नत्त रोज़न्स्का की एक कविता...
नत्त रोज़न्स्का की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुम
हाथ भर की दूरी पर हो मुझसे
बस मेरा हाथ
अपनी रजाई की तहों के भीतर नहीं
दुनिया के एक नक़्शे पर पड़ा है
और मुमकिन नहीं मेरे लिए
कि समंदर लपेटकर अपने चारों ओर
दुबक जाऊँ तुम में
:: :: ::
वाह...
ReplyDeleteकमाल की कविता......
अनु
दूरी और सामीप्य के मानक कितने विलक्षण होते हैं न!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता, संलग्न तस्वीर ने भी बहुत कुछ समझाया!
आभार!
वाह...कितनी सुंदर कल्पना...
ReplyDeletekitni adbhut!!!waah!!
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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