Tuesday, January 31, 2012

एक फिल्मकार की कविताएँ

प्रसिद्द ईरानी फिल्मकार अब्बास कियारोस्तामी की अनोखे चाक्षुष बिम्बों वाली कविताएँ आप इस ठिकाने पर पहले भी पढ़ते रहे हैं. आज कुछ और कविताएँ प्रस्तुत हैं... 


 
 अब्बास कियारोस्तामी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

चिंघाड़ते हुए 
रुक जाती है ट्रेन. 

एक तितली सोई हुई है पटरी पर. 
:: :: :: 

दाएँ-बाएँ एक निगाह भी डाले बिना 
सड़क पार करता है 
एक सांप. 
:: :: :: 

हैरान है 
मधुमक्खी 
एक अनजाने फूल की खुशबू से. 
:: :: :: 

एक थके हुए गाँव में 
साल भर की फसल 
एक दिन में काटकर 
लाद दी जाती है एक लड़खड़ाते जानवर की पीठ पर. 
:: :: :: 
manojpatel01 

Monday, January 30, 2012

राबर्टो जुअर्रोज़ : हर चीज कहीं और शुरू होती है

राबर्टो जुअर्रोज़ की एक और कविता... 

 
राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हर चीज कहीं और शुरू होती है. 

यह महत्वपूर्ण नहीं कि कुछ चीजें 
अब भी मौजूद हैं यहाँ 
और यहीं ख़त्म भी हो जाएंगी : 
शुरू नहीं होता कुछ भी यहाँ. 

इसलिए यह शब्द, यह खामोशी, 
तुम्हारे पैरों की आहट, यह मेज, फूलदान  
सच कहा जाए तो कभी यहाँ थे ही नहीं. 

हर चीज हमेशा कहीं और होती है : 
वहीं, जहां उसकी शुरूआत होती है.  
                    :: :: :: 
Manoj Patel Blog 

नाजिम हिकमत : थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट

आज फिर से पढ़ते हैं नाजिम हिकमत की एक कविता... 

 
थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

हम मिला करते थे प्राग के थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट में. 
आज मैं खड़ा हूँ आँखें बंद किए सड़क के किनारे,
          और तुम एक मौत भर की दूरी पर. 
शायद कोई थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट नहीं है प्राग में 
          और बातें बना रहा हूँ मैं. 

हम मिला करते थे प्राग के थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट में. 
मैं निहारा करता तुम्हारा चेहरा और गाया करता था दिल से 
          पैगम्बर सोलोमन के सबसे बेहतरीन गीत.  

हम मिला करते थे प्राग के थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट में. 
आज मैं खड़ा हूँ आँखें बंद किए सड़क के किनारे, 
          और तुम एक मौत भर की दूरी पर, 
          एक टूटे हुए आईने में, उल्टी-पुल्टी और विरूपित. 

हम मिला करते थे प्राग के थ्री स्टार्क्स रेस्टोरेंट में. 
सोन्या दान्योलोवा, प्यारी दोस्त ! 
कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं मृतकों को.
                                                         १८ अगस्त, १९५९ 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Blogger & Translator 

Sunday, January 29, 2012

मार्क स्ट्रैंड की कविता

मार्क स्ट्रैंड की एक कविता...

 

चन्द्रमा से प्रेम करने वाले एक कवि का निशा गीत : मार्क स्ट्रैंड 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं चन्द्रमा से ऊब चुका हूँ, ऊब चुका हूँ उसकी विस्मय भरी निगाह से, उसकी निगाह की नीली बर्फ से, उसके आगमन और प्रस्थान से, उस तरीके से जिसमें वह प्रेमी जोड़ों और एकाकी लोगों को, उनके बीच कोई अंतर कर पाने में असफल रहते हुए, अपने अदृश्य डैनों के नीचे जुटाए रहता है. मैं उन बहुत सी चीजों से ऊब चुका हूँ जो मुझे सम्मोहित कर लिया करती थीं, ऊब चुका हूँ धूप में चमकती घास पर गुजरती बादलों की परछाईं देखने से, झील में हंसों को आगे-पीछे तैरते हुए देखने से, अपने अभी तक अजन्मे आत्म की एक छवि मिल जाने की उम्मीद में अँधेरे में झाँकने से. आँखों में सादगी को दाखिल होने दो, ऎसी मेज की सादगी जिस पर कुछ नहीं रखा है, ऎसी मेज जो मेज भी नहीं है. 
                                                            :: :: :: 
Manoj Patel, translator & blogger 

Saturday, January 28, 2012

मरम अल-मसरी की दो कविताएँ

मरम अल-मसरी की दो कविताएँ... 

