अरुंधती राय ने आकुपाई आन्दोलन के समर्थन में यह भाषण न्यूयार्क के वाशिंगटन स्क्वायर पार्क में दिया था. इस भाषण को गार्जियन ने प्रकाशित किया है.
हम सभी आन्दोलनकारी हैं : अरुंधती राय
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मंगलवार की सुबह पुलिस ने जुकोटी पार्क खाली करा लिया मगर आज लोग वापस आ गए हैं. पुलिस को जानना चाहिए कि यह प्रतिरोध जमीन या किसी इलाके के लिए लड़ी जा रही कोई जंग नहीं है. हम इधर-उधर किसी पार्क पर कब्जा जमाने के अधिकार के लिए संघर्ष नहीं कर रहे हैं. हम न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं. न्याय, सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि सभी लोगों के लिए.
17 सितम्बर के बाद से, जब अमेरिका में इस आकुपाई आन्दोलन की शुरूआत हुई, साम्राज्य के दिलो दिमाग में एक नई कल्पना, एक नई राजनीतिक भाषा को रोपना आपकी उपलब्धि है. आपने ऎसी व्यवस्था को फिर से सपने देखने के अधिकार से परिचित करा दिया है जो सभी लोगों को विचारहीन उपभोक्तावाद को ही खुशी और संतुष्टि समझने वाले मंत्रमुग्ध प्रेतों में बदलने की कोशिश कर रही थी.
एक लेखिका के रूप में मैं आपको बताना चाहूंगी कि यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. इसके लिए मैं आपको कैसे धन्यवाद दूं.
हम न्याय के बारे में बात कर रहे थे. इस समय जबकि हम यह बात कर रहे हैं अमेरिका की सेना ईराक और अफगानिस्तान में कब्जे के लिए युद्ध कर रही है. पाकिस्तान और उसके बाहर अमेरिका के ड्रोन विमान नागरिकों का क़त्ल कर रहे हैं. अमेरिका की दसियों हजार सेना और मौत के जत्थे अफ्रीका में घूम रहे हैं. और मानो आपके ट्रीलियनों डालर खर्च करके ईराक और अफगानिस्तान में कब्जे का बंदोबस्त ही काफी न रहा हो, ईरान के खिलाफ एक युद्ध की बातचीत भी चल रही है.
महान मंदी के समय से ही हथियारों का निर्माण और युद्ध का निर्यात वे प्रमुख तरीके रहे हैं जिनके द्वारा अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है. अभी हाल ही में राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ 60 बिलियन डालर के हथियारों का सौदा किया है. वह संयुक्त अरब अमीरात को हजारों बंकर वेधक बेचने की उम्मीद लगाए बैठा है. इसने मेरे देश भारत को 5 बिलियन डालर कीमत के सैन्य हवाई जहाज बेंचे हैं. मेरा देश भारत ऐसा देश है जहां ग़रीबों की संख्या पूरे अफ्रीका महाद्वीप के निर्धमतम देशों के कुल ग़रीबों से ज्यादा है. हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी से लेकर वियतनाम, कोरिया, लैटिन अमेरिका के इन सभी युद्धों ने लाखों लोगों की बलि ली है -- ये सभी युद्ध ''अमेरिकी जीवन शैली'' को सुरक्षित रखने के लिए लड़े गए थे.
आज हम जानते हैं कि "अमेरिकी जीवन शैली" --यानी वह माडल जिसकी तरफ बाक़ी की दुनिया हसरत भरी निगाह से देखती है-- का नतीजा यह निकला है कि आज 400 लोगों के पास अमेरिका की आधी जनसंख्या की दौलत है. इसका नतीजा हजारों लोगों के बेघर और बेरोजगार हो जाने के रूप में सामने आया है जबकि अमेरिकी सरकार बैंकों और कारपोरेशनों को बेल आउट पैकेज देती है, अकेले अमेरिकन इंटरनेशनल ग्रुप (ए आई जी) को ही 182 बिलियन डालर दिए गए.
