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Wednesday, August 27, 2014

गिओर्गि गस्पदीनव की कविता

बुल्गारिया के कवि गिओर्गि गस्पदीनव की एक और कविता… 

 ओडियन  : गिओर्गि गस्पदीनव   
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
 
किसी दिन ठंडे पड़ जाएंगे हम भी 
जैसे ठंडी हो रही है चाय की प्याली 
पिछवाड़े बरामदे में बिसराई हुई 
जैसे कीचड़ में गिरे लिली के फूल 
जैसे पुराने वाल-पेपर के ऑर्किड 
धुंधला जाएंगे हम भी किसी दिन 
मगर इतनी शान से नहीं 
और किन्हीं दूसरी फिल्मों में 
                   :: :: ::

Monday, May 2, 2011

गिओर्गि गस्पदीनव की कविता


1968 में जन्मे बुल्गारिया के प्रसिद्द कवि-कथाकार-नाटककार गिओर्गि गस्पदीनव की कविताओं की पिछली पोस्टों को इस ब्लॉग पर बहुत पसंद किया गया. आज पेश है उनकी एक और कविता. गस्पदीनव अपने उपन्यास नेचुरल नावेल के लिए विश्वविख्यात हैं. वे बुल्गारिया की एक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक और न्यू बुल्गारियन यूनिवर्सिटी, सोफिया में प्रोफ़ेसर भी हैं.  


प्रेम खरगोश : गिओर्गि गस्पदीनव 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी, वह बोली,
और दरवाजे को अधखुला छोड़कर चली गई.
यह एक ख़ास शाम थी हमारे लिए,
खरगोश का स्ट्यु गैस चूल्हे पर धीमे-धीमे पक रहा था,
उसने कुछ प्याज और लहसुन बारीक काट रखे थे 
और गाजर को छोटे गोल टुकड़ों में.
उसने कोट नहीं लिया 
और न ही कोई लिपस्टिक लगाई. मैंने पूछा भी नहीं 
कि वह कहाँ जा रही थी.
ऎसी ही है वह.
उसे वक़्त का कभी कोई अंदाजा ही नहीं रहता,
हमेशा देर हो जाती है उसे ; बस इतना ही 
कहा था उसने उस शाम :
मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी ;
उसने दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था.
छः साल बाद 
मैं उससे गली में मिलता हूँ (अपनी नहीं)
और वह अचानक फिक्रमंद दिखाई पड़ने लगती है, जैसे किसी को अचानक याद आया हो 
कि वह इस्त्री का प्लग निकालना भूल गया था,
या जैसे...
तुमने गैसचूल्हा तो बंद कर दिया था न, वह पूछती है.
अभी तक तो नहीं, मैं जवाब देता हूँ,
बहुत सख्तजान होते हैं ये खरगोश. 
Georgi Gospodinov Poems in Hindi Translation

Tuesday, April 19, 2011

गिओर्गि गस्पदीनव की कविता

बुल्गारिया के प्रसिद्द कवि गिओर्गि गस्पदीनव का परिचय और उनकी एक कविता आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता, जिसका शीर्षक है - * * * 












* * *
                                 पहले कौन आया - अंडा या मुर्गी ?
                                 जवाब है : वह नाम जो गैरहाजिर है.
                                                                       गास्तिन 
शुरुआत में 
मुर्गी और अंडा 
चुपचाप बैठे हुए 
एक दूसरे के सामने 
उन्हें नहीं मालूम 
कि किसे बोलना चाहिए 
पहला शब्द 
(या शब्द का अस्तित्व नहीं है 
या शब्द अभी तक अज्ञात है)
तो वे बैठे रहते हैं गूंगे बने 
और कोई नहीं 
कहता 
माँ
                    + +

(अनुवाद : मनोज पटेल)
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