Monday, February 25, 2013

माइकल आगस्तीन की दो कविताएँ

माइकल आगस्तीन (1953) की दो कविताएँ...  








माइकल आगस्तीन की दो कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

शहर का बाहरी हिस्सा, शाम लगभग 7:00 बजे 

शादीशुदा जोड़े 
सिटकिनी लगाकर बंद कर लेते हैं 
अपने अलग-थलग खड़े घरों को. 

बाहर 
धुंधलाई शाम में 
घात लगाए बैठे हैं तलाक के वकील. 
                  :: :: :: 

समुद्र में समाधि 

हवा के एक झोंके ने  
पलट दिया है नाव को
डूब गया है 
मातम करने वालों का पूरा झुण्ड. 

सिर्फ अस्थिकलश 
तैर रहा है. 
                  :: :: :: 

3 comments:

  1. "बाहर
    धुंधलाई शाम में
    घात लगाए बैठे हैं तलाक़ के वकील"

    "सिर्फ़ अस्थिकलश
    तैर रहा है."

    स्थितियों पर अच्छा व्यंग्य है.

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  2. अलगाव. मृत्यु और भयावह सच्चाई मिलकर तनाव का माहौल बना देते हैं.

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