत्री 
सरसब्ज  =  हरे-भरे  
                    * *





शहर में बहार लौट आएगी 
वजीरे आजम की 
फोटोजेनिक मुस्कराहट के नतीजे में 
एडोनिस की तरह 
क़त्ल किया गया नौजवान मौत की सरजमीन से लौट आएगा 
और दूसरे मरने वाले भी 

सदर के खंखारते ही 
दहशतगर्द हथियार फेंक देंगे 
और मेहरान बैंक में मुलाजमत अख्तियार कर लेंगे 

सिह पहर को 
वजीरे आजम की जम्हाई रुकते ही 
लोग सिनेमाओं और थिएटरों को चल पड़ेंगे 
फ्रेंच बीच पर निम्फो लडकियां टापलेस चहलकदमी करेंगी 

मजबूत शानों पर 
फांसी पाने के बाद 
हमारी आँखें और जुबान उबल आने के बाद 
शहर में बहार लौट आएगी 

मुलाजमत  =  नौकरी 
सिह पहर  =  तीसरा पहर, afternoon 
शान  =  कंधा 
                    * *

एक आईसक्रीम को मुतआरिफ कराने की 
मुहिम
रेंजर्ज की मोबाइलों 
और बख्तरबंद गाड़ियों के आने के बाद 
टैंकों के आने से पहले 
वह खिलौनों की दुकानों से निकलकर 
हमारी सड़कों पर आ गए 

अपने पहियों वाले सफ़ेद डिब्बों के साथ 
जिनके ऊपर खूबसूरत छतरियां लगी थीं 

वह स्ट्राबेरी और वनीला की जुबान में बात करते थे 
उनके पास लोगों को मुतवज्जा करने के लिए 
एक दिलकश धुन थी 

उनकी 
एक आईसक्रीम को मुतआरिफ कराने की मुहिम 
हमारे शहर के लिए आखिरी खुशगवार हैरत थी 

मुतआरिफ  =  परिचित 
मुतवज्जा  =  आकर्षित 
                    * *

(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
Afzal Ahmed Syed, Rococo and Other Worlds 
Poems transliterated in Hindi 
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