 

मरम अल-मसरी की दो कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

याद है 
तुम्हारे दस्तक दिए बिना ही 
मैनें खोल दिया था अपना दरवाज़ा... 

कितनी बुद्धू थी मैं 
मुझे लगा था कि तुमने कुछ नहीं चुराया 
सिगरेट और किताबों के सिवाय. 
:: :: :: 

अपने स्वादिष्ट फल से 
मैं रोशन करती हूँ 
खुद तक आने वाला रास्ता. 

तुम्हारे नासमझ परिंदों को 
पसंद है 
बासी रोटी. 
:: :: :: 
Manoj Patel, 9838599333 

Friday, January 27, 2012

नेरुदा-क्रोनिन : सवाल-जवाब

पाब्लो नेरुदा की 'सवालों की किताब' से कुछ सवाल आप इस ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं. आस्ट्रेलियाई कवियत्री एम टी सी क्रोनिन ने 'नेरुदा के सवालों से बातचीत' की है. क्रोनिन का जन्म १९६३ में हुआ था. क्वीन्सलैंड में रहने वाली क्रोनिन पेशे से अधिवक्ता हैं. उनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.  













नेरुदा-क्रोनिन सवाल-जवाब 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

पाब्लो नेरुदा 
अगर मैं मर चुका हूँ और अनजान हूँ इस बात से 
तो भला कौन बताएगा मुझे वक़्त? 

फ़्रांसीसी बसंत कहाँ से पाता है 
इतनी सारी हरी-भरी पत्तियाँ?

मधुमक्खियों से हैरान अंधा आदमी 
कहाँ बना सकता है अपना बसेरा? 

अगर ख़त्म हो गया है सारा पीलापन 
तो हम रोटी किस चीज से बनाएंगे भला? 
                    :: :: :: 

एम टी सी क्रोनिन 
अगर आप मर चुके हैं और अनजान हैं इस बात से 
तो वक़्त पूछिए किसी गर्भवती घड़ी का. 

बसंत में फ्रांस 
सिनेमा से पाता है अपनी पत्तियाँ. 

मधुमक्खियों से हैरान अंधे आदमी को 
शांत लकड़ी का बनाना चाहिए अपना घर. 

अगर ख़त्म हो जाए सारा पीलापन 
तो हम खिलखिलाहट से बनाएंगे रोटियाँ.  
                    :: :: :: 

पाब्लो नेरुदा 
बताओ मुझे, क्या गुलाब सचमुच नंगा है 
या उसके कपड़े पहनने का तरीका ही यही है? 

पेड़ भला क्यों छिपाते हैं 
अपनी जड़ों की शान? 

कौन कान देता है 
गुनहगार मोटरकार के प्रायश्चित पर? 

बारिश में गतिहीन खडी रेलगाड़ी से ज्यादा उदास 
कोई चीज है क्या दुनिया में? 
                    :: :: :: 

एम टी सी क्रोनिन 
मैं बताती हूँ, न तो नंगा है न ही कपड़े पहने है गुलाब 
बल्कि सिर्फ इंसान का दिल ही उतारता है उसके कपड़े. 

पेड़ छिपाते हैं अपनी जड़ों की शान 
क्योंकि उन्हें बढ़ना है हर हालत में. 

सिर्फ नई-नवेली सड़क ही कान देती है 
गुनहगार मोटरकार के प्रायश्चित पर. 

बारिश में गतिहीन खडी रेलगाड़ी से ज्यादा उदास 
कोई चीज है क्या दुनिया में? एक माँ. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte

Thursday, January 26, 2012

राबर्टो जुअर्रोज़ : हर चीज भाग रही है अपनी मौजूदगी की तरफ

राबर्टो जुअर्रोज़ की 'सिक्स्थ वर्टिकल पोएट्री' से एक कविता...

