Monday, March 25, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : मैं हार जाता हूँ

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   

मैं हार जाता हूँ : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यन्तरण : मनोज पटेल) 

स्याह लिबास 
सफ़ेद जिस्म 
रंगीन हड्डियां 

मैं दांव लगाता हूँ 
घूमता हुआ तैफ़ रुक जाता है 
गलत रंग पर 

मैं हार जाता हूँ 
अपना लिबास 
अपना जिस्म 
अपनी हड्डियां 

आज़ाद होने के लिए 
मुझे बूझनी है 
तुम्हारी पहेली 

"सबसे नायाब शिकार" 
"जो किसी जाल में नहीं आता -- ख़ुदा" 
"नहीं मेरा जिस्म" 
तुम आ जाती हो 
अपने लिबास से बाहर 
मैं हार जाता हूँ 
अपना ख़ुदा 

"सबसे तेज़ परिंदा" 
"तुम्हारी रूह" 
"नहीं मेरा जिस्म" 
तुम उड़ जाती हो 
बहुत तेज़ 
मैं हार जाता हूँ 
अपनी रूह 

मैं हार जाता हूँ 
सब कुछ 
जबकि घूमते हुए तैफ़ के हर खाने में 
एक ही रंग है 
               :: :: :: 

तैफ़  :  राउलेट नामक जुए के खेल का व्हील 

2 comments:

  1. न खुदा ,न रूह ....सिर्फ जिस्म ही सच है ।
    भौतिकवादी यथार्थ ।....सुन्दर कविता और अनुवाद ।

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  2. sundar kavita ,sundar anuwad ..behtareen chunav ke liye Manoj bhaai ka shukriya ..Holi ki shubhkmnaen..

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