भारत सरकार तो अमेरिकी आर्थिक नीतियों की पूजा करती है. 20 साल की मुक्त बाजार व्यवस्था के नतीजे के रूप में आज भारत के 100 सबसे अमीर लोगों के पास देश के एक चौथाई सकल राष्ट्रीय उत्पाद के बराबर की संपत्ति है जबकि 80 प्रतिशत से अधिक लोग 50 सेंट प्रतिदिन से कम पर गुजारा करते हैं; 250000 किसान मौत के चक्रव्यूह में धकेले जाने के बाद आत्महत्या कर चुके हैं. हम इसे प्रगति कहते हैं, और अब अपने आप को एक महाशक्ति समझते हैं. आपकी ही तरह हम लोग भी सुशिक्षित हैं, हमारे पास परमाणु बम और अत्यंत अश्लील असमानता है.
अच्छी खबर यह है कि लोग ऊब चुके हैं और अब अधिक बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं. आकुपाई आन्दोलन पूरी दुनिया के हजारों अन्य प्रतिरोध आन्दोलनों के साथ आ खड़ा हुआ है जिसमें निर्धमतम लोग सबसे अमीर कारपोरेशनों के खिलाफ खड़े होकर उनका रास्ता रोक दे रहे हैं. हममें से कुछ लोगों ने सपना देखा था कि हम आप लोगों को, संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों को अपनी तरफ पाएंगे और वही सब साम्राज्य के ह्रदय स्थल पर करते हुए देखेंगे. मुझे नहीं पता कि आपको कैसे बताऊँ इसका कितना बड़ा मतलब है.
उनका (1 % लोगों का) यह कहना है कि हमारी कोई मांगें नहीं हैं... शायद उन्हें पता नहीं कि सिर्फ हमारा गुस्सा ही उन्हें बर्बाद करने के लिए काफी होगा. मगर लीजिए कुछ चीजें पेश हैं, मेरे कुछ "पूर्व-क्रांतिकारी ख्याल" हमारे मिल-बैठकर इन पर विचार करने के लिए :
हम असमानता का उत्पादन करने वाली इस व्यवस्था के मुंह पर ढक्कन लगाना चाहते हैं. हम व्यक्तियों और कारपोरेशनों दोनों के पास धन एवं संपत्ति के मुक्त जमाव की कोई सीमा तय करना चाहते हैं. "सीमा-वादी" और "ढक्कन-वादी" के रूप में हम मांग करते हैं कि :
व्यापार में प्रतिकूल-स्वामित्व (क्रास-ओनरशिप) को ख़त्म किया जाए. उदाहरण के लिए शस्त्र-निर्माता के पास टेलीविजन स्टेशन का स्वामित्व नहीं हो सकता; खनन कम्पनियां अखबार नहीं चला सकतीं; औद्योगिक घराने विश्वविद्यालयों में पैसे नहीं लगा सकते; दवा कम्पनियां सार्वजनिक स्वास्थ्य निधियों को नियंत्रित नहीं कर सकतीं.
प्राकृतिक संसाधन एवं आधारभूत ढाँचे --जल एवं विद्युत् आपूर्ति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा-- का निजीकरण नहीं किया जा सकता.
सभी लोगों को आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए.
अमीरों के बच्चे माता-पिता की संपत्ति विरासत में नहीं प्राप्त कर सकते.
इस संघर्ष ने हमारी कल्पना शक्ति को फिर से जगा दिया है. पूंजीवाद ने बीच रास्ते में कहीं न्याय के विचार को सिर्फ "मानवाधिकार" तक सीमित कर दिया था, और समानता के सपने देखने का विचार कुफ्र हो चला था. हम ऎसी व्यवस्था की मरम्मत करके उसे सुधारने के लिए नहीं लड़ रहे हैं जिसे बदले जाने की जरूरत है.
एक "सीमा-वादी" और "ढक्कन-वादी" के रूप में मैं आपके संघर्ष को सलाम करती हूँ.
सलाम और जिंदाबाद.
:: :: ::
(गार्जियन से साभार) Manoj Patel