 

राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

घंटी भरी है हवा से 
मगर बजती नहीं वह. 
उड़ान से भरी है चिड़िया 
मगर गतिहीन है वह. 
आसमान भरा है बादलों से 
मगर वह है अकेला. 
वाणी से भरा है शब्द 
मगर कोई बोलता नहीं उसे. 
हर चीज भरी है भागने से 
मगर नहीं है कोई सड़क. 

हर चीज भाग रही है 
अपनी मौजूदगी की तरफ. 
               :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte 

Tuesday, January 24, 2012

सिनान अन्तून की कविताएँ


"आजादी! कल उनके ताज पिघलाएंगे हम, तुम्हारी पायल के लिए." 
(सिनान अन्तून)  

जाने-माने इराकी कवि, उपन्यासकार और अनुवादक सिनान अन्तून का जन्म 1967 में बग़दाद में हुआ था. खाड़ी युद्ध के बाद उन्होंने इराक छोड़ दिया. अरबी भाषा में दो कविता-संग्रहों और दो उपन्यासों के अलावा उन्होंने अनुवाद का भी बहुत सा काम किया है. महमूद दरवेश की कविताओं का उनका सहअनुवाद 2004 में पेन ट्रांसलेशन प्राइज़  के लिए नामांकित हो चुका है. हाल ही में महमूद दरवेश की आखिरी गद्य पुस्तक का उनका अनुवाद आर्किपिलागो बुक्स ने 'इन द प्रजेंस आफ एब्सेंस'  के नाम से प्रकाशित किया है. एक वृतचित्र अबाउट बग़दाद का सह -निर्माण भी. बग़दाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य की डिग्री और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से डाक्टरेट. फिलहाल न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में अध्यापन. यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अंग्रेजी में उपलब्ध उनके कविता-संग्रह 'द बग़दाद ब्लूज' से ली गई हैं. इन्हें अनुदित और प्रकाशित करने की अनुमति देने के लिए हम कवि के आभारी हैं. 

















सिनान अन्तून की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

जब युद्ध से छलनी हो गया मेरा सीना 

एक ब्रश उठाया मैनें 
मौत में डुबोया हुआ 
और एक खिड़की बना दी 
युद्ध की दीवार पर 
मैनें खोला इसे 
किसी चीज की 
तलाश में 
मगर 
देखा एक और युद्ध 
और एक माँ 
जो एक कफ़न बुन रही थी 
उस मृतक के लिए 
जो अभी उसके पेट में ही था 
                                     बग़दाद, 1990                             
                    * * *

एक तस्वीर 
(न्यूयार्क टाइम्स के मुखपृष्ठ पर एक इराकी लड़के की)

वह बैठा था 
ट्रक के एक सिरे पर 
(आठ या नौ साल का?)
अपने परिवार से घिरा हुआ 
उसके पिता,
माँ,
और पांच भाई-बहन 
सोए पड़े थे 
और उसका सर 
अपने हाथों में गहरे धंसा हुआ था 
दुनिया के सारे बादल 
इंतज़ार कर रहे थे 
उसकी आँखों की कोर पर 
लम्बे शख्स ने पसीना पोंछा 
और खोदना शुरू किया 
सातवीं कब्र 
                                       न्यूयार्क, सितम्बर 2006 
                    * * *

गैरहाजिरी 

जब तुम चली जाती हो 
मुरझा जाती है यह जगह 
मैं इकट्ठा करता हूँ 
तुम्हारे होंठों से छितराए गए बादलों को 
लटका देता हूँ उन्हें 
अपनी स्मृति की दीवार पर 
और इंतज़ार करता हूँ 
एक और दिन का 
                    * * * 

दृश्य 

समुन्दर टिकाता है अपना सर 
क्षितिज की तकिया पर 
और एक झपकी लेने लगता है 
मैं सुन सकता हूँ साँसें लेते 
उसकी नीलिमा को 
जब अपनी उँगलियों के पोरों से सूरज  
चूमता है उसकी त्वचा 
आसमान को जलन होती है 
                                       बेरुत, अप्रैल 2003                
                    * * * 

