जिबिग्न्यु हर्बर्ट की एक और कविता...
 
 
एक ब्यौरे की कोशिश : जिबिग्न्यु हर्बर्ट 
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पहले तो मैं अपना ब्यौरा दूंगा 
अपने सर से शुरू करते हुए 
या बेहतर होगा कि अपने पैर से 
या फिर हाथ से ही 
अपने बाएँ हाथ की सबसे छोटी उंगली से शुरू करते हुए 
बहुत स्नेहिल है 
मेरी छोटी उंगली 
थोड़ा अन्दर की तरफ मुड़ी 
एक नाखून पर ख़त्म होती 
तीन हिस्सों में बनी है यह 
सीधे मेरी हथेली से निकली हुई 
अगर इसका बस चलता तो 
एक बड़ा सा कीड़ा हो गई होती यह 
एक निराली उंगली है यह 
पूरी दुनिया में अनूठी बाएँ हाथ की छोटी उंगली 
सीधे मुझे प्रदान की गई 
बाएँ हाथ की दूसरी छोटी उंगलियाँ 
भावशून्य अमूर्तन हैं 
मेरी उंगली की 
हमारा एक ही जन्म-दिवस है 
एक ही मृत्यु-दिवस 
और एक ही अकेलापन 
सिर्फ धूमिल पुनरुक्तियों के परीक्षण में लगा 
खून ही 
एक-दूसरे से जोड़ता है दो पृथक किनारों को 
आपसी सहमति के एक सूत्र से 
                    :: :: :: 
जिब्ग्न्यू हरबर्ट, ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त  
 
 
अद्भुत दृष्टि कवि की, जिसने आंक लिया जुड़ाव, सहमति और सूत्र के सारे घटक उँगलियों के माध्यम से!
ReplyDeleteहैरान हूँ कवि की कल्पनाशीलता पर..
ReplyDeleteWaah.. Reena Satin
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