अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...
अगर मैं लौटकर न आ सका : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल)
मैं अंधे चीतों
रंगीन मछलियों
और तेज़ बादलों को पकड़ता हूँ
अंधे चीते
कुंद कुदालों से खुदे गड्ढों में,
रंगीन मछलियाँ
रेशम की डोरियों से बुने जाल में,
और तेज़ बादल
मक़्नातीस से पकड़े जाते हैं
यह मेरा कुआं है
यह मेरा तंदूर है
और यह मेरी कब्र है
इन सबको मैंने ख़ुद खोदा है
जिसे अपनी ज़ंजीर ख़ुद काटनी होती है
अपनी आरी ख़ुद उगाता है
मुझे अपना समंदर ख़ुद काटना है
मैं अपनी कश्ती ख़ुद हासिल करूंगा
मेरी कश्ती किसी साहिल पर रंग होने के बाद सूख रही है
किसी ग़ार में रुकी है
किसी दरख़्त में कैद है
या कहीं नहीं है
मगर मेरे पास एक बीज है
जिसका नाम मेरा दिल है
मेरे पास थोड़ी सी ज़मीन है
जिसका नाम मुहब्बत है
मैं दिल का दरख़्त बनाऊंगा
और एक दिन
उसे काटकर
एक कश्ती बनाकर निकल जाऊंगा
अगर मैं लौटकर न आ सका
मेरी रंगीन मछलियों को मेरे कुएं में,
मेरे अंधे चीतों को
मेरे तंदूर में,
और मेरे तेज़ बादलों को
मेरी कब्र में रख देना
जो मैंने बहुत गहरी खोदी है
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मक़्नातीस : चुम्बक
ग़ार : गुफा