चालना 

दो चलनियां हैं 
मेरी आँखें 
लोगों के ढेर में से 
चालती हुईं 
तुम्हें 
                                       काहिरा, अगस्त 2003                                     
                     * * *  

मायाजाल॥

तुम्हारे होंठ
जैसे एक गुलाबी तितली 
उड़ती हुई 
एक लफ्ज़ से 
दूसरे लफ्ज़ को 
और मैं भागता हुआ उनके पीछे 
खामोशी के 
बगीचे में 
                                       काहिरा, जून 2003 
                    * * *  

शोध 

समुन्दर 
एक शब्दकोष है नीलिमा का 
जिसे बहुत लगन से 
पढ़ा करता है सूरज, 
तुम्हारी देंह भी
शब्दकोष है 
मेरी चाहतों की 
जिसके पहले अक्षर में ही 
बीत जानी है ज़िंदगी !
                                    बेरुत, अप्रैल 2003 
                    * * *  

Monday, January 23, 2012

मुहम्मद अल-मगहत : अन्तरिक्ष यान में एक अरब यात्री

सीरियाई कवि मुहम्मद अल-मगहत की एक कविता... 

 
अन्तरिक्ष यान में एक अरब यात्री : मुहम्मद अल-मगहत 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वैज्ञानिकों और इंजीनियरों!
मुझे एक टिकट दे दो अन्तरिक्ष का 
मेरे उदास वतन ने भेजा है मुझे 
अपनी विधवाओं, अपने बच्चों और बुजुर्गों के नाम पर 
आसमान का एक मुफ्त टिकट मांगने के लिए 
क्योंकि पैसा नहीं सिर्फ आंसू हैं मेरे पास 

क्या कहा, जगह नहीं है मेरे लिए?
मुझे यान के पीछे 
छत पर ही बैठ जाने दो 
मैं किसान हूँ, आदत है इस सबकी 
किसी तारे को नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा मैं 
छूऊँगा नहीं एक भी बादल 
सिर्फ खुदा तक पहुंचता चाहता हूँ मैं 
जल्द से जल्द 
उनके हाथ में एक कोड़ा थमाने के वास्ते 
कि वे जगाएं हमें बगावत के लिए!
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte 

Sunday, January 22, 2012

अरुंधती राय : मुकेश अम्बानी पूंजीवाद के सबसे बड़े प्रेत हैं

मुम्बई के सेंट जेवियर्स कालेज में अरुंधती राय ने कल अनुराधा गांधी स्मृति व्याख्यान दिया. समाचार पत्रों की कतरनों को संकलित करके उनकी ख़ास-ख़ास बातों को पेश करने की कोशिश कर रहा हूँ... 















मुकेश अम्बानी पूंजीवाद के सबसे बड़े प्रेत हैं : अरुंधती राय 
(अनुवाद/प्रस्तुति : मनोज पटेल) 

चूंकि हम पूंजीवाद के प्रेत के बारे में बात कर रहे हैं, मैं अपने ढंग के अनोखे मुकेश अम्बानी के साथ अपनी बात शुरू करना चाहूंगी. मैं अल्टामाउंट रोड पर उनका घर एंटिला देखने गई थी; मेरे साथ मौजूद मेरे दोस्त के मुंह से निकला, "आ पहुंचे हम, अपने नए बादशाह को सलाम बजाइए." 

मैं मुकेश अम्बानी के आज तक के सबसे महंगे आशियाने के बारे में कुछ पढ़कर सुनाना चाहूंगी, सत्ताईस मंजिलें, तीन हेलीपैड, नौ लिफ्ट, हैंगिंग गार्डेन, बालरूम्स, वेदर रूम्स, जिम्नेजियम्स, छः मंजिला पार्किंग, और ६०० नौकर. मगर किसी ने मुझे वर्टिकल लान के लिए तैयार नहीं किया था जो कि धातु की एक बड़ी सी जाली से लगी हुई घास की एक बहुत ऊंची दीवार है. कई टुकड़ों की घास सूखी हुई थी; एकदम आयताकार टुकड़ों के कई हिस्से कम थे. साफ़ था कि 'ट्रिकल डाउन' यानी छन कर नीचे जाने के सिद्धांत ने काम नहीं किया था. जब मैं वहां से निकल रही थी तो मैनें बगल की इमारत पर एक बोर्ड लगा हुआ देखा जिस पर लिखा था, 'बैंक आफ इंडिया'. 

दरअसल भारतीय पूंजीवाद का प्रतीक एंटिला उच्च एवं निम्न वर्ग को अलग-अलग करने वाला भारत का सबसे बड़ा अलगाववादी आन्दोलन है. मुम्बई के आसमान में जैसे ही सितारे दिखाई देना शुरू करते हैं, लिनन की कड़क शर्ट और खड़खड़ाते वाकी-टाकी वाले गार्ड एंटिला के भयावह गेट के सामने प्रकट होने लगते हैं. तमाम चकाचौंध रोशनियाँ जल उठती हैं... किसी ने कहा कि एंटिला ने मुम्बई की रातों को छीन लिया है... अब समय आ गया है कि उसे वापस छीन लिया जाए.    

हमारे पास कारोबार के प्रतिकूल स्वामित्व पर कोई क़ानून नहीं है; जिसके कारण जिसके पास जितना ही ज्यादा पैसा हो वह उतना ही ज्यादा पैसा कमा सकता है. इस तरह हमारे यहाँ हालत यह है कि कारपोरेट्स अपनी स्थिति या ताकत का दुरूपयोग नहीं कर रहे बल्कि उस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं जो सरकार ने उन्हें प्रदान कर रखी है. उदाहरण के लिए सिर्फ 0.2 प्रतिशत रायल्टी पर उन्हें अरबों-खरबों डालर की खनिज संपदा के खनन का अधिकार दे दिया गया है. 

उनके पास असहमति से निपटने के अपने ही तरीके हैं. अपने मुनाफे के एक बहुत छोटे हिस्से से वे अस्पताल, शिक्षण संस्थाओं और ट्रस्टों का संचालन करते हैं और ये ट्रस्ट एन जी ओ, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, फिल्म निर्माताओं, साहित्य महोत्सवों और यहाँ तक कि प्रतिरोध आन्दोलनों को भी वित्तीय मदद देते हैं. यह दान के प्रलोभन द्वारा जनमत निर्माताओं को अपने प्रभाव-क्षेत्र में लाने का तरीका है. भारत के दो सबसे बड़े चैरिटेबुल ट्रस्टों का संचालन टाटा करती है. हाल ही में उन्होंने हारवर्ड बिजनेस स्कूल नाम के एक जरूरतमंद संस्थान को पचास मिलियन डालर दान में दिए. खनन, धातु एवं विद्युत् जैसे क्षेत्रों में व्यापक हित रखने वाली जिंदल, 'जिंदल ग्लोबल ला स्कूल' चलाती है, जिसने हाल ही में प्रतिरोध पर कैसे काबू पाया जाए विषय पर एक कार्यशाला आयोजित की. जल्दी ही वे जिंदल स्कूल आफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पालिसी शुरू करने जा रहे हैं. 

सरकार, विपक्ष, न्यायालय, मीडिया और उदारवादी विचारधारा को साध लेने का बंदोबस्त कर लेने के बाद लोगों की ताकत को, बढ़ती हुई अशांति को साध पाना ही बाक़ी रह जाता है. इन्हें कैसे साधा जाए? प्रदर्शनकारियों को पालतू कैसे बनाया जाए? लोगों के गुस्से को खींचकर उसे अंधी गलियों में कैसे घुमा दिया जाए. भारत में अन्ना हजारे का आन्दोलन इसका बढ़िया उदाहरण है.  
                                                            :: :: :: 
Manoj Patel, Arundhati Roy on Mukesh Ambani    

एदुआर्दो गैल्यानो : ट्रेन के हाथ

एदुआर्दो गैल्यानो की किताब 'मिरर्स' से एक और अंश... 

 
ट्रेन के हाथ : एदुआर्दो गैल्यानो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

रोजाना साठ लाख यात्रियों को ढोने वाली मुम्बई की लोकल ट्रेनें भौतिकी के सिद्धांतों को भंग कर देती हैं : उन पर उनकी औकात से ज्यादा यात्री चढ़ते हैं. 

इन अकल्पनीय यात्राओं के अच्छे जानकार सुकेतु मेहता बताते हैं कि ठसाठस भरी ये ट्रेनें जब चलने लगती हैं तो लोग उसके पीछे दौड़ पड़ते हैं. जिसकी ट्रेन छूट जाती है उसकी नौकरी भी छूट जाती है. 

उसके बाद डिब्बों की खिड़कियों या छतों से हाथ उग आते हैं और वे पीछे छूट गए लोगों की लटक-पटक कर ऊपर चढ़ने में मदद करते हैं. और ट्रेनों के ये हाथ दौड़ते आ रहे लोगों से यह नहीं पूछते कि वह देशी है या विदेशी, या कि वह कौन सी भाषा बोलता है, या वह ब्रह्मा की पूजा करता है अथवा अल्लाह की, बुद्ध या ईसा मसीह की. न ही वे यह पूछते हैं कि वह किस जाति का है, किसी अभिशप्त जाति का या बिल्कुल जाति विहीन ही तो नहीं है. 
                                                                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte, 09838599333 

Saturday, January 21, 2012

निकानोर पार्रा : कलातथ्य - 2


१९६७ से पार्रा ने छोटी कविताएँ लिखना शुरू किया और बाद में इन्हें पोस्टकार्डों के संग्रह के रूप में 'आर्टीफैक्टोज' के नाम से प्रकाशित कराया. यह प्रकाशन एक तरह से उनके हालिया कामों की पूर्वसूचना था. इन्हें उनके एंटीपोयम की तार्किक परिणति कहा जाता है. ये "दृश्य कलातथ्य" एम टीवी पीढ़ी के लिए हाइकू जैसे हैं, विज्ञापनी कला से प्रभावित चित्रों और शब्दों को मिलाकर तैयार किए गए नारों जैसे. पार्रा का घर तमाम घरेलू साजोसामान के साथ लगे हुए हस्तलिखित साइनबोर्डों से तैयार ऎसी 'कलाकृतियों' से भरा हुआ है. ऎसी कलाकृतियों की एक झलक आप इस ब्लॉग पर पहले देख चुके हैं. आज कलातथ्य की एक और कड़ी प्रस्तुत है. आज प्रस्तुत ये सभी कलातथ्य उनके एक जैसे ही रेखाचित्र के साथ लिखे हुए थे जिसे नीचे दिया जा रहा है...  











कलातथ्य - 2 : निकानोर पार्रा 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
                       
अभी-अभी देखा गया है 80 से ऊपर का एक आशिक 
पचास से ऊपर की सभी लड़कियों सावधान 
                       :: :: ::

               ईराक में युद्ध 
मुहं बाए खडा हूँ मैं 
लगता है कभी बंद नहीं कर पाऊंगा इसे अब 
                       :: :: ::

                       1973 
बहुत अच्छे !...... अब 
इन आजादी दिलाने वालों से कौन आज़ाद करेगा हमें ?
                       :: :: ::

                      चिली  2000 
यहाँ सरकार वो करती है जो वह कर सकती है 
सेना वो करती है जो वह चाहती है 
केवल चर्च ही वो करता है जो उसे करना चाहिए : कुछ नहीं 
                     :: :: ::

             बकवास है कविता-वविता 
कार्ला सैन्डोवल हमसे कहा करती थी :
निस्संदेह कुछ माननीय अपवाद भी हैं भई
                    :: :: :: 

              बस इतनी सी बात 
9 महीनों का समय ख़त्म हुआ 
और परिसर को खाली कर देने के अलावा कोई चारा न बचा 
                    :: :: ::

                  देववाणी 
आप जो भी करेंगे, पछताएंगे 
                    :: :: :: 

           बंद करो बकवास ! 
कोई हद होती है, 2000 सालों से चला आ रहा है झूठ !
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte, 9838599